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ईशनिंदा कानून पर रोक के आसार नहीं

५ नवम्बर २०१२

पाकिस्तान के सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि उन्हें ईशनिंदा कानून में सुधार के लिए सरकार पर कतई विश्वास नहीं है. हाल ही में ईशनिंदा के आरोप में लड़कियों के एक स्कूल में आग लगा दी गई.

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तस्वीर: Arif Ali/AFP/Getty Images

पाकिस्तान के लाहौर में 200 से ज्यादा लोगों की भीड़ ने लड़कियों के एक स्कूल को आग लगा दी. आरोप था कि छठी कक्षा में किसी टीचर ने ईशनिंदा करने वाली सामग्री बांटी. पुलिस ने कहा है कि वह स्कूल के मालिक और फारुकी हाई स्कूल के टीचर की तलाश कर रहे हैं. वह गायब हो गए हैं.

पुलिस अधिकारी अजाम मनहैस ने मीडिया को बताया कि स्कूल के प्रिंसिपल 76 साल के असीम फारुकी को ईशनिंदा के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया है. पुलिस ने स्कूल के मालिक पर भी मामला दर्ज किया है.
प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़प में कम से कम एक व्यक्ति घायल हो गया है. पाकिस्तानी अधिकारियों ने कहा कि उन्होंने एक अज्ञात व्यक्ति के खिलाफ स्कूल पर हमला करने की पुलिस रिपोर्ट दर्ज की है.

Pakistan Blasphemie Demonstration für die Mädchenschule in Lahore
तस्वीर: Arif Ali/AFP/Getty Images

स्थानीय मीडिया के मुताबिक विरोध प्रदर्शन करने वाले लोग धार्मिक पार्टियों और कट्टरपंथी गुटों के थे, जिसमें प्रतिबंधित गुट जमात उद दावा भी शामिल था हालांकि पुलिस ने इसकी पुष्टि नहीं की है.

शुरुआती खबरों के मुताबिक आरफा इफ्तिखार ने छठी कक्षा के बच्चों को कुरान पर निबंध लिखने को कहा था जिसमें पैगंबर मोहम्मद के बारे में कथित तौर पर अपमानजनक टिप्पणियां थी. स्कूल प्रबंधन ने कहा है, "हमारे प्रबंधन और मालिकों का इस गंदे काम से कोई लेना देना नहीं है. हम सरकार और पुलिस से अपील करते हैं कि वह स्कूल के टीचर पर कानूनी कार्रवाई करे और उसका असली उद्देश्य पता लगाए."

Pakistan Blasphemie Proteste gegen Mädchenschule in Lahore
तस्वीर: Arif Ali/AFP/Getty Images

विवादास्पद कानून

ईशनिंदा या पैगंबर मोहम्मद का अपमान पाकिस्तान में बहुत संवेदनशील मुद्दा है जहां 18 करोड़ की आबादी में 97 फीसदी मुसलमान हैं. मानवाधिकारों के लिए काम करने वाले लोग इस कानून में सुधार की मांग कर रहे हैं. इसे 1980 में जनरल जिया उल हक ने लागू किया था.

कार्यकर्ताओं का कहना है कि इस कानून का ईशनिंदा से कम लेना देना है बल्कि इसे लोग अपने निजी फायदे के लिए छोटे मोटे झगड़े निबटाने में इस्तेमाल कर रहे हैं.

हाल ही में ऐसा एक मामला रिम्शा मसीह के रूप में सामने आया. अगस्त में उस पर कुरान के पन्ने जलाने का आरोप लगा कर ईशनिंदा कानून के तहत जेल में डाल दिया. बाद में पता चला कि ऐसा करने वाला मौलवी खुद था.

Pakistan Blasphemie Proteste gegen Mädchenschule in Lahore
तस्वीर: Arif Ali/AFP/Getty Images

पिछले कुछ साल में पाकिस्तान में ईशनिंदा के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी हुई है. पाकिस्तान के उदारवदी धड़े को दक्षिणपंथियों के मजबूत होते जाने से चिंता है और उनका आरोप है कि सत्ताधारी पार्टी उन्हें बढ़ावा दे रही है.

