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हां, मैं फिल्म देखता हूं: श्रीश्री रविशंकर

२६ सितम्बर २०१२

ऑर्ट ऑफ लिविंग के श्रीश्री रविशंकर खुद को आम लोगों की ही तरह मानते हैं. हाल में वह जर्मनी की यात्रा पर थे, जहां उन्होंने डॉयचे वेले से खुल कर बात की.

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तस्वीर: DW/V. Deepak

आपकी वेबसाइट में लिखा है कि "स्प्रिचुअल्टी कैन ब्रिंग सोशल चेंजेज" यानी अध्यात्म से समाजिक बदलाव हो सकता है. कैसे?

जरूर. महात्मा गांधी बडे़ आध्यात्मिक व्यक्ति थे. वो रोज बैठकर सत्संग किया करते थे. सबको सम्मति दे भगवान वो गाते थे. उसकी वजह से ही लोग जगह जगह जुड़ने लगे और एक बड़ा आंदोलन शुरू हो गया.

आपने आंदोलन की बात की. हमने देखा है कि आप बीते दिनों अन्ना हजारे और रामदेव के आंदोलन में शामिल रहे हैं. क्या मकसद था आपका?

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तस्वीर: DW/V. Deepak

सच्चाई के लिए. देखिए अन्याय के विरोध में लड़ना चाहिए. अज्ञान के विरोध में लड़ना चाहिए. अभाव के विरोध में लड़ना चाहिए. हम लोग गंगा यमुना की सफाई के लिए भी वचनबद्ध हैं. समाज में जो अन्याय हो रहा है उसका विरोध होना चाहिए. शांति की हम बात तो करते हैं साथ ही साथ हम क्रांति की बात भी करते हैं. हमें ऐसी क्रांति चाहिए जो शांतिपूर्ण हो और ऐसी शांति चाहिए जो क्रांति को रोके नहीं.

आपकी नजर में आज के भारत की समस्याएं क्या हैं?

भ्रष्टाचार, अत्याचार, दुराचार ये सब भारत की समस्याएं है. इस समस्या के लिए सारे आध्यात्मिक गुरुओं को एक साथ मिलकर काम करना पड़ेगा.

क्या आप ये कह रहे हैं कि अध्यात्म से भ्रष्टाचार दूर होता है. तब तो जनलोकपाल की जरूरत क्या है?

देखिए, अध्यात्म अपनापन बढ़ाता है. आत्म बल पैदा करता है. हर एक व्यक्ति में. फिर व्यक्ति खड़ा होकर लड़ सकता है. जनलोकपाल तो सिर्फ एक कानून है. इससे देश या दुनिया नहीं बदल जाएगी. देश को एक परिवर्तन की जरूरत है. मानसिकता, राजनीति में परिवर्तन की जरूरत है. निष्ठा में परिवर्तन की जरूरत है. आज सबसे पहली निष्ठा तो अपने लिए है फिर पार्टी के लिए फिर देश का नंबर आता है. मैं कहूंगा कि अपनी निष्ठा देश के प्रति होनी चाहिए.

भारत को आध्यात्मिक गुरुओं का देश कहा जाता है. लेकिन इससे क्या फायदा हुआ है. अध्यात्म देश को कहीं ले जाता हुआ नहीं दिखता?

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तस्वीर: DW/V. Deepak

देखिए, भारत में जो भी शांति है, विकास है, वो भारत की जनता के मन में बैठी आध्यात्मिकता की वजह से है. लोगों के मन में अभी भी धर्म के प्रति आस्था है. इसीलिए तो भारत आज भी बचा हुआ है. अभी मैं दक्षिण अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका से आया हूं. वहां पर 13 हजार साल पूर्व भारतीय जा चुके हैं. भारतीय संस्कृति के अवशेष वहां पर मिल रहे हैं. मेक्सिको में जाकर देखा है कि वहां गणपति की मूर्तियां मिली हैं. यहां यूरोप में गणेश के शिवलिंग वगैरह मिले हैं. एक समय भारत ऊंचाई पर था. आर्थिक, धार्मिक, आध्यात्मिक सब कुछ. जब आध्यात्मिक ऊंचाई पर था उस समय आर्थिक तरक्की भी थी. आज न आध्यात्मिकता रही और न आर्थिक उन्नित. उस ऊंचाई पर पहुंच पाएं हैं. अब दोबारा इसी क्रांति की जरूरत है.

भारत का हर आध्यात्मिक गुरु विकास की बातें कर रहा है, समाज सुधारने की बात कर रहा है. लेकिन मिल कर काम करने में अड़चन आती है?

देखिए हर का एक ही मकसद है. सब अलग अलग ढंग से काम करते हैं. लेकिन एक स्तर पर सब मिलते भी रहते हैं. कोई मतभेद नहीं. कोई लड़ाई झगड़े जैसी बात नहीं.

श्रीश्री को धर्म गुरु के तौर पर तो सब जानते हैं. लेकिन एक रविशंकर ऐसा भी है जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते होंगे. आप हमेशा मुस्कुराते रहते हैं. आप कॉमेडी फिल्म देखते हैं क्या ?

आदमी का दिमाग देखो. इससे बड़ी कोई कॉमेडी नहीं है दुनिया में. एक व्यक्ति के अंदर सारे चैनल चल रहे है. कॉमेडी चैनल, हॉरर चैनल, डिस्कवरी चैनल. मनुष्य का मस्तिष्क ऐसी चीज है जो चौंकाने वाली है.

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तस्वीर: DW/V. Deepak

आपने आखिरी फिल्म कब देखी थी?

मैं रोज देख रहा हूं. आदमी की जिंदगी फिल्म जैसी ही है.

आप गाने सुनते हैं. अपना पसंदीदा गाना बता सकते हैं क्या?

हां, सुनते हैं, गाते रहते हैं. फिल्मी गाने हमारे सत्संग में लोग गाते रहते हैं.

हमने सुना है कि आप कॉलेज के जमाने में फिल्म देखते थे. आपकी पसंदीदा हीरोइन कौन थी या है?

मैं किसी एक को कहूं ये उचित नहीं होगा. हमारे सामने जो भी होता है वो सब देखता हूं. ऐसा नहीं है मैं अब फिल्में नहीं देखता हूं. समय मिले तो अभी भी देखता हूं.

इंटरव्यूः निखिल रंजन/विश्वदीपक

संपादनः ए जमाल