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जल गई तहजीब, पाकिस्तान में सिनेमा राख

१९ अक्टूबर २०१२

पाकिस्तान जितना ही पुराना इतिहास कराची के निशात सिनेमाहॉल का भी है. हॉलीवुड की हिट फिल्में हों या लोकप्रिय बॉलीवुड की मसाला फिल्में. यह जगह फिल्म प्रेमियों के लिए किसी जन्नत से कम नहीं थी. लेकिन सिर्फ पिछले महीने तक.

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तस्वीर: Asif Hassan/AFP/Getty Images

सितंबर में अचानक गुस्साई भीड़ ने इस सिनेमा हॉल पर हमला कर दिया. इसमें आग लगा दी. फर्नीचर तोड़ डाले. सामान लूट लिए. थियेटर राख हो गया. यह सब किया गया उस अमेरिकी फिल्म के नाम पर, जो कथित तौर पर पैगंबर के खिलाफ बनाई गई है. पेशावर में भी आठ सिनेमाघरों को तोड़ डाला गया. लेकिन वित्तीय राजधानी कराची में थियेटर पर हमला पाकिस्तानी फिल्म के लिए बड़ा झटका साबित हुआ.

इस आग के साथ कई लोगों की नौकरी गई और पाकिस्तान की दशकों पुरानी तहजीब स्वाहा हो गई. कट्टरपंथियों ने खुले दिल और उदार लोगों को हरा दिया. इस्लामी दकियानूसी ख्याल वालों ने आगे की सोच रखने वालों को किनारे कर दिया. सार्वजनिक जीवन में भी पाकिस्तान में कुछ ऐसा ही हो रहा है.

Kino Karachi Pakistan
तस्वीर: Rizwan Tabassum/AFP/Getty Images

निशात के मैनेजर नवाब हुजूरुल हसन का कहना है, "अपने प्यारे रसूल पर वह बकवास फिल्म हमने नहीं बनाई है. दूसरों की तरह हम भी उसका विरोध कर रहे हैं. तो फिर सिनेमाघरों में लूट पाट और उनकी संपत्ति बर्बाद करने का क्या तुक है. इससे तो सैकड़ों लोग बेरोजगार हो गए."

बदबू देता थियेटर

जिस हॉल में कभी 1000 लोगों के बैठने की जगह थी, अब मलबे का ढेर बन गया है. धातु की कुर्सियों ने आग में जल कर अजीब सी शक्ल ले ली है. उनकी दुर्गंध फैली हुई है. सीढ़ीघर किसी भी वक्त ढह जाने को तैयार है और प्रोजेक्टर रूम की बात ही मत पूछिए. गैलरी के नाम पर जो कुछ बचा है, वह कभी भी ढह सकता है. आग से सिनेमा हॉल की शानदार छत जल गई है. बड़ा सा रुपहला पर्दा जल कर राख हो चुका है. उसके पीछे लपटों से स्याह पड़ी काली दीवार मुंह चिढ़ा रही है.

Kino Karachi Pakistan
तस्वीर: Rizwan Tabassum/AFP/Getty Images

यहां काम करने वाले लोगों का कहना है कि 65 साल के पाकिस्तान के इतिहास में यह सिनेमा पर सबसे बड़ा हमला है. देश के इस्लामीकरण की वजह से पाकिस्तान में पहले से ही फिल्मों का बुरा हाल हो चला है. पंजाबी फिल्मों में खलनायक का रोल निभाने वाले मशहूर मुस्तफा कुरैशी का कहना है, "सिनेमा की परंपरा अभी दोबारा शुरू ही हो रही थी कि ऐसा हो गया."

जिया ने किया बेड़ा गर्क

पाकिस्तान में जब सेना प्रमुख जनरल जिया उल हक ने 1977 में तख्ता पलट किया था, तो वहां 1000 सिनेमा घर थे, आज मुश्किल से 100 बचे हैं. कुरैशी का कहना है, "लोग अपनी तनख्वाह से पैसे बचाते थे कि एक या दो बार महीने में सिनेमा देखने जा सकें. किसी जमाने में कलाकार बहुत लोकप्रिय हुआ करते थे."

पाकिस्तान ने भारत से पहली जंग के बाद ही बॉलीवुड फिल्मों पर रोक लगा दी थी. हालांकि इक्का दुक्का हिन्दी फिल्में रिलीज हुआ करती थीं, लेकिन जिया उल हक के सत्ता में आने के बाद स्थिति बहुत बुरी हो गई. उनके 11 साल के तानाशाही के दौरान पाकिस्तान में कट्टरपंथ बढ़ा. अमेरिका और सीआईए के साथ मिल कर पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में मुस्लिम आतंकवादियों को प्रश्रय दिया और उसके बाद ही अल कायदा और तालिबान जैसे संगठन पनप कर फैले. इस दौरान लाहौर और कराची की फिल्म प्रोडक्शन कंपनियां धूल धुसरित होती गईं.

डॉक्यूमेंट्री फिल्में बनाने वाले तारिक खलीक का कहना है, "जनरल जिया के वक्त में अगर कोई मर्द अभिनेता भी फिल्म में अपनी बेटी को गले लगा रहा होता, तो उसे सेंसर कर दिया जाता. जिया की नीतियों की वजह से लोगों ने सिनेमा हॉल जाना बंद कर दिया और बाद में उन जगहों पर शॉपिंग मॉल बनने लगे."

करीब तीन साल पहले 2009 में पाकिस्तान की नई सरकार ने भारत की फिल्मों पर लगी पाबंदी पूरी तरह खत्म कर दी. भारतीय फिल्म यानी बॉलीवुड में पाकिस्तान का हमेशा से बहुत बड़ा रोल रहा है. भारतीय फिल्मों के सबसे बड़े अभिनेता दिलीप कुमार, राज कपूर और देवानंद पाकिस्तानी हिस्से से भारतीय फिल्मों में आए. पाबंदी हटने के बाद पाकिस्तान के लोगों में फिर उम्मीद जगी, जो अब खत्म हो रही है.

खतरनाक नजारा

कराची के कापरी सिनेमा में काम करने वाले अब्दुल अजीज का कहना है कि जिस वक्त लोग हाथों में हथियार लेकर सिनेमा घर पर हमला करने पहुंचे, वह भयावह मंजर था, "मुझे मेरे सामने मौत खड़ी दिखी. यह सब पहले से रची गई साजिश का हिस्सा था. उन लोगों ने पहले हमारा सामान लूटा फिर सिनेमा हॉल में आग लगा दी. मैंने दमकल वालों को फोन किया तो उन्होंने भी आने से मना कर दिया और कहा कि लुटेरे उन्हें भी निशाना बना सकते हैं."

जिन थियेटरों को नष्ट किया गया है, उनमें बामबीनो भी शामिल है, जहां कभी राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी रहा करते थे. पाकिस्तान के मशहूर कॉमेडियन उमर शरीफ इस घटना को बेहद बुरा बता रहे हैं, "यह बहुत बड़ा नुकसान है. इन सिनेमा घरों ने हमारी युवा पीढ़ी को बहुत कुछ दिया था."

दूसरे दुखी हैं. अब्दुल हमीद का कहना है, "मैंने इस सिनेमा घर में बहुत सी फिल्में देखी थीं. मेरे लिए यह कोई सिनेमा घर नहीं, बल्कि मेरा बचपन था, जिसे देख देख कर मैं जवान हुआ."

एजेए/एमजे (एएफपी)

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