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गंभीर है बुढ़ापे का नशा

१० सितम्बर २०१२

जर्मनी में बुजुर्ग लोग रक्त संचार की समस्या होने पर पिकोलो पी लेते हैं, पेट में दर्द हो तो लिकर और जल्दी से सोने के लिए बीयर. उनके पास पीने के लिए वक्त और मौकों की कमी नहीं होती.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

जवानी में एक ग्लास ज्यादा पीने, नशे में लड़ खड़ाने या अगले दिन ब्लैकआउट होने को बोल्डनेस की निशानी माना जाता है. जवानी में भी अल्कोहल बुढ़ापे से कम नुकसानदेह नहीं होता, लेकिन पश्चिमी समाजों में उसे स्वीकार किया जाता है. अन्ना-लीजा 76 साल की हैं और जब वे शराब, टैबलेट और नशे के खुमार के बारे में बताती हैं तो अपराधबोध और शर्म की बात करती हैं. कुछ महीनों से वे जर्मन शहर एसेन के एक क्लीनिक में नशे की लत छूटने की थेरैपी कर रही हैं. कहती हैं, बूढ़े लोग ज्यादा शर्म महसूस करते हैं, क्योंकि पीने को पाप और विफलता से जोड़ा जाता है.

लंबा जीवन, लंबी लत

जर्मन लोगों की आयु बढ़ रही है. अगले बीस साल में आबादी का 30 फीसदी हिस्सा 80 से ज्यादा उम्र का होगा. शराब पीना या शराब की लत इस उम्र में उतनी आम नहीं जितनी युवावस्था में. यह कहना है जर्मन सरकार की एक रिपोर्ट का जिसका यह भी कहना है कि आबादी की उम्र बढ़ने के साथ शराब की लत वाले बूढ़े लोगों की तादाद भी बढ़ेगी. आज भी बूढ़े नशेड़ियों में एक तिहाई ऐसे नशेड़ी हैं जो उम्र के साथ बूढ़े हुए हैं. उनमें ऐसे लोग भी हैं, जो पियक्कड़ थे, बाद में छोड़ दी, पर बुढ़ापे में फिर पीने लगे.

अन्ना लीजा भी ऐसी ही हैं. कई बार छोड़कर वे 70 की उम्र में फिर से पीने लगीं. "मुझे पता था कि पहले ग्लास का मतलब फिर से पीछे जाना था. लेकिन मैंने सोचा कि अब मैं दूसरों की तरह जी सकती हूं. यह इतना मस्त और आजाद करने वाला अनुभव था." लेकिन जल्द ही पीने पर उनका नियंत्रण नहीं रहा. फिर वे अल्कोहल और सोने की गोलियां मिलाकर लेने लगीं. एक दिन उन्होंने खुद को अस्पताल के इमरजेंसी रूम में पाया.

गोलियां और शराब

कुछ ऐसे लोग भी हैं जो दोस्तों या पार्टनर की मौत के बाद अकेले हो गए और पीने लगे. कुछ ऐसे भी हैं जो निराशा और चिंता की वजह से पीने लगे. पैंतीस -चासील साल काम करने के बाद रिटायर होने पर उन्हें लगने लगता है कि समाज को उनकी परवाह नहीं. सरकारी रिपोर्ट के अनुसार ऐसी हालत में अधिकांश बुजुर्ग गोलियां और अल्कोहल दोनों ही लेने लगते हैं. हालांकि कोई आंकड़े नहीं दिए गए हैं लेकिन कहा गया है कि स्टेशनरी ओल्ड होम में रहने वाले 7 फीसदी बुजुर्ग दवाओं के लती हैं तो 8 से 10 फीसदी को शराब पीने की लत है.

