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मनोरंजक फिल्में करना चाहती हैं बिपाशा

१३ मार्च २०१३

अभिनेत्री बिपाशा बसु ने अपने करियर में अलग अलग भूमिकाएं की हैं. अब वे ऐसी फिल्में करना चाहती हैं जो पैसे कमाने के साथ दर्शकों का मनोरंजन करे और उन्हें अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका भी दे.

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तस्वीर: DW/P. Mani Tewari

राज थ्री के बाद एक और हॉरर फिल्म आत्मा में अभिनय करने वाली अभिनेत्री बिपाशा बसु कहती हैं कि वह मनोरंजन प्रधान फिल्मों पर ज्यादा ध्यान देना चाहती हैं. वह कहती हैं कि उन्होंने अपने तेरह साल लंबे करियर में इतनी विविध भूमिकाएं की हैं कि उनको किसी एक किरदार की छवि से बंध कर रह जाने का कोई खतरा नहीं है. 22 मार्च को रिलीज होने वाली आत्मा के प्रमोशन के सिलसिले में कोलकाता पहुंची बिपाशा बसु ने डायचे वेले के साथ बातचीत की.

राज थ्री के बाद अब आत्मा--लगातार एक ही तरह की भूमिकाएं क्यों कर रही हैं?

दरअसल, राज थ्री के बाद अगली सुपरनेचरल थ्रिलर करने से पहले मैं एक ब्रेक लेना चाहती थी. लेकिन आत्मा की पटकथा मुझे बेहद पसंद आई. इसके निर्देशक सुपर्ण वर्मा से मेरा पुराना परिचय है. इस फिल्म में माया का किरदार मुझे काफी जंचा. इसलिए मैंने इसके लिए हामी भर दी.

इस फिल्म से आपको कैसी उम्मीदें हैं?

मैं बेहद आशावादी हूं. फिल्म की कहानी और सभी कलाकारों का अभिनय अच्छा है. इसलिए उम्मीद है कि दर्शक इसे पंसद करेंगे.

Indien Bollywood Schauspielerin Bipasha Basu
तस्वीर: DW/P. Mani Tewari

आपने अपने करियर में कई सुपरनेचरल किरदार निभाए हैं. क्या ऐसे किरदार आपको काफी पसंद हैं?

ऐसी कोई बात नहीं है. मैंने अपने करियर में 20 से ज्यादा कामेडी फिल्मों में भी काम किया है. उन सबमें मेरी भूमिकाएं अलग-अलग थीं. उनके मुकाबले हॉरर फिल्में कम ही की हैं.

लेकिन लगातार ऐसी हॉरर फिल्में करने से क्या आपके एक ही किरदार की छवि में बंधने का खतरा नहीं है?

मुझे ऐसा कोई खतरा नहीं है. मैंने करियर की शुरूआत ही नेगेटिव रोल से की थी. उसके बाद मैंने हर तरह की भूमिकाएं की हैं. मेरे लिए किरदार सबसे अहम है. मुझे चुनौतीपूर्ण किरदारों को निभाना अच्छा लगता है.

आपको निजी जीवन में भूत-प्रेत से डर लगता है?

मैं कोई बहुत बहादुर लड़की नहीं हूं. इस फिल्म की शूटिंग के दौरान भी कई बार डरावने अनुभव हुए.

आगे कैसी भूमिकाएं करना चाहती हैं?

मैं मनोरंजन प्रधान भूमिकाएं करना चाहती हूं. लोग ऐसी फिल्में पसंद करते हैं. एक अभिनेत्री के तौर पर मैं कामेडी फिल्मों में बेहतर भूमिकाएं निभाना चाहती हूं. मैं कला फिल्मों में बेहतर भूमिकाएं नहीं करना चाहतीं क्योंकि उनमें मेहनत ज्यादा करनी पड़ती है और दर्शक नहीं मिलते.

तो क्या अब भी कला और व्यावसायिक सिनेमा में पहले जैसी खाई है?

अब कला व मुख्यधारा के सिनेमा के बीच का अंतर घट रहा है. चीजें बदल रही हैं और लोग हर तरह की फिल्में देखना चाहते हैं. इससे साफ है कि सिनेमा बेहतर दौर की ओर बढ़ रहा है.

क्या अब कभी कला फिल्मों में काम नहीं करेंगी?

मैंने ऐसा नहीं कहा कि कभी काम ही नहीं करूंगी. फिलहाल मैं वैसी फिल्मों पर ध्यान दे रही हूं जो पैसे कमाने के साथ ही दर्शकों का मनोरंजन करे और मुझे उनमें अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका मिले.

शादी कब तक करेंगी?

मैं तो शादी के लिए तैयार बैठी हूं. कोई बंगाली लड़का मिले तो कर लूंगी. मां खुश हो जाएंगी.

इंटरव्यू: प्रभाकर, कोलकाता

संपादन: महेश झा

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