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चिट फंड के सहारे चलती जिंदगी

१९ अक्टूबर २०१२

भारत में भ्रष्टाचार के झटकों से अर्थव्यवस्था की रफ्तार मंद तो पड़ी है. विकास भी जारी ही है लेकिन अभी भी आबादी का बड़ा हिस्सा बैंकिंग सुविधाओं का लाभ उठा पाने की स्थिति में नहीं है.

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तस्वीर: DW/Siri Bulusu

देश की बड़ी आबादी अपने सपनों को पूरा करने के लिए चिट फंड का सहारा लेती हैं. करीब 70 करोड़ लोग ऐसे हैं जो बैंक का फायदा नहीं उठा पा रहे. दो बच्चों की मां हैदराबाद की प्रवीना कीर्ति कहती हैं, "अपना काम शुरू करने का मेरा सपना पुराना था. शादी से पहले अपना करियर बनाना चाहती थी लेकिन शादी के बाद मुझे अपनी योजना स्थगित करनी पड़ी. जब बच्चे स्कूल चले जाते थे तब मुझे समझ नहीं आता था कि क्या करूं. फिर मुझे लगा कि मुझे खुद अपना बॉस बनना है." प्रवीना ने चिट फंड से लोन लेकर अपना व्यवसाय शुरू किया है.

भारत में महिलाओं की बड़ी आबादी अनौपचारिक काम काज में लगी है फिर वो चाहे शहर की हो या फिर गांव की. प्रवीना की ही तरह उनमें से अधिकतर की बैंक की नजर में कोई क्रेडिट नहीं होती. हालांकि प्रधानमंत्री ने बैंकों को आदेश दिया है कि वो गांव में रहने वालों को जल्दी से ऋण मुहैया कराएं. लेकिन प्रवीना बैंक की औपचारिकताओं में समय नहीं गंवाना चाहती थी. इसीलिए उन्होंने बैंक के बजाय चिट फंड की सहायती ली.

क्या है चिट फंड

चिट फंड की व्यवस्था भारत में पुरानी है. कुछ लोग समूह बनाकर पैसा इकट्ठा करते हैं फिर उसी पैसे का कुछ हिस्सा ऋण के रूप में सदस्यों को दिया जाता है. हर सदस्य को निश्चित समय में निश्चित रकम जमा करनी होती है. नियम ये है कि सदस्यों को सहयोग के अनुपात में ही पैसा दिया जाता है. हैदराबाद में अर्थशास्त्र की प्रोफेसर और एक चिट फंड की मैनेजर नागा परमेश्वरी कहती हैं, "ये व्यवसाय मध्य वर्ग के लिए है. मान लीजिए अगर किसी महिला को उसके बेटे की शादी करनी है तो वो रिश्तेदारों या बैंक के पास जाने की बजाय मेरे पास आती है. मैं उसकी मदद करती हूं लेकिन सिर्फ पैसा देकर नहीं बल्कि उससे मैं कमीशन भी लेती हूं."

भारत के 6 लाख गांवों में देश की कुल आबादी का तीन चौथाई हिस्सा रहता है. इनमें से अधिकतर गरीबी रेखा के नीचे जीवन जीने के लिए मजबूर हैं. सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है कि कैसे वित्त बाजार के दायरे में जनसंख्या के बड़े हिस्से को शामिल किया जाएगा. अगर ऐसा हो सके तो इससे निश्चित रूप से आर्थिक विकास होगा लेकिन कागजी कार्रवाई की वजह से बैंक से ऋण ले पाना अब भी मुश्किलों भरा है.

मनरेगा से क्या होगा

लोगों के चिट फंड के पास जाने की मुख्य वजह बैंको द्वारा समय पर ऋण उपलब्ध न करा पाना है. बैंगलोर के इंडियन इंस्टीट्यूट के प्रोफेसर पीसी नारायण कहते हैं, "असल मुद्दा है कि आधारभूत ढांचे के विकास के साथ-साथ कम ब्याज दर पर जरूरतमंद लोगों को सहायता मुहैया कराना. अगर भारत हर स्तर पर विकास करना चाहता है तो गरीबों को ऋण देने की सुविधा को आसान बनाना होगा."