"लेकिन इस समय 80 से ज्यादा उम्र वाले बुजुर्ग शराब की लत की बात नहीं करते," यह कहना है कि एसेन के एक ओल्ड होम की प्रमुख हेडी ब्लोंसेन का. नशे की लत को खुद नशा करने वाले लोग लत नहीं समझते. वे इसे ज्यादा से ज्यादा गलत आदत मानते हैं, जिसके लिए वे शर्मिंदगी महसूस करते हैं. इसके अलावा आम दुकानों में आसानी से मिलने वाले मेलिसेनगाइस्ट जैसे उत्पादों को स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद माना जाता है. 13 यूरो में मिलने वाले इस ड्रिंक में 79 फीसदी अलकोहल होता है. बहुत से लोग इसे कोला या फैंटा में मिला कर पीते हैं.

Symbolbild Alte Menschen Sucht Pillen Medikamente
तस्वीर: picture-alliance/ZB

लत छुड़ाने में सहयोग

हेडी ब्लोंसेन का कहना है कि उनके ओल्ड होम के दस फीसदी निवासी अलकोहल या सोने की गोलियां लेने के आदी हैं. कर्मचारियों को इसका पता इस बात से चलता है कि वे संयमी बर्ताव करते हैं, वे हमें उनकी आलमारी नहीं देखने देते और गोष्ठियों में शराब के लिए पूछे जाने पर फौरन हां करते हैं. हमें बड़ी सावधानी दिखानी पड़ती है ताकि वे शर्म से और संकोच न करने लगें. जो लोग बहुत ज्यादा पीते हैं वे दरअसल ऐसा अकेलेपन के कारण करते हैं. हेडी ब्लोंसेन का कहना है कि बुढ़ापे में नशे की लत हमेशा ही एक मुद्दा रहा है, लेकिन उस पर बहुत ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया है.

लेकिन अब इस स्थिति को बदलने की कोशिश हो रही है. इस तरह की परियोजनाओं शुरू की गई हैं जिनमें नशे की लत छुड़ाने वाले संगठन बुजुर्गों की मदद करने वाले संगठनों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं. एसेन में भी जर्मन सरकार की मदद से ऐसा एक प्रोजेक्ट चल रहा है, जिसका नेतृत्व मनोविज्ञानी आरनुल्फ फोसहागेन कर रहे हैं. "अल्कोहल की लत एक बीमारी है, जिसका एक ओर आसानी से इलाज संभव है, तो दूसरी ओर लती का सहयोग बहुत जरूरी है. लेकिन बुजुर्ग लोगों को लत को स्वीकार करने में बड़ी मुश्किल होती है."

नशे से बेहतर सक्रियता

आरनुल्फ फोसहागेन अक्सर सुनते हैं कि बूढ़े नशेड़ियों का इलाज करने में कोई फायदा नहीं. समाज को उनकी मदद कर क्या मिलेगा जो यूं भी अपनी जिंदगी के अंतिम पड़ाव पर हैं? फोसहागेन का कहना है कि दरअसल उन्हीं की मदद की जाती है जो मदद चाहते हैं. समाज को नशेड़ी बुजुर्गों के इलाज से आर्थिक लाभ न भी हो लेकिन यह लाभ तो है ही कि तब सड़कों पर पियक्कड़ बुजुर्गों के बदले फिट और चुस्त बुजुर्ग दिखेंगे.

अन्ना-लीजा को भी इससे इत्तेफाक है. वे कहती हैं, "यह एक घातक बीमारी है, क्रमिक मौत और वह बुढ़ापे में ज्यादा महसूस होती है, इसे बाहरी मदद से ही रोका जा सकता है." वे कहती हैं कि वे हर किसी के लिए चाहेंगी कि बुढ़ापे में साफ सुथरा जी सकें, अपनी मुश्किलों को साफ दिमाग से सुलझा सकें और शराब में ऐसे न डूब जाएं कि ठीक से सोचना भी संभव न रहे.

रिपोर्ट: मार्लीस शाउम/एमजे

संपादन: आभा मोंढे