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जासूसी सॉफ्टवेयर का इंतजार

२६ अप्रैल २०१३

बोस्टन में हुए आतंकी हमले के बाद जर्मनी के जांच अधिकारी आतंक और चरमपंथ पर नियंत्रण के लिए दूरसंचार उपकरणों पर निगरानी बढ़ाना चाहते हैं. कंप्यूटर पर निगरानी के लिए जासूसी सॉफ्टवेयर विवादों में है.

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तस्वीर: picture alliance/JOKER

यह विशेष सॉफ्टवेयर मिनटों में कंप्यूटरों की हार्ड ड्राइन सर्च कर लेता है और डेटा डाउनलोड कर लेता है. इंटरनेट में देखी गई साइटों का स्क्रीनशॉट बना लेता है, वेबकैम और माइक्रोफोन को दूर से ही ऑन कर देता है और कीबोर्ड पर टाइप की गई चीजों का प्रोटोकॉल बना देता है.वह स्काइप पर की गई हर बातचीत को एन्क्रिप्ट होने से पहले ही दर्ज कर लेता है. जरूरत पड़ने पर फिर से कंप्यूटर पर पहुंचा जा सकता है या नया जासूसी ट्रोजन इन्सटॉल किया जा सकता है. निगरानी किए जा रहे कंप्यूटर के मालिक को कुछ भी पता नहीं चलता.

इस तरह के सॉफ्टवेयर निर्माताओं द्वारा बनाई गई संभावनाओं का इस्तेमाल पुलिस और खुफिया सेवा अपनी जांच के लिए करना चाहती है. लेकिन डेटा सुरक्षा अधिकारियों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को सालों से यह नापसंद है. जर्मनी की संवैधानिक अदालत ने 2008 के एक फैसले में इस तरह के जासूसी सॉफ्टवेयर के इस्तेमाल की सीमाएं तय कर दी हैं. वजह यह है कि जर्मनी का संविधान लोगों की निजता की कड़ी सुरक्षा करता है.

जासूसी की कड़ी शर्तें

सुरक्षा अधिकारियों को भी संविधान की मौलिक धाराओं के अनुरूप चलना पड़ता है और वे उन्हें सिर्फ अपवाद की स्थिति तोड़ सकते हैं. इसलिए जर्मन आपराधिक कार्यालय के कानून में तय है कि कंप्यूटर की निगरानी तभी की जा सकती है जब किसी व्यक्ति के जीवन या आजादी पर खतरा हो या फिर राज्य या लोगों के अस्तित्व का आधार खतरे में हो. निजता को तोड़ने से पहले जरूरी है कि सुरक्षा अधिकारी अदालत को संदेह का ठोस सबूत दें तब ही अनुमति मिल पाती है. ऐसा ठोस संदेह तब होगा जब कोई चरमपंथी इंटरनेट पर विद्वेष फैलाता है या ऐसे देश की यात्रा पर जाता है जहां आतंकी कैंप चलते हैं.

अदालत निगरानी की अनुमति दे भी दे तो उन सूचनाओं को जमा नहीं किया जा सकता जो संबंधित व्यक्ति के सामान्य जीवन से जुड़ी हैं. और जासूसी की जरूरत खत्म हो जाने के बाद सारे तकनीकी परिवर्तनों को फिर से पुरानी स्थिति में लाना पड़ता है. सुरक्षा एजेंसियों द्वारा उठाए गए कदमों को मुकदमे के लिए ठीक ठीक दर्ज करना पड़ता है और इस बात पर ध्यान देता पड़ता है कि पुलिस या खुफिया एजेंसी द्वारा जुटाई गई ये सूचनाएं तीसरे के हाथों न पड़े.

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नजर रखने की बाततस्वीर: picture-alliance/dpa

अपराध कार्यालय के खिलाफ शिकायत

पाइरेट पार्टी की शिकायत है कि सुरक्षा एजेंसियां इन शर्तों का पालन नहीं कर रही हैं. केओस कंप्यूटर क्लब के साथ मिलकर पाइरेट पार्टी ने यह स्थिति पैदा कर दी है कि जासूसी सॉफ्टवेयर का पहला वर्जन लागू नहीं किया जा सका. उसमें बहुत सारी सुरक्षा खामियां थीं और वह बहुत कंप्यूटरों से बहुत सारा डेटा निकाल रहा था, जिस पर संवैधानिक अदालत ने रोक लगा रखी है. तब से संघीय अपराध कार्यालय एक नए सॉफ्टवेयर पर काम कर रहा है. चूंकि इसमें एक-दो साल लग सकते हैं, अधिकारी बाजार से एक अंतरिम सॉफ्टवेयर का जुगाड़ करना चाहते थे.
लेकिन निजता के समर्थक इसके भी खिलाफ हैं. पाइरेट पार्टी के उपाध्यक्ष मार्कुस बारेनहोफ कहते हैं, "पसंदीदा सॉफ्टवेयर पुराने प्रतिबंधित वर्जन से भी ज्यादा काम कर सकता है." मुख्य समस्या यह है कि जासूसी सॉफ्टवेयर कंप्यूटर पर सक्रिय रूप से कुछ बदलने की अनुमति देता है. बारेनहोफ कहते हैं कि ऐसी स्थिति में कंप्यूटर पर बाहर से फंसाने वाली सामग्री डाली जा सकती है.

