1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

दिल ही तो है!

१० अप्रैल २०१३

हाल ही में जर्मनी के हनोवर मेडिकल स्कूल में 18 साल के एक व्यक्ति के शरीर में हार्ट पम्प लगाया गया. यह हार्ट पम्प पाने वाला जर्मनी का 1,000वां शख्स है. देश में दिल की जगह मशीनें लगवाने वालों की संख्या बढ़ रही है.

https://p.dw.com/p/18Cqr
तस्वीर: picture-alliance/dpa

हार्ट पम्प यानी दिल में लगने वाली मशीनों का जर्मनी में काफी इस्तेमाल होने लगा है. डॉक्टरों का कहना है कि मशीन लगवाने की जगह दिल का प्रत्यारोपण एक बेहतर विकल्प है. लेकिन अंगदान करने वालों की कमी के कारण ऐसा कम ही हो पाता है.

हार्टमेट2 के नाम से मशहूर इस पम्प का काम है दिल तक सही मात्रा में खून पहुंचाना. दिल का काम होता है शरीर में रक्तसंचार का नियंत्रण करना, पर कई बार हमारा दिल इतना कमजोर हो जाता है कि वह खून का ठीक से संचार नहीं कर पाता. ऐसे में या तो दिल का प्रत्यारोपण किया जाता है या फिर दिल के पास एक पम्प लगा दिया जाता है जो खून के संचार में मदद करता है. हार्टमेट2 को कैलिफोर्निया की एक कंपनी ने बनाया है, यह करीब आठ सेंटी मीटर बड़ा है और इसका वजन 280 ग्राम है. पम्प को कंट्रोल करने के लिए एक मशीन लगी जाती है जो बैटरी से चलती है. इसे शर्ट की जेब में भी रखा जा सकता है.

जर्मनी में हार्ट पम्प लगवाने वाले 1,000वें व्यक्ति यान लुकास हुएल्सेबुस कंसट्रक्शन वर्कर हैं. बीते साल दिसंबर में उनकी दिल की बीमारी का पता चला. अब जनवरी से वह इस पम्प के साथ जी रहे हैं. वह कहते हैं कि उन्हें देख कर कोई नहीं कह सकता कि उन्हें दिल की बीमारी है, "मैं भला चंगा हूं, जैसे कभी कुछ हुआ ही ना हो." हालांकि डॉक्टरों ने उन्हें ज्यादा व्यायाम करने से मना किया हुआ है. उन्हें स्वीमिंग करने या डिस्को में जाने की इजाजत नहीं है. लेकिन यान लुकास को इस बात से कोई हर्ज नहीं, "निजी तौर पर मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मैं घर पर बैठा हूं या फिर पार्टी कर रहा हूं."

Herzpumpe
इस पम्प का काम है दिल तक सही मात्रा में खून पहुंचाना.तस्वीर: picture-alliance/dpa

हनोवर मेडिकल कॉलेज के हृदय रोग विशेषज्ञ आक्सेल हाफेरिष बताते हैं कि हार्ट पम्प लगवाने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है, "जर्मनी में हृदय दान करने वाले लोग बहुत कम हैं, इसीलिए इस तरह की मशीनों की अहमियत बढ़ रही है." कृत्रिम दिल अलग अलग तरह के होते हैं. इनकी पांच से सात अलग किस्में मौजूद हैं. 1987 से ही जर्मनी में इनका इस्तेमाल किया जा रहा है. पिछले साल ही करीब 800 लोगों को इनका फायदा पहुंचा.

डॉक्टर हाफेरिष का कहना है कि इनसे मरीजों के जीवन में बदलाव आता है. हालांकि कुछ लोग शरीर में मशीन लगाने की कल्पना भी नहीं कर सकता, तो कुछ इसे किसी और का दिल लगवाने से बेहतर विकल्प मानते हैं. शुरुआत में हार्ट पम्प या दिल में लगने वाले कोई भी मशीन इस विचार के साथ लगाई जाती है कि किसी डोनर के आते ही मशीन हटा कर नया दिल लगा दिया जाएगा. लेकिन अंगदान करने वाले लोग कम हैं और दिल के मरीज ज्यादा. जीवनशैली में आ रहे बदलावों के साथ साथ दिल के मरीजों की संख्या में भी इजाफा होता चला जा रहा है. ऐसे में अब डॉक्टर इसी को इलाज के तौर पर देखने लगे हैं. एक बार शरीर में मशीन लग जाने के बाद वे मरीज को जीवन भर उसी के साथ जीने की सलाह देने लगे हैं.

आईबी/एनआर (डीपीए)

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी

और रिपोर्टें देखें