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सच्ची दौलत की तलाश में जर्मनी

९ दिसम्बर २०१२

किसी भी देश की संपन्नता मापने का पैमाना स्थायी विकास है. लेकिन अगर लोगों की खुशी और संतुष्टि जाननी हो तो क्या किया जाए. अब जर्मन संसद कोशिश कर रहे हैं जानने की कि सच्चा धन क्या है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

2011 में जर्मनी की अर्थव्यवस्था ने कुछ 2500 अरब यूरो सकल घरेलू उत्पाद के तौर पर उगाहे. पहले साल से ज्यादा. लेकिन जर्मन सांसदों के सामने सवाल खड़ा हुआ कि इन आंकड़ों का जर्मन नागरिकों की संतुष्टि से क्या कोई लेना देना है. दो साल पहले उन्होंने तय किया था कि इस मसले पर वह गंभीरता और गहराई से विचार करेंगे.

पोलिंग इंस्टीट्यूट ने सर्वे में पता लगाया कि सामान्य तौर पर आम लोगों को लगता है कि सर्वोच्च पदों पर बैठे लोगों को उनकी मुश्किलों और चिंताओं के बारे में कुछ नहीं पता होता.

भले ही जर्मनी की जीडीपी रिकॉर्ड बना रही हो लेकिन 2008 के वित्तीय संकट के बाद दुनिया सही लय में आ नहीं पाई है और संपन्न देशों में भी अमीर और गरीब के बीच का अंतर कम होने की बजाए बढ़ता जा रहा है. जो कि एक बात की ओर इशारा करता है कि कुछ है जो सही नहीं है.

क्या विकास भविष्य की संपन्नता की गारंटी है? चार साल से 34 जर्मन सांसद इस सवाल का जवाब खोज रहे हैं. ये ऐसे लोग हैं जिन्हें मुद्दे पर खोज करने के लिए संसद ने बिठाया है.

एसपीडी की डानिएला कोल्बे और सीडीयू के माथियास जिमर भी इसमें शामिल हैं. कोल्बे ने डॉयचे वेले से बातचीत में बताया कि ग्रुप के सभी नेता, भले ही किसी भी पार्टी के हों, वो सभी राजी हुए हैं कि विकास नहीं बता सकता कि समाज में संपन्नता या संतुष्टि का स्तर क्या है. अब इस संतुष्टि मापने के लिए एक विशेष इंडेक्स बनाया जा रहा है.

जीडीपी खुशी से

एशियाई देश भूटान का मानना है कि नागरिकों की खुशी के हिसाब से देश की संपन्नता मापी जानी चाहिए. सकल राष्ट्रीय खुशी (जीएनएच) में राष्ट्रीय सार्वजनिक नीति के तबत खुशी के अधिकार को अहमियत दी जाती है. कोल्बे कहते हैं कि जर्मनी पूरी तरह से इसे नहीं मानेगा. लेकिन उन्हें उम्मीद है कि जर्मनी इक्वाडोर, बोलीविया या ब्रिटेन जैसे देशों से कुछ सीखेगा. ब्रिटिश सरकार हैप्पीनेस सर्वे जैसे सर्वेक्षण करवा कर लोगों के मूड का पता लगाती है. एक कोशिश कि लोग कितने अमीर और संतुष्ट हैं.

Daniela Kolbe SPD
एसपीडी की डानिएला कोल्बेतस्वीर: picture-alliance/ZB

जर्मन संसदीय ग्रुप भी लोगों के मूड का अंदाजा लगाने के बारे में सोच रहा है.

जर्मनी में आर्थिक शोध संस्थान डीआईडबल्यू के डाटा विश्लेषण के मुताबिक जर्मनी के लोग संपन्नता और संतुष्टि को स्वास्थ्य, स्वास्थ्य सेवा, सामाजिक संतुष्टि और समाज में भागीदारी के ग्राफ पर आंकते हैं. वह इसमें स्वतंत्र और आजीवन शिक्षा, काम और रोजगार की गुणवत्ता को इसमें शामिल करते हैं. वह मानते हैं कि लोगों की जीवनशैली दोस्ताना और टिकाऊ होनी चाहिए. ताकि आने वाली पीढ़ी को भी संपन्न बनने के पर्याप्त मौके हों.

जब संपन्नता इस बात से न आंकी जाए कि किसके पास सबसे बड़ी, सबसे महंगी या कितनी कारें हैं. कौन साल में तीन बार छुट्टी ले कर दुनिया में घूमता है या किसे लगातार प्रमोशन मिल रहा है. तभी नेता भविष्य को नया आकार दे सकेंगे.

विकास, संपन्नता और जीवन की गुणवत्ता आंकने के लिए बनाए गए आयोग के सदस्यों ने अपने पहले लक्ष्य तो तय कर लिए हैं. वह है कि आर्थिक सिस्टम में लोगों की जरूरतों पर ध्यान देना जरूरी होगा. इसका मतलब है कि एक तो लोगों के काम की प्रशंसा और सुरक्षा करने की जरूरीत है दूसरी ओर यह भी आवश्यक है कि काम ही उनके जीवन का केंद्र बिंदु न बने जैसा कि अभी होता आ रहा है. "हम घूमते जाने वाले चक्र का खात्मा नहीं कर पा रहे हैं. लेकिन ऐसी संभावना होनी चाहिए कि काम के दौरान ऐसा समय भी हो जिसमें लोग कम करें. ज्यादा ट्रेनिंग करें. अपने बच्चों या बूढ़े होते माता पिता का ध्यान रख सकें." लोगों की कीमत पर अतिव्यय नहीं किया जाना चाहिए.

संपन्नता बनाए रखे

वर्क ग्रुप ने पता लगाया कि जर्मनी जैसा विकसित और अमीर देशों में संतुष्टि बहुत कम होती है. "अजीब अजीब सवाल खड़े होते हैं. जब लोग कटौती के बारे में बात करते हैं तो पहला सवाल खड़ा होता है कि आर्थिक विकास, रोजगार कैसे आगे बढ़ेगा जब उपभोग कम होगा. शायद पूरा सिस्टम ही उलट पुलट करना होगा."

फिलहाल तो मई 2013 का इंतजार है जब संपन्नता और संतुष्टि सूचकांक के नतीजे आएंगे. इसके बाद संतुष्टि की खोज आगे बढ़ाई जाएगी.

रिपोर्टः वोल्फगांग डिक/आभा मोंढे

संपादनः ए जमाल

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