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माली हिंसा का एक साल

२१ मार्च २०१३

हिंसा और दर्द की कहानी जितनी लम्बी हो उससे निकलना उतना ही मुश्किल. माली में चरमपंथी हिंसा को एक साल हो गया. अप्रैल में फ्रांसीसी सेना माली से वापसी की तैयारी कर रही है, क्षेत्रीय लोगों को डर सता रहा है कि उसके बाद क्या?

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तस्वीर: Reuters

फ्रांसीसी हस्तक्षेप से अफ्रीकी देश माली के कई इलाकों में हिंसा भले ही काबू में आ गई हो लेकिन इन इलाकों में आपसी दोषारोपण का माहौल सर उठाता नजर आ रहा है. हिंसा की काली छाया में बेघर हुए लोग टिम्बकटू वापस लौटने से घबरा रहे हैं. लोगों में आपसी मतभेद आम बात हो गई है.

पिछले साल जनवरी में टिम्बकटू की रहने वाली फातिमा अब्राहमाना ने तय किया कि वह अपना ब्यूटी पार्लर खोलने का सपना छोड़ कर लड़ाई में हिस्सा लेंगी. अपनी बहन के साथ वह बस में चढ़ गईं और तय किया कि फौज के साथ लड़ेंगी. सपनों के टूटने बिखरने की यह कहानी सिर्फ 18 साल की अब्राहमाना की नहीं है. इस हिंसा ने सैकड़ों युवाओं को चपेट में ले लिया.

फ्रांसीसी सेना की वापसी

हाल में फ्रांसीसी राष्ट्रपति ओलांद ने कहा कि माली में विद्रोहियों से निबटने के लिए भेजी गई फ्रांसीसी सेना को वह वापस बुला लेंगे. जानकारों के अनुसार उत्तरी माली में रहने वालों के लिए यह चिंता की बात है क्योंकि उन्हें डर है कि शायद खुद अफ्रीकी सेना अकेले शांति और सुरक्षा मुहैया न करा सके. उन्हें यह भी लग रहा है कि शायद फ्रांसीसी सेना के वापस लौटते ही विद्रोहियों का प्रभाव फिर बढ़ने लगे.

पिछले साल 22 मार्च को राष्ट्रपति अमादू तूमानी तूर को बेदखल कर तुराग विद्रोहियों के नेशनल मूवमेंट फॉर लिबरेशन ऑफ अजावाद ने उत्तरी माली को अपने कब्जे में कर लिया. तख्तापलट के बाद विद्रोहियों ने उत्तरी माली के प्रांत अजावाद के माली से स्वतंत्र होने की घोषणा कर दी. बाद में यहां चरमपंथी तुरेग विद्रोहियों ने लोगों पर कट्टर शरिया कानून थोपने शुरू कर दिए. माली में पूरे साल हिंसा का दौर रहा. माली सरकार के मदद मांगने पर फ्रांस ने 11 जनवरी 2013 को विद्रोहियों को खिलाफ अफ्रीकी सेना की मदद के लिए अपनी सेना भेजी.

Mali Flüchtlinge in Mauretanien
तस्वीर: picture-alliance/dpa

दिलों में बैठा डर

चरमपंथियों तुरेगियों के कब्जे में रहे माली के टिम्बकटू, गाओ और किजाल प्रांतों के दो लाख तीस हजार लोग अपने घर छोड़ कर भाग खड़े हुए, इनमें से कुछ ही वापस आने की हिम्मत जुटा पाए हैं. जेनेवा में इंटरनेशनल डिस्प्लेसमेंट मॉनिटरिंग सेंटर में काम करने वाली एलिजाबेथ रशिंग मानती हैं कि अभी लोगों का इन प्रांतों में अपने घरों को लौट जाना जल्दबाजी होगी. उनके अनुसार अभी भी मामला पूरी तरह शांत नहीं हुआ है. "तनाव अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है और लोगों को धमकियां मिलने की घटनाएं भी सामने आ रही हैं. इसके अलावा लोगों के मन में यह भी डर है कि चरमपंथी चुप नहीं बैठेंगे और फ्रांसीसी सेना के हटते ही फिर से हमले और हिंसा की घटनाएं शुरू कर देंगे." क्षेत्रीय लोगों को लगने लगा है कि माली का सामाजिक ताना बाना बिखर गया है जिसकी दोबारा मरम्मत में शायद दसियों साल लग जाएंगे.

अदाने दिआलो हिंसा के चलते गाओ से भाग कर राजधानी बमाको चले गए थे. वह कहते हैं, "हम दोबारा शांत समाज कैसे बनाएंगे? फ्रांसीसी सेना के चले जाने के बाद जीवन दोबारा सामान्य हो जाने की बात की जा रही है, लेकिन क्या हम वो सारी हिंसा भूल पाएंगे या अपराधियों को माफ कर पाएंगे? बहुत से तुरेग वापस अपने घरों को लौटने में हिचकिचा रहे हैं. वे विद्रोही हमारे बीच ही रहते थे और फिर उन्होंने हमारे ही खिलाफ हिंसा छेड़ दी. आज भी हमें उनकी परछाई डराती है."

उधर बुधवार रात को टिम्बकटू हवाई अड्डे के बाहर आत्मघाती धमाके के कारण माली के एक सैनिक की मौत हुई और छह अन्य घायल हुए हैं. फ्रांसीसी सेना ने इसके बाद जवाबी कार्रवाई की. माली के सैन्य प्रवक्ता सांबा कौलीबाली ने बताया, "माली सैन्य चौकी पर यह हुआ. फ्रांसीसी चेक पोस्ट से पहले. हम तलाश कर रहे थे कि कहीं इलाके में कोई और हमलावर तो नहीं हैं."

दो महीने पहले अल कायदा से जुड़े आतंकियों को उत्तरी माली से खदेड़ा गया था. यह आत्मघाती विस्फोट ऐसे वक्त हुआ है.जब फ्रांसीसी सेना माली से जाने की तैयारी कर रही है.

रिपोर्टः समरा फातिमा (डीपीए)

संपादनः आभा मोंढे

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