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"भारत हमें हथियार भी दे"

Priya Esselborn१८ मई २०१३

अफगानिस्तान ने भारत से ट्रेनिंग के साथ साथ हथियार भी मांगे हैं. राष्ट्रपति हामिद करजई की भारत यात्रा से पहले भारत में अफगान राजदूत ने कहा कि बिना हथियार के ट्रेनिंग का कोई फायदा नहीं.

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तस्वीर: Reuters

अफगानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करजई एक उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल के साथ 20 मई को दो दिन की भारत यात्रा पर नई दिल्ली आ रहे हैं. इस यात्रा के दौरान वे राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ आपसी दिलचस्पी और हित के सभी मुद्दों पर बातचीत करेंगे. राष्ट्रपति करजई पंजाब के जालंधर शहर में लवली प्रोफेशनल विश्वविद्यालय के छात्रों को भी संबोधित करेंगे, जिसके बाद उन्हें राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी डॉक्टरेट की मानद उपाधि से अलंकृत करेंगे.

भारत में विदेशी मामलों पर लिखने वाले कुछ चुनिंदा पत्रकारों से बात करते हुए अफगानिस्तान के राजदूत शैदा एम अब्दाली ने दिल्ली में यह जानकारी दी. भारत और अफगानिस्तान के संबंधों की घनिष्ठता को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि केवल छह महीने के भीतर राष्ट्रपति करजई की दूसरी भारत यात्रा "दर्शाती है कि दोनों देशों के बीच संबंध कितने मजबूत और गहरे हैं." उन्होंने बताया कि अफगानिस्तान अपने सैनिकों की ट्रेनिंग के साथ भारत से हथियार और रक्षा उपकरण भी चाहता है, "सिर्फ प्रशिक्षण का तब तक कोई मतलब नहीं है, जब तक उसे अमल में लाने के लिए सैनिकों और पुलिसकर्मियों के पास आवश्यक हथियार न हों."

अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत

Hamid Karzai Manmohan Singh
नवंबर 2012 में भारतीय प्रधानमंत्री के साथ हामिद करजईतस्वीर: AP

अब्दाली ने कहा कि अक्तूबर, 2011 में भारत और अफगानिस्तान के बीच हुए रणनीतिक साझीदारी समझौते के तहत दोनों देशों को सुरक्षा, रक्षा, सामाजिक, आर्थिक, व्यापार एवं निवेश सहयोग तथा सांस्कृतिक एवं जनता के स्तर पर सहयोग समेत विभिन्न क्षेत्रों में द्विपक्षीय संबंधों को नई ऊंचाई तक ले जाना चाहिए. इस संदर्भ में उन्होंने हाल में भारतीय विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद की ईरान यात्रा का जिक्र करते हुए चारबहार बंदरगाह के विकास में भारत के दस करोड़ डॉलर निवेश का स्वागत किया और कहा, "हम भारत ईरान अफगानिस्तान के त्रिपक्षीय सहयोग संबंध के विकसित होने का स्वागत करते हैं क्योंकि इससे हमें समुद्र तक पहुंचने के लिए एक वैकल्पिक मार्ग उपलब्ध होगा."

अफगानिस्तान के राजदूत ने जोर देकर कहा कि अफगानिस्तान में स्थिरता पाकिस्तान समेत इस क्षेत्र के सभी देशों के हित में है. उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान एक प्रभुसत्ता संपन्न देश है और उसके सभी देशों के साथ आपसी हितों और समझदारी के आधार पर संबंध हैं. उसके पाकिस्तान के साथ संबंध को भारत के नजरिए से या भारत के साथ संबंध को पाकिस्तान के नजरिए से नहीं देखना चाहिए. उन्होंने इस क्षेत्र में शांति और स्थिरता के लिए रूस और चीन के महत्व को भी रेखांकित किया और कहा कि यदि भारत रूस और चीन को अफगानिस्तान के साथ बातचीत की मेज पर लाता है तो यह एक स्वागत योग्य कदम होगा.

अपनी नीति बनाएगा अफगानिस्तान

S.M. Krishna und Zalmai Rassoul
पूर्व भारतीय विदेश मंत्री एसएम कृष्णा भी अफगान विदेश मंत्री जलमई रसूल से मिल चुके हैंतस्वीर: dapd

राजदूत अब्दाली ने स्पष्ट किया कि अमेरिका हो या कोई और देश, वह अफगानिस्तान पर कोई नीति थोप नहीं सकता. यदि तालिबान हिंसा और आतंकवाद का रास्ता छोड़ कर अफगानिस्तान के लोकतांत्रिक पुनर्निर्माण की राजनीतिक प्रक्रिया में शिरकत करना चाहते हैं, तो उनका स्वागत है. लेकिन सत्ता में उनकी साझीदारी के बारे में किसी भी प्रकार के फॉर्मूले को स्वीकार नहीं किया जाएगा.

अगले वर्ष अमेरिका अफगानिस्तान से अपनी सेना हटा रहा है. राजदूत अब्दाली ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को अफगानिस्तान को इस कठिन परिस्थिति में सहायता देनी होगी और यह बहुत महत्वपूर्ण नहीं है कि वहां अमेरिका के 10,000 सैनिक बने रहते हैं या 20,000 सैनिक. उन्होंने कहा कि भारत ने अफगानिस्तान में सड़कों और अन्य परियोजनाओं के निर्माण में योगदान के साथ लोकतांत्रिक संस्थाओं के गठन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. हम चाहते हैं कि आने वाले समय में उसकी भूमिका में विस्तार हो. इसके साथ ही अब्दाली ने पाकिस्तान के चुनाव में जीतने वाले नवाज शरीफ के बयानों का भी स्वागत किया. उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान में शांति स्थापना में पाकिस्तान की केंद्रीय भूमिका होगी.

रिपोर्टः कुलदीप कुमार, दिल्ली

संपादनः अनवर जे अशरफ

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