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दवाओं का अमानवीय परीक्षण

१३ मई २०१३

पश्चिमी जर्मनी, स्विट्जरलैंड और अमेरिका की कई कंपनियों ने पूर्वी जर्मनी में करीब 50 हजार लोगों पर दवा का परीक्षण किया. इनमें कई मरीजों को ये दवाएं बिना किसी सूचना के दे दी गई. कुछ की मौत भी हो गई.

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तस्वीर: picture alliance/dpa/Universität Jena/FSU-Fotozentrum

जर्मन पत्रिका श्पीगेल के मुताबिक कुल 600 क्लीनिकल ट्रायल 1989 में बर्लिन की दीवार गिरने से पहले किए गए. इस रिपोर्ट में पूर्वी जर्मनी के स्वास्थ्य मंत्रालय, फार्मासुटिकल इंस्टीट्यूट और श्टासी पुलिस के दस्तावेजों का हवाला दिया गया है.

रिपोर्ट के मुताबिक जर्मनी, स्विट्जरलैंड और अमेरिका की दवा कंपनियों ने इसमें हिस्सा लिया था. हर शोध के लिए उस समय आठ लाख पश्चिमी जर्मनी की मुद्रा डॉयचमार्क दिए जाते थे जो कि आज के हिसाब से चार लाख यूरो होते हैं. श्पीगेल का कहना है कि इससे पूर्वी जर्मनी में पैसों की मारी स्वास्थ्य प्रणाली को काफी मदद मिली.

रिकॉर्ड बताते हैं कि ट्रेंटाल के परीक्षण के दौरान दो लोगों की मौत हुई. यह दवा रक्त संचार बढ़ाने में मदद करती है. इसे तब की पश्चिमी जर्मन कंपनी होएख्स्ट बना रही थी. यह कंपनी बाद में सानोफी के साथ मिल गई.

Medikamentenversuche in der DDR
दवाइयों का इंसानों पर परीक्षणतस्वीर: picture alliance/dpa/Universität Jena/FSU-Fotozentrum

माग्डेबुर्ग में रक्तचाप की दवा के परीक्षण के दौरान दो मरीजों की मौत हुई. यह दवाई तब सांडोस कंपनी बना रही थी. श्पीगेल के मुताबिक इस कंपनी बाद में स्विस ग्रुप नोवार्टिस ने खरीद लिया.

रिपोर्ट में सामने आया है कि मरीजों को दवा के खतरे और बुरे प्रभाव के बारे में पूरी जानकारी नहीं दी जाती थी. दूसरे परीक्षणों में बच्चों या शराब के आदी लोगों को शामिल किया जाता था जो इतने नशे में होते कि उनसे सहमति ले पाना संभव नहीं था.

श्पीगेल ऑनलाइन के मुताबित जब उसने कंपनियों से इस मुद्दे पर टिप्पणी मांगी तो अधिकतर ने कहा कि यह मामला बहुत पुराना है और वो हमेशा ड्रग्स ट्रायल के कड़े नियमों का पालन करती रही हैं. साथ ही जर्मनी के दवा उद्योग संघ का कहना है कि अभी इस बात पर संदेह करने का कोई कारण नहीं है कि कुछ अनियमितताएं हुई थीं.

जर्मन सरकार में पूर्वी मामलों के प्रतिनिधि सीडीयू पार्टी के क्रिस्टोफ बैर्गनर ने मामले की पूरी जांच की मांग की है. उनका कहना है कि यह एक बड़ी धांधली होगी अगर जीडीआर के हजारों नागरिकों के अधिकारों का हनन किया गया होगा और उन्हें परीक्षण के लिए इस्तेमाल किया दिया गया हो. बैर्गनर ने मिटेलडॉयचे अखबार को बताया कि उन्हें सबसे ज्यादा परेशान इस बात ने किया कि जीडीआर के नेताओं और कंपनी के मैनेजरों के बीच खुले षडयंत्र के भी संकेत मिलते हैं.

Gefährliche Impfung
खतरनाक इंजक्शनतस्वीर: DW

वहीं सी़डीयू पार्टी के अर्नॉल्ड वाट्ज की दलील है कि अगर इस परीक्षण में शारीरिक हानि पहुंची हो या व्यक्ति की मौत हो गई हो तो फिर क्षतिपूर्ति की जानी चाहिए.

बर्लिन के चैरिटे संस्थान के शोधकर्ता मामले की तह तक जाना चाहते हैं. पूर्वी जर्मनी में श्टासी के राज्य प्रतिनिधियों ने विस्तृत शोध की मांग की है. जीडीआर के अस्पतालों में दवाइयों के परीक्षण की रिपोर्टें नई नहीं हैं. 1991 में भी पूर्वी बर्लिन में एक आयोग ने दवाइयों के इंसान पर परीक्षण की जांच की थी. 2012 के अंत में 165 दवा परीक्षणों की रिपोर्टें मीडिया में थीं.

लेकिन श्पीगेल की रिपोर्ट में इन जांचों की और प्रभावित लोगों की संख्या बहुत ज्यादा है. पत्रिका का दावा है कि कई परीक्षणों को मौत के कारण बीच में ही रोक देना पड़ा.

बर्लिन में श्टासी पीड़ितों के स्मारक के निदेशक हुबैर्टुस क्नाबे सरकार और दवा कंपनियों की जिम्मेदारी देखते हैं. "जो लोग विरोध नहीं कर सकते थे उनका परीक्षण के लिए इस्तेमाल किया गया और उन्हें अमानवीय व्यवहार सहना पड़ा."

एएम/ एमजी(एएफपी, डीपीए)

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