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एचआईवी वायरस से कैंसर का इलाज

१२ दिसम्बर २०१२

अमरीकी वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि एचआईवी वाइरस के इस्तेमाल से अब ल्यूकीमिया का इलाज संभव है. फिलाडेल्फिया के एक अस्पताल में डॉक्टरों ने इस रूपान्तरित वाइरस से सात साल की एक बच्ची के इलाज में कामयाबी हासिल की.

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डॉक्टर बोन मैरो के इस कैंसर के इलाज के लिए कीमोथेरेपी का रास्ता अपना चुके थे लेकिन कैंसर पलट कर लौट रहा था. इस साल फरवरी में डॉक्टरों ने एमिली नाम की इस बच्ची पर इस नई विधि का प्रयोग किया जिसके सकारात्मक नतीजे सामने आए हैं. इसके लिए सबसे पहले इस एचआईवी वाइरस के जेनेटिक नक्शे से एचआईवी पैदा करने वाली प्रकृति को नष्ट किया गया. और फिर उसकी मदद से बच्ची के खुद के प्रतिरक्षक सेलों को ल्यूकीमिया से लड़ने में सक्षम बनाया गया. इस तकनीक को वैज्ञानिकों ने सीटीएल019 नाम दिया है और एमिली व्हाइटहेड पहली इंसान हैं जिन्हें इस तकनीक के इस्तेमाल से ल्यूकीमिया के इलाज में मदद मिली.

15.03.2011 DW-TV FIT UND GESUND Stammzellentherapie bei Leukämie

एचआईवी का खतरा नहीं

किसी भी नए जीन को प्रतिरक्षक सेलों तक पहुंचाने के लिए एक वायरस की आवश्यकता होती है. इस तकनीक का विवरण देते हुए अस्पताल ने अपनी वेबसाइट पर बताया है कि सबसे पहले मरीज के शरीर में पहले से मौजूद करोड़ों प्रतिरक्षक सेल अलग किए जाते हैं. फिर इस रूपांतरित एचआईवी वाइरस की मदद से उस जीन को शरीर में पहुंचाया जाता है जो ल्यूकीमिया से लड़ सकने वाले प्रतिरक्षक सेल शरीर में पैदा करे. अस्पताल ने कहा, ''इस तकनीक के जरिए शोधकर्ताओं ने वह मिसाइल बनाने में कामयाबी हासिल की है जो सीधे बी-सेल पर हमला करके बी-सेल ल्यूकीमिया को खत्म कर सकती है.''

एमिली का इलाज कर रहे डॉक्टर स्टीफन ग्रूप ने बताया कि इस पूरी प्रक्रिया में बच्ची को एचआईवी होने का कोई खतरा नहीं था. एचआईवी वायरस से एचआईवी या कोई और संक्रमण फैलाने वाले गुणों को जब नष्ट कर दिया गया तो उसमें केवल जीन को किसी दूसरे सेल तक पहुंचाने के लिए वाहक का गुण ही रह गया. इसका इस विधि में इस्तेमाल किया जा रहा है.

उम्मीद की लहर

डॉक्टर ग्रूप ने उम्मीद जाहिर की है कि अगर इस विधि से इलाज आगे और कामयाब साबित हुआ तो एमिली जैसे मरीजों के लिए कैंसर का इलाज बोन मैरो ट्रांस्प्लांट के मुकाबले कम तकलीफदेह और सस्ता भी होगा. इस इलाज की खास बात यह भी बताई जा रही है कि एमिली के शरीर से कैंसर पूरी तरह चला गया और साथ ही उसके शरीर में वे प्रतिरक्षक सेल रह गए जो आगे भी कैंसर के दोबारा पनपने से एमिली की रक्षा करेंगे. फिलहाल तो एमिली के शरीर में कैंसर जैसे कोई सेल दिखाई नहीं दे रहे लेकिन यह असर कितने साल तक रहेगा यह अभी कहना जल्दबाजी होगी.

रिपोर्ट: समरा फातिमा(एएफपी)

संपादन: महेश झा

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