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कानून करेगा पीड़ित महिलाओं की मदद

६ मार्च २०१३

दक्षिण एशिया में महिलाओं के खिलाफ हिंसा पर बहस चलती रहती है, लेकिन ज्यादातर लोगों को कानून पर विश्वास भी नहीं होता. पाकिस्तान में तेजाब के हमलों के खिलाफ एक कानून इस तरह की हिंसक घटनाओं को रोकने में सफल रहा है.

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तस्वीर: Abdul Ghani Kakar

पाकिस्तान में हर साल हजारों लोग तेजाब हमलों का शिकार बनते हैं. इनमें 60 फीसदी महिलाएं हैं. पाकिस्तान में ऐसिड सर्वाइवर्स फाउंडेशन के मुताबिक 2012 में 7516 लोग ऐसे हमलों का शिकार बने. लेकिन सरकार द्वारा कानूनों में बदलाव ने ऐसी घटनाओं को कम करने में मदद की है. 2011 में पारित किए गए संशोधन के बारे में मेहरगढ़ सेंटर फॉर लर्निंग की निदेशक मलीहा हुसैन बताती हैं, "नया संशोधन इस तरह के हमलों को अपराध का दर्जा देता है. अपराधी को आजीवन कारावास की सजा या कम से कम 14 साल दिए जा सकते हैं और उसे 10,000 डॉलर का हर्जाना भरना पड़ सकता है." पाकिस्तान में सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि यह कानून काफी सफल रहा है. तेजाब पीड़ितों के साथ काम कर रहे संगठन ऐसिड सर्वाइवर्स फाउंडेशन की वैलरी खान यूसुफजई कहती हैं, कि कानून में संशोधन के बाद 18 प्रतिशत अपराधियों को सजा मिलने लगी है. इससे पहले केवल 6 प्रतिशत अपराधियों को सजा मिलती थी.

नए कानून का फायदा

वकील सिकंदर नईम कहते हैं कि नए कानून के साथ अपराधियों को सजा देना भी आसान हो गया है, खासकर इसलिए कि सुप्रीम कोर्ट अब ऐसे मामलों में दिलचस्पी ले रहा है. अब केवल पीड़ित की शिकायत के आधार पर आरोपी को सजा मिल सकती है. लेकिन फिल्मकार और सामाजिक कार्यकर्ता समर मिनल्लाह का कहना है कि कानूनों पर अमल के लिए सरकारी एजेंसियों को भी अपना काम सही तरीके से करना होगा, "अफसोस की बात है कि हमारी पुलिस, कानून लागू करने वाली एजेंसियां, वे खुद इन मामलों को लेकर संवेदनशील नहीं हैं. और यह पुरुष प्रधान सोच सब जगह है, चाहे पुलिस की बात करें या अदालत की." कार्यकर्ता मलीहा हुसैन भी मानती हैं कि केवल पुराने कानूनों में संशोधन करने से फायदा नहीं होगा, "हमें एक संयुक्त कानून बनाना पड़ेगा जो इसके साथ काम करेगा. क्योंकि केवल इस एक कानून से कुछ नहीं होगा. मिसाल के तौर पर यौन शोषण के खिलाफ पुराने कानून में संशोधन किया गया और साथ ही नए पारित किए गए."

पाकिस्तान में मानवाधिकार संगठनों का मानना है कि 2011 में 1,000 लड़कियों को परिवार की इज्जत के नाम पर मार दिया गया. पीड़ितों का कहना है कि कानून में बदलाव और 14 साल की सजा भी काफी नहीं है. नजीरन बीबी की कहानी भी कुछ ऐसी ही है. 13 साल की उम्र में उन्हें बेच कर उनकी शादी कर दी गई. नजीरन की दो बेटियां थीं और उसके पति के मां बाप ने जोर जबरदस्ती से नजीरन की शादी उनके दूसरे बेटे से कर दी. यह बेटा पहले से ही शादी शुदा था. "उसकी पत्नी मुझसे बेहद नाराज रहती थी. वह मेरा अपमान करती रहती और मुझपर तेजाब फेंकती. हमारी शादी के तीन महीनों बाद एक रात को जब मैं सो रही थी, उसने मेरे चेहरे, मेरी छाती, मेरे पेट और मेरे बाएं हाथ पर तेजाब फेंक दिया." नजीरन ने अदालत में मामला दर्ज किया लेकिन परिवार के दबाव में आ कर फिर 4,000 डॉलर का मुआवजा मंजूर कर लिया. अब नजीरन ने अपने लिए जमीन खरीद ली है और वहां एक छोटा सा दुकान भी चलाती हैं. नजीरन अब भी अपने पति से बात करती हैं. कहती हैं "(मेरी बेटियों) उनको पिता की जरूरत है और कभी कभी घर में एक पुरुष का होना जरूरी होता है."

कैसी बदलेगी मानसिकता

एक पुरुष प्रधान समाज में रहते हुए घर पर पुरुष की अहमियत इस बात से भी साफ होती है कि बच्चियों को जन्म के बाद से ही बोझ का दर्जा दे दिया जाता है. मिनल्लाह कहती हैं कि समाज को अपनी सोच बदलनी होगी और काफी हद तक ऐसा हो रहा है, "कभी कभी पिता अपनी बेटियों के पक्ष में खड़े होते हैं, जैसे किसी कबायली फैसले के खिलाफ. यह उनकी तरफ से बहुत बहादुरी का काम है. कई बार पुरुष खुद इस तरह की मानसिकता को खत्म करने में महिलाओं का सहयोग कर सकते हैं." पाकिस्तान में अलग अलग समुदाय बड़ी परेशानी खड़ी कर सकते हैं. कानून भले ही केंद्र सरकार द्वारा पारित किए जाते हैं, लेकिन इन्हें कार्यान्वित करना प्रांतों की सरकारों का काम है. फाटा जैसे कबायली इलाकों में शायद महिलाओं को कानूनों का पूरा फायदा न मिले. लेकिन जैसा कि मलीहा हुसैन कहती हैं, "केंद्र सरकार ने दो सालों में सात कानून पारित किए हैं जो महिला हिंसा को रोकने में काम आएंगे. और जहां तक कबायली इलाकों और उनके जिरगों की बात है, उस पर सामाजिक कार्यकर्ताओं और केंद्र सरकार को साथ काम करना होगा.

रिपोर्टः मानसी गोपालकृष्णन(एएफपी)

संपादनः महेश झा

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