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बच्चों के लिए डरावनी दिल्ली

१३ अक्टूबर २०१२

दुनिया में एक शहर ऐसा है जहां से हर दिन 20 बच्चे गुम हो जाते हैं. यह कोई डरावनी या काल्पनिक कहानी नहीं है, यह दिल्ली की सच्चाई है. भारत की राजधानी के पिछड़े इलाकों में गरीबों के बच्चों के शामत आई हुई है.

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तस्वीर: AP

तीन महीने बाद 13 साल की राजेश्वरी जैसे तैसे अपने परिवार के बीच पहुंची. बच्ची को जुलाई में कुछ लोगों ने अगवा कर लिया था. राजेश्वरी कहती है, "एक आदमी ने मुझे मिठाई खिलाई और उसे खाते ही मैं बेहोश सी हो गई. जब मुझे होश आया तो मैं ट्रेन के डिब्बे में थी. मुझे कुछ पता नहीं था कि मैं कहां जा रही हूं. मैंने चीखने की कोशिश भी की लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सकी."

राजेश्वरी के माता पिता मजदूर हैं. बेटी की तलाश में वह पुलिस के पास गए. अपनी तरफ से भी हर सम्भव जतन किये. खोजबीन में दिहाड़ी मजदूरी करने वाली जगत और मीना का बहुत पैसा और समय भी बर्बाद हुआ. तीन महीने के हताशा के बाद राजस्थान से उनके लिए राहत भरी खबर आई.

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तस्वीर: Lauren Farrow

राजेश्वरी राजस्थान की एक लोहा फैक्ट्री में थी. उससे बाल मजदूरी कराई जा रही थी. एक दिन फैक्ट्री के करीब से गुजरते हुए दो लोगों ने बच्ची को रोते हुए देखा. उन्होंने पुलिस को जानकारी दी और तब जाकर राजेश्वरी को बचाया गया. बुरी तरह सहमी बच्ची को वापस घर भेजा गया.

भटकते मां-बाप

लेकिन बच्चों को खोने वाले ज्यादातर लोग जगत और मीना की तरह भाग्यशाली नहीं. पूर्वी दिल्ली से मयंक नाम के बच्चे का अपहरण हुआ. दो साल बीत चुके हैं और अब तक कोई सुराग नहीं मिला है. मयंक के पिता प्रदीप कुमार सरकारी विभाग में क्लर्क हैं. वह आए दिन दिल्ली के अलग अलग पुलिस थानों के चक्कर काटते हैं. एक उम्मीद के साथ जाते हैं और रात के अंधेरे में निराशा के साथ लौटते हैं, "मैं उम्मीद करता हूं कि उसके साथ कुछ बुरा न हुआ हो. मैं हर दिन प्रार्थना करता हूं कि वह वापस आ जाए. हर दिन के साथ मेरी उम्मीदें कम होती जाती हैं."

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तस्वीर: UNI

बच्चों का धंधा

राजेश्वरी और मयंक उन हजारों बच्चों में हैं जो दिल्ली से आए दिन अगवा हो जाते हैं. बच्चों के अपहरण के पीछे सुनियोजित गैंग हैं. ये गैंग बच्चों को मजदूरी, देह व्यापार या अंगों की खरीद फरोख्त के लिए बेच देते हैं. गैंग गरीबों के बच्चों को निशाना बनाते हैं. निर्धन परिवार के बच्चों को आसानी से फुसलाते हैं और अगवा कर लेते हैं.

बचपन बचाओ आंदोलन के राकेश सेंगर कहते हैं, "ज्यादातर बच्चों को गुप्त ढंग से दूसरे राज्यों में ले जाया जाता है." गैर सरकारी संगठन 'बचपन बचाओ आंदोलन' के मुताबिक भारत में 2008 से 2010 के बीच 1,20,000 बच्चे गुम हुए. अकेले दिल्ली से 13,570 बच्चे खो गये.

पुलिस ऐसे कुछ जगहों की पहचान कर चुकी है, जहां से बच्चे उठाए जाते हैं. इनमें से ज्यादातर शहर के बाहरी इलाके हैं. दिल्ली पुलिस के मुताबिक इस साल 16 जुलाई से 15 सितंबर के बीच सिर्फ तीन महीनों में 1,153 बच्चे लापता हुए, जिनमें से 465 का अब तक कोई अता पता नहीं है. पुलिस जागरुकता अभियान छेड़कर भी इससे निपटने की कोशिश कर रही है.

रिपोर्ट: मुरली कृष्णन/ओएसजे

संपादन: महेश झा

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