Indien Chit Fund
तस्वीर: DW/Siri Bulusu

समाज के निचले स्तर पर लोगों को रोजगार मुहैया कराने की सरकार की सबसे बड़ी योजना है 2005 में बनाया गया राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम. अब इसे मनरेगा के नाम से जाना जाता है. इस अधिनियम के तहत गरीबों को साल भर में 135 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से 100 दिन काम दिया जाना तय किया गया है. पैसा सीधे बैंक में जमा किया जाता है जिससे काम करने वालों की क्रेडिट तैयार होती है और उन्हें बचत की भी प्रेरणा मिलती है. लेकिन आधारभूत ढांचे की व्यवस्था न होने की वजह से मनरेगा भी भारत के सभी गांवों तक नहीं पहुंच सका है.

पैसे का भुगतान अभी भी बड़ी समस्या है क्योंकि 90 प्रतिशत लोगों के पास बैंक में खाता ही नहीं है. इनमें से अधिकतर अभी भी चिट फंड से ही पैसा लेना पसंद करते हैं. प्रवीना कहती हैं, "जितना छोटा काम मैं शुरु करना चाहती थी उसके लिए बैंक बड़ी जगह है. मैं यह सोचकर ही डर जाती हूं कि मैं लोन के लिए बैंक जा रही हूं. लोगों का मानना है कि बैंक बड़े उद्योगों के लिए ही पैसा देते हैं. चिट फंड तो दोस्तों के बीच ही चलते हैं."

Indien Chit Fund
तस्वीर: DW/Siri Bulusu

चिट फंड के साथ एक खतरा भी है. स्थानीय तौर तरीकों, ट्रस्ट और भरोसे की वजह से एक सीमा के बाद बचत होगी ही, ये तय नहीं किया जा सकता. अगर समूह का कोई सदस्य पैसा इकट्ठा करके फरार हो जाता है तो उसे वापस हासिल करने का कोई तरीका नहीं. प्रोफेसर नारायण कहते हैं, "आजकल सरकार लोगों को बैंक में पैसा जमा करने के लिए प्रोत्साहित करती है. इसका मकसद बचत का माहौल तैयार करना है. इसका फायदा ये है कि आप उसी बैंक से आसानी से पैसा उधार ले सकते हैं." प्रोफेसर नारायण का मानना है कि भारत के बैंक बचत और क्रेडिट का ऐसा वातावरण तैयार करते हैं जो सभी आय वर्ग के लोगों को लिए फायदेमंद होता है. वह कहते हैं, " बैंक में खाता खोलने का मतलब ये नहीं कि पैसे के लेन देने के दूसरे तौर तरीके अप्रासंगिक हो गए हैं. वो रहेंगे और ये देश के लिए अच्छा है. हमें पैसा देने वाले कई साधनों की जरूरत है."

बेहतर कौन: बैंक या चिट फंड

सवाल उठना लाजिमी है कि कौन बेहतर है, चिट फंड या बैंक. प्रवीना के लिए तो चिट फंड ही सहारा बना. उसकी सहायता से ही वो अपना काम शुरू कर सकीं. वो कहती है, "चिट फंड ने मेरी उस वक्त सहायता की जब मुझे इसकी सबसे ज्यादा जरूरत थी. ये एकमात्र जरिया था जिसने मेरे सपनों को साकार किया. अगर मैं अपनी बचत पर ही निर्भर रहूं तो मुझे तीन से चार साल लगेंगे." अब जबकि प्रवीना का काम शुरु हो चुका है वो इसे आगे बढ़ाने के बारे में सोच विचार कर रही हैं.

रिपोर्टः सीरी बुलुसू/वीडी

संपादनः ओंकार सिंह जनौटी

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