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वागनर ने बदला संगीत

२३ मई २०१३

अंतरराष्ट्रीय ख्याति के संगीत निर्देशक रिषार्ड वागनर अपने जन्म के 200 साल बाद भी लोगों को आंदोलित करते हैं. जर्मन शहर लाइपजिश में पैदा हुए कवि, लेखक और संगीतकार वागनर बहुत से लोगों के लिए अभी भी अबूझ पहेली हैं.

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तस्वीर: Getty Images

कहा जाता है कि उनके बारे में जितना लिखा गया, उतना ईसा मसीह और नेपोलियन बोनापार्ट के अलावा शायद ही किसी के बारे में लिखा गया है. जन्म के 200 साल बाद भी रिषार्ड वागनर सुर्खियों में हैं और उनके द्वारा रचित ओपेरा का प्रदर्शन अभी भी शौक से किया जाता है. उनका जन्म 22 मई 1813 को एक मध्यवर्गीय परिवार में हुआ. पिता कार्ल फ्रीडरिष वागनर पुलिस थाने में मुंशी थे और मां योहाना रोजिने वागनर बेकर खानदान की थीं. रिचर्ड और उनकी बड़ी बहन की बचपन से ही थियेटर में दिलचस्पी थी.

भविष्य का संगीत

किशोर रिषार्ड कवि बनना चाहते थे. 16 साल की उम्र में उन्हें बीथोवेन के ओपेरा फिडेलियो का एक शो देखने का मौका मिला. उसके बाद उनका सपना संगीत निर्देशक बनना हो गया. संगीत की पढ़ाई के दौरान 1831 में उन्होंने अपना पहला ओपेरा लिखने की योजना बनाई. उसके लिए उन्होंने टेक्स्ट खुद लिखा. ओपेरा का टेक्स्ट खुