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तबाही जिसकी चर्चा नहीं

१६ मार्च २०१३

जब सैंडी तूफान ने न्यूयॉर्क को चपेट में लिया तो दुनिया भर में चर्चा हुई. लेकिन इस तूफान ने हैती, क्यूबा और जमैका में कितनों की जान ली...हर साल फिलिपींस में कितने बवंडर आते हैं, यह कितने लोग जानते हैं?

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तस्वीर: Jewel Samad/AFP/Getty Images

अंतरराष्ट्रीय रेड क्रॉस सोसाइटी के अनुसार 10 में से नौ प्राकृतिक आपदाओं से तो हम अनजान ही रहते हैं. लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि इससे होने वाली तबाही किसी भी तरह दूसरी आपदाओं से कम है. रेड क्रॉस की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में होने वाली तबाहियों में से 91 फीसदी की तो मीडिया में चर्चा ही नहीं होती. इससे कितने लोगों का जीवन अस्त व्यस्त हो जाता है हमें इसका भी कोई अंदाजा नहीं होता. अंतरराष्ट्रीय रेड क्रॉस फेडरेशन और रेड क्रेसेंट सोसाइटी ने मानवीय मदद और नागरिक सुरक्षा के यूरोपीय आयोग के साथ मिलकर इन आपदाओं को लोगों के सामने लाने का फैसला किया है. एलिजाबेथ सूली अंतरराष्ट्रीय रेड क्रॉस और रेड क्रिसेंट फाउंडेशन के लिए आपदा राहत फंड जुटाने का काम करती हैं. उनके साथ डॉयचे वेले ने की विशेष बातचीत.

ऐसा कैसे है कि 10 में से नौ आपदाओं के बारे में हमें पता ही नहीं चल पाता?

इसके कई कारण हो सकते हैं. कई बार ये मामले छोटे होते हैं तो मीडिया और मानवाधिकार के लिए काम करने वाले संगठन इन पर ज्यादा ध्यान नहीं देते. कई बार ऐसा भी होता है कि एक ही इलाके से बार बार गरीबी, हिंसा और संकट की इतनी घटनाएं सामने आती रहती हैं कि मीडिया भी इनकी बार बार बात करने में थकावट महसूस करता है.

इनमें से एक देश तो मध्य अफ्रीकी गणराज्य है. कांगो में चल रही हिंसा से भाग रहे शरणार्थियों की संख्या भी काफी है. वे बहुत दूर दराज के इलाकों में हैं. इस तरह के संकट की बात तो होती है लेकिन इनमें न ही दान देने वालों को और न ही आम लोगों को दिलचस्पी होती है. वहीं किसी बड़े भूकंप या सुनामी के समय आगे आकर मदद करने में सब को रुचि होती है. ये हादसे कहां हो रहे हैं इस बात का भी काफी असर पड़ता है, कुछ जगहों में लोगों को ज्यादा दिलचस्पी होती है, कुछ में नहीं.

ऐसा क्यों हुआ कि अमेरिका में आए सैंडी तूफान में मरने वाले 130 लोगों की तो मीडिया ने खूब चर्चा की, लेकिन ठीक उसके दो महीने बाद फिलिपींस में आए बवंडर में मारे गए एक हजार लोगों की कोई बात नहीं निकली?

मीडिया वही खबरें दिखाता है जिनमें लोगों की रुचि होती है. कई लोग केवल यही जानने में दिलचस्पी रखते हैं कि न्यूयॉर्क जैसे बड़े शहरों में क्या हुआ जब वहां सैंडी का प्रकोप आया. यहीं से मीडया का ध्यान भी दूसरी तरफ मुड़ जाता है. लोगों को यह जानने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं कि उसी तूफान ने कैरेबियाई तट पर हैती, क्यूबा और जमैका को भी भारी नुकसान पहुंचाया. उन देशों में भी काफी तबाही हुई लेकिन ये बात सुर्खियों में नहीं आई. ठीक इसी तरह फिलिपींस में साल भर में कितने आंधी भरे तूफान तबाही मचाते हैं, लेकिन उन जगहों से ऐसी खबरें सुनना इतनी आम बात है कि उनके बारे में कोई रुचि नहीं रह गई है.

Indien Zyklon
तस्वीर: AP

आप इन आपदाओं के बारे में लोगों में जागरुकता फैलाने के लिए क्या किया जा रहा है? जैसे युगांडा में लोग इबोला से कैसे जूझ रहे हैं. यह ऐसा वाइरस है जिसका कोई इलाज नहीं है. इसके बारे में जानकारी फैलाने के पीछे क्या मकसद है?

इबोला की जहां तक बात है इसके लिए बहुत तेज प्रतिक्रिया की जरूरत है. हम दो तीन हफ्तों तक सिर्फ वित्तीय मदद की आस में बैठ कर इंतजार नहीं कर सकते हैं. इसे फैलने से रोकने के लिए और लोगों तक जल्दी से जल्दी मदद पहुंचाने के अलावा लोगों को यह बताना भी जरूरी है कि यह वायरस फैलता कैसे है.

युगांडा में इसे काबू करने में हम काफी कामयाब हुए हैं. हम फिलहाल एक मूल्यांकन कर रहे हैं. हमें इस बात का भी खास खयाल रखना है कि जो लोग इन इलाकों में मदद के लिए खुद अपनी जान खतरे में डालते हैं, उनकी सुरक्षा कैसे की जाए. इस मूल्यांकन से हमें यह भी पता चलेगा कि हम अफ्रीका के दूसरे देशों को कैसे सतर्क कर सकते हैं.

यह कैसे तय होता है कि किस आपदा के बारे में लोगों को बताना है?

आपदा कितनी बड़ी या कितनी आकस्मिक है, यह तय करता है मीडिया. और आम लोगों को भी भूकंप, बाढ़ और तूफान के बारे में जल्दी पता चल जाता है. उन्हें प्रभावशाली ढंग से दिखाया जाता है और उनका लोगों पर काफी असर भी पड़ता है. जैसे मैडागास्कर में तूफान को ही ले लीजिए जहां 22,000 लोग प्रभावित हुए हैं और 13 जानें गई हैं. लेकिन हमें यूरोपियन मीडिया में इसके बारे में ज्यादा कुछ सुनने को नहीं मिला.

रेड क्रॉस और रेड क्रिसेंट इन संकटों की तरफ लोगों का ध्यान खींचने के लिए किस तरह के कदम उठा रहा है?

हम यूरोपीय संघ जैसे सहयोगियों के साथ काम करते हैं ताकि आपातकालीन फंड से प्रभावित क्षेत्रों तक जल्द से जल्द मदद पहुंचाई जा सके. साथ ही हम इन आपदाओं को लेकर अपनी जानकारी का पूरा इस्तेमाल करते हैं ताकि जहां ऐसी आपदाओं का खतरा होता है, वहां इनसे बचने के लिए पहले से तैयारी की जा सके. आपदाओं के प्रभाव को कम करने के लिए इनके खतरे को कम करने में पैसा खर्च करना जरूरी है. कुछ बहुत आसान तरीके हैं जिनसे बाढ़ और तूफान से होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है.

इसके लिए दो बाते ध्यान में रखनी होती हैं, पहली यह कि हम इन्हें भूलें नहीं और जल्दी से जल्दी मदद पहुंचाएं. दूसरी बात यह कि हम इन हादसों से जो भी सीखते हैं उनसे भविष्य के लिए लोगों को तैयार करें ताकि वे अपनी हिफाजत खुद कर सकें.

इंटरव्यूः सारा स्टेफन/ एसएफ

संपादनः आभा मोंढे

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