बारेनहोफ नेत्सपोलिटिक.ऑर्ग का हवाला देते हैं जिसे संसद के वित्तीय आयोग की कार्यसूची का पता चला था जिसमें अपराध कार्यालय को जासूसी सॉफ्टवेयर खरीदने के लिए धन देने पर विचार होना था. गामा और एलामन कंपनियों की पेशकश की जांच होनी थी. उसके बाद पाइरेट पार्टी ने संघीय लेखा कार्यालय में अपराध कार्यालय के खिलाफ एक केस दर्ज कराया क्योंकि उसके विचार में करदाताओं का धन अवैध रूप से काम करने वाले सॉफ्टवेयर के लिए खर्च किया जा रहा था.

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हर डेटा पर नजरतस्वीर: djama/Fotolia

पुलिस नाराज

सरकारी अधिकारियों के खिलाफ गहरे अविश्वास पर पुलिस के अधिकारी नाराज हैं. जर्मन पुलिस ट्रेड यूनियन के अध्यक्ष राइनर वेंट शिकायत करते हैं, "कुछ नेता सोचते हैं कि उन्हें नागरिक अधिकारों की रक्षा करनी है, लेकिन पुलिस से नागरिकों की हमलों से रक्षा की संभावना छीन लेते हैं." वे कहते हैं कि पुलिस को जांच के लिए आधुनिक तरीकों की जरूरत है. पुलिस अपने ही हित में इस बात का ख्याल रखती है कम्प्यूटर पर निगरानी की सारी शर्तें पूरी हों. जांच अधिकारी मुकदमे को कमजोर नहीं करना चाहते.

राइनर वेंट सब पर नजर रखने वाला राज्य होने से इंकार करते हैं और नॉर्थराइन वेस्टफेलिया की एक मिसाल देते हैं. वहां अपराध वाली जगहों पर वीडियो कैमरा लगाने की अनुमति है. लेकिन पूरे प्रांत में सिर्फ पांच जगहों पर कैमरे लगाए गए हैं. वेंट कहते हैं, "यह दिखाता है कि पुलिस निगरानी के मामले में कितने संयम से काम लेती है." वे कहते हैं कि पुलिस गुप्त जांचकर्ताओं और टेपिंग की मदद लेने की कोशिश कर रही है.

राजनीतिक दलों में मतभेद

जर्मन संसद के निचले सदन बुंडेसटाग में गृहनैतिक आयोग के प्रमुख वोल्फगांग बोसबाख ने स्पष्ट किया है, "हम कोई पुलिस राज नहीं चाहते हैं." लेकिन उनका कहना है कि हमें इस बात को रोकना होगा कि चरमपंथी बिना पता लगे इंटरनेट में एक दूसरे से संपर्क और सहयोग करें. बोसबाख की राय से सोशल डेमोक्रैटिक सांसद भी भी करीब करीब सहमत हैं. उदारवादी एफडीपी के सांसद कुछ सतर्क हैं जबकि वामपंथी डी लिंके पार्टी की सांद डागमार एंकेलमन का कहना है कि जासूसी सॉफ्टवेयर से व्यक्तित्व के अधिकार का हनन होगा और खुफिया सेवा के अधिकार पुलिस को मिलते जा रहे हैं जो संविधान में प्रतिबंधित है.

जर्मनी के गृह मंत्री हंस पेटर फ्रीडरिष सार्वजनिक जगहों की निगरानी के लिए अधिक वीडियो कैमरा लगाने की मांग कर रहे हैं जबकि जर्मनी की पुलिस कितनी ताकतवर हो सकती है, इस पर विवाद छिड़ा हुआ है. इसी हफ्ते जर्मनी की संवैधानिक अदालत ने आतंकियों पर डाटाबेस बनाने पर सख्त शर्तें लगाई हैं. टेलीकॉम कंपनियों से टेलीफोन की सूचनाएं मांगने के विरोध में अगले हफ्ते राष्ट्रीय पैमाने पर विरोध हो रहा है. अगले महीने संसद के ऊपरी सदन बुंडेसराट के लिए फैसला आसान नहीं होगा.

रिपोर्ट: वोल्फगांग डिक/एमजे

संपादन: आभा मोंढे

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