कराची के पत्रकार मोहसिन सईद ने डॉयचे वेले से बातचीत में कहा, "ईशनिंदा कानून को खत्म कर दिया जाना चाहिए क्योंकि इसका इस्लाम से कोई लेना देना नहीं है. हम इसकी काफी समय से मांग कर रहे हैं. इस पर धार्मिक कट्टरपंथियों ने कड़ी प्रतिक्रिया दी."

मानवाधिकार कार्यकर्ता और पाकिस्तान के स्वतंत्र मानवाधिकार आयोग एचआरसीपी के हुसैन नाकी कहते हैं, ईशनिंदा के मामले अधिकतर निजी मुद्दों से जुड़े होते हैं. पाकिस्तान में उन लोगों के लिए यह बहुत आसान है जो किसी से दुश्मनी निकालना चाहते हैं. वह उन पर ईशनिंदा का मामला दर्ज करवा देते हैं. कई मामलों में लोग मौके पर ही मारे जाते हैं.

नाकी आलोचना करते हैं कि प्रांतीय सरकारें स्कूलों की सुरक्षा के लिए जरूरी कदम नहीं उठा रही है. "अधिकारी जानते हैं कि रिपोर्टों के बाद फिर आक्रामक प्रदर्शन हो सकते हैं लेकिन वह पहले से इस पर कोई कदम नहीं उठा रहे."

उन्होंने साथ ही यह भी कहा कि स्कूल के प्रिंसिपल के साथ सही व्यवहार किया जाना चाहिए क्योंकि जब तक आरोप साबित नहीं हो जाता व्यक्ति निर्दोष है.

मुश्किल

पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी की पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी हाल ही में कड़ी आलोचना का शिकार हुई थी क्योंकि उसने ईशनिंदा कानून में सुधार से इनकार कर दिया था. इनकार ऐसे वक्त में किया गया जब ईसाई कैबिनेट मंत्री शाहबाज भट्टी और पंजाब के पूर्व गवर्नर सलमान तासीर की हत्या हुई थी. क्योंकि उन्होंने इस विवादास्पद कानून के खिलाफ आवाज उठाई थी.

नकी कहते हैं कि उन्हें पीपीपी सरकार से इस कानून में सुधार करने की उम्मीद नहीं है. "पीपीपी मौकापरस्त पार्टी है. लोग उन्हें इसलिए वोट देते हैं कि धार्मिक पार्टियां उन्हें नहीं चाहिए. लेकिन इस्लामी पार्टियों के खिलाफ खड़े होने की बजाए पीपीपी उनके आगे झुक जाती है. नकी का यह भी मानना है कि पाकिस्तान की अधिकतर जनता कट्टरपंथ की समर्थक नहीं है. कराची के पत्रकार मोहसिन सईद का मानना है कि पहले ऐसा सोचने वाले बहुत कम लोग थे लेकिन अब यह मुख्य धारा में है. "वो दिन गए जब हम कहते हैं कि यह धार्मिक कट्टरपंथियों, विदेशियों से नफरत करने वालों या नफरत फैलाने वालों का छोटा सा गुट है जो ये अपराध कर रहे हैं. लेकिन अब यह जहर पूरे पाकिस्तानी समाज में फैल गया है.

लंदन के पत्रकार और कार्यकर्ता फारुक सुलेहरिया ने डॉयचे वेले से बातचीत में बताया, "इसमें कोई शक नहीं कि पाकिस्तानी समाज में आज पहले की तुलना में सहिष्णुता कम है. नकी कहते हैं, "अधिकतर मुसलमान देशों में ईशनिंदा कानून नहीं है." व्यंग्य करते हुए वह कहते हैं, ऐसा लगता है कि पाकिस्तान में ईशनिंदा करने वाले रहते हैं और सभी मुस्लिम देशों में यही एक देश है जिसे इसकी चिंता है.

रिपोर्टः शामिल शम्स/एएम

संपादनः एन रंजन

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