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गूगल में इतिहास की क्लास

२८ नवम्बर २०१२

क्या आप जानते हैं कि गूगल अब एक डिजिटल म्यूजियम भी है. गूगल ने मल्टीमीडिया में गूगल कल्चरल इंस्टीट्यूट नाम के तहत इतिहास जमा करना शुरू किया है. क्या इससे लोग इतिहास की ओर ज्यादा आकर्षित होंगे..

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तस्वीर: Google

बहुत कम लोग जानते हैं कि गूगल के पास एक डिजिटल म्यूजियम भी है. कंपनी ने 60 इतिहास की प्रदर्शनियों में क्यूरेटर के तौर पर मदद की. वह और ऐसी प्रदर्शनियों में भागीदारी करने की योजना बना रही है. गूगल की दलील है कि वह संस्कृति की दुनिया में भी नाम कमाना चाहता है इसलिए वह अपनी तकनीक म्यूजियमों और अन्य संस्थानों से साझा कर रहा है.

यह सब गूगल कल्चरल इंस्टीट्यूट के जरिए किया जाएगा. यह संस्थान 2010 में शुरू किया गया और यही इन प्रदर्शनियों को आयोजित करता है. लेकिन इंटरनेट के शहंशाह गूगल को इतिहास की प्रदर्शनियों में सहयोग देने की जरूरत क्या है. कंपनी के प्रोडक्ट मैनेजर मार्क योशिताके कहते हैं कि गूगल संस्कृति को ऑनलाइन करने में मदद करना चाहता है बस.

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गूगल की इतिहास प्रदर्शनी अब पूरी दुनिया के बारे में है. चाहे वो स्पेन का गृह युद्ध या फिर दूसरे विश्व युद्ध के दौरान फ्रांस के नॉर्मेंडी में अमेरिकी सैनिकों के आने की घटना हो. इसके अलावा दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद की नीति का खात्मा और बर्लिन दीवार का गिरना भी इसमें शामिल है. इसमें 20वीं सदी की शुरुआत से अभी तक की सभी घटनाएं दर्ज हैं.

इसमें इतिहास के काले अध्याय भी हैं. होलोकॉस्ट प्रदर्शनी का एक बड़ा हिस्सा है. गूगल प्रोडक्ट ब्लॉग पर योशिताके लिखते हैं, "काफी सामग्री ऐसी है जो अंदर तक हिला कर रख देती है. जबकि कुछ ऐसी भी है जो पहले कभी भी इंटरनेट पर नहीं थी." कई संस्थाओं और म्यूजियमों से फोटो, दस्तावेज, वीडियो गूगल ने लिए हैं. इनमें बर्लिन के स्टेट म्यूजियम, आने फ्रांक का एमस्टरडम में घर, येरुशेलम में याद वाशेम सेंटर फॉर होलोकॉस्ट रिसर्च की भी प्रदर्शनियां शामिल हैं.

Screenshot Google Cultural Institute
तस्वीर: Google

देखने वालों पर इसका जबरदस्त प्रभाव पड़ता है. यह एक ऐसा पेज बन गया है जहां कोई भी घंटो गुजार सकता है और काफी जानकारी जमा कर सकता है. फोटो भी इतने आकर्षक हैं कि कोई भी एक के बाद देखता जा सकता है. इनमें डायरी जैसे लिखित दस्तावेज भी शामिल हैं.

वर्चुअल प्रदर्शनी की संरचना और डिजाइन देख कर दर्शक को महसूस होता है कि वह किसी म्यूजियम या किसी ऐतिहासिक स्थल पर घूम रहा है. आप समय की नाव में सवार हो सकते हैं. फोटो बड़े छोटे कर सकते हैं. मौके पर मौजूद लोगों को सुन सकते हैं, पढ़ सकते हैं. जानकारी और सूचना की कोई कमी नहीं.

वैसे तो 20 भाषाओं में यह सर्विस दिखाई जा रही है लेकिन फिर भी अधिकतर प्रदर्शनियां इंग्लिश में ही हैं.

संग्रहालयों को खतरा

यूजर सब कुछ घर बैठे देख सकता है. और सीधे सीधे सवाल खड़ा होता है कि क्या इस तरह की वर्चुअल प्रदर्शनियां किसी दिन संग्रहालयों की जगह ले लेंगी. और पूरी इमारत, जानकारी एनालॉग हो जाएगी.

जहां तक यह सवाल है, गूगल जवाब हां है. कंपनी यही करना चाहती है, "गूगल का मिशन है कि दुनिया भर की जानकारी जमा की जाए और इसे हर देश में पाने और इस्तेमाल करने लायक बनाया जाए." लेकिन इसमें दूसरे की भलाई करने का एक मात्र उद्देश्य नहीं है. दरअसल गूगल इंटरनेट की माध्यम से जानना चाहता है कि लोगों का क्या पसंद है.

गूगल का फायदा म्यूजियम भी उठा रहे हैं. आने फ्रांक हाउस के रोनाल्ड लियोपोल्ड कहते हैं, "इससे हर किसी को फायदा है." स्टीव बिको फाउंडेशन की ओबेनेवा आम्पोंशा भी इससे सहमत हैं. वह कहती हैं कि गूगल कल्चर इंस्टीट्यूट "सामग्री को इस ढंग से उपलब्ध करा रहा है कि अगर वो न हो तो यहां तक लोग नहीं पहुंच पाएंगे."

हर कोई येरुशलम, याद वाशेम या अन्य ऐतिहासिक संग्रहालयों तक नहीं पहुंच सकता. म्यूजिमों को लगता है कि गूगल पर्याप्त जानकारी देकर लोगों को उन तक पहुंचने की दिलचस्पी पैदा कर सकता है. खुद जाकर म्यूजिम देखने का अपना ही आनंद है लेकिन जब वक्त और जेब इस राह में बाधा बनें तो गूगल कल्चरल इंस्टीट्यूट के जरिए संग्रहालय देखना भी घाटे का सौदा नहीं है.

रिपोर्ट: मार्क वी ल्यूपके/आभा मोंढे

संपादन: ओंकार सिंह जनौटी

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