1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

भेड़िये से डर और खुशी

Priya Esselborn७ फ़रवरी २०१३

20वीं सदी में अंधाधुंध शिकार के चलते जर्मनी से लगभग विलुप्त हो चुके भेड़िये अब वापस लौट रहे हैं. ये वापसी किसानों के लिए सिर दर्द और वन संरक्षकों के लिए खुशखबरी है. ऐसे में दोनो को खुश कैसे किया जाए.

https://p.dw.com/p/17Zz4
तस्वीर: picture-alliance/dpa

बर्लिन के बाहरी इलाके में स्थित लाइबनिज इंस्टीट्यूट फॉर जू एंड वाइल्डलाइफ रिसर्च जानवरों से जुड़ा बड़ा संग्रहालय है. इसकी दीवारों पर बंदर से लेकर बाघ तक, हर तरह के जानवर के कंकाल, खाल व कोशिकाओं के नमूने हैं.

यहीं पर ओलिवर क्रोन और उनकी टीम जंगलों में मरे मिलने वाले भेड़ियों का परीक्षण करती हैं. अपने कार्यकाल के दौरान क्रोन ने कई भेड़ियों का परीक्षण किया जो किसी हमले में मारे गए. क्रोन ने एक घटना के बारे में बताया जिसमें किसी भेड़िये को गाड़ी के नीचे कुचल कर मारा गया था. वह कहते हैं, "जंगल के बीच वह एक संकरा रास्ता था जहां गाड़ी ने पहले काफी दूर तक भेड़िये को खदेड़ा. हमें यह भी पता चला कि भेड़िये ने भागने की बहुत कोशिश की लेकिन फिर उसे घेर कर कुचल दिया गया और गाड़ी आगे बढ़ गई."

Oliver Krone
ओलिवर क्रोनतस्वीर: Oliver Krone

संरक्षक खुश पर किसान दुखी

बीते सालों में जर्मनी में जंगल में जीवन को लौटाने की बहुत कोशिशें हुई हैं. इनका असर दिख रहा है. पूर्वी यूरोप से भेड़िये अब फिर जर्मनी के जंगलों में लौट रहे हैं. बीसवीं सदी में लुप्त हो चुके भेड़ियों की वापसी वन संरक्षकों और वैज्ञानिकों के लिए खुशी की खबर हे. लेकिन किसान और चरवाहे इससे काफी परेशान हैं. 2007 से इस इलाके में भेड़िये किसानों के लगभग 360 जानवर मार कर खा चुके हैं.

क्रोन ने बताया कि ये भेड़िये रूस और पोलैंड के जंगलों से आ रहे हैं और जर्मनी के ब्रांडेनबुर्ग प्रांत में पनाह ले रहे हैं. कुछ भेड़िये स्विट्जरलैंड, फ्रांस और इटली से भी आए हैं. भेड़िये जर्मनी में विलुप्त हो चुकी जानवरों की प्रजाति में शामिल हैं और इन्हें मारने पर प्रतिबंध है. क्रोन के अनुसार शिकारी फिर भी भेड़ियों को मारकर गैरकानूनी शिकार कर रहे हैं.

क्रोन ने डॉयचे वेले को बताया, "हमारे पास केवल वे भेड़िये ही आ रहे हैं जिन्हें पेट में गोली मारी गई है. वे भेड़िए जो सही निशाने का शिकार होते हैं और मौके पर ही मर जाते हैं उन्हें शिकारी अपने साथ ले जाकर कहीं गाड़ देते हैं और उनका पता नहीं चल पाता."

ब्रांडेनबुर्ग की सरकार और पशु संरक्षक समूहों ने मिलकर वह रास्ता निकाला है जिससे किसान औऱ संरक्षक दोनो ही पक्ष खुश हो सकें. इसके अंतर्गत किसान अगर इस बात का प्रमाण दें कि उनके जानवर को किसी भेड़िये ने मारा है तो उसे इसके बदले मुआवजा दिया जाएगा.

पशु संरक्षण समूह नाबू के लिए काम करने वाली काथरीन कहती हैं, "किसानों के लिए यह कठिन समय है लेकिन इस कार्यक्रम से उन्हें काफी राहत मिली है."

भेड़ियों के लिए संकट

ब्रांडेनबुर्ग के किसान लुट्ज उवे काह्न कार्यक्रम से संतुष्ट नहीं हैं. उन्होंने बताया उनके साथी किसानों को इस मुआवजे के लिए एक साल तक का लम्बा इंतजार करना पड़ा है.

काथरीन वाइनबर्ग ने माना कि प्रशासन में इस तरह के मामले के लिए काम करने वाले बहुत कम लोग हैं, इसीलिए मुआवजा मिलने में समय लगता है. हालंकि वह इस बात से इनकार करती हैं कि इसमें एक साल का समय लग जाता है. उनके मुताबिक किसान को लगभग आठ हफ्तों में हर्जाना मिल जाता है. काह्न मानते हैं कि किसानों को अपने दुश्मन इन भेड़ियों से निबटने की छूट होनी चाहिए. उन्होंने डॉयचे वेले से कहा, "इसका हल ये है कि भेड़िये या तो नेचर पार्क में रहें या फिर आर्मी के अधिकार वाले इलाकों में, लेकिन अगर वे हमारे इलाके में घुस कर हमारे लिए खतरा बनेंगे तो हमें उन्हें मारने की छूट होनी चाहिए. अगर हम ऐसा नहीं करेंगे तो वे हमारे जानवरों को मार डालेंगे."

Symbolbild Wolfsaugen
दंतकथाएं भी भेड़ियों की दुश्मनतस्वीर: Fotolia/JULA

फिल्मों का असर

लाइबनिज इंस्टीट्यूट के ओलिव क्रोन के मुताबिक भेड़ियों के प्रति नफरत के पीछे फिल्मों और कहानियों का भी बड़ा हाथ है. भेड़िये का नाम सुनते ही लोग घबरा जाते हैं. हर कोई सोच रहा है कि अगर किसी जंगल में भेड़िये रहते हैं तो वहां आप कदम नहीं रख सकते, जो कि बेवकूफी भरी बात है. भेड़िया खुद इंसान से इतना डरता है कि उसे देख पाना ही मुश्किल है.

छानबीन में पता चला है कि लगभग 160 भेड़िए ब्रांडेनबुर्ग के जंगलों में घूम रहे हैं. हालांकि कुछ लोग फलते फूलते वन्य जीवन की सराहना कर रे हैं. डीडब्ल्यू से बातचीत में एक महिला ने कहा, "मुझे भेड़ियों से डर नहीं लगता. यह हमारे लिए सम्मान की बात है अगर खुले जंगल में हमें कोई भेड़िया टहलता घूमता दिखाई दे जाए. असल में तो वे बड़े शर्मीले जानवर होते हैं उनसे डरने वाली क्या बात है."

रिपोर्ट: मिषाएल  स्काटुरो/एसएफ

संपादन: ओंकार सिंह जनौटी

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी

और रिपोर्टें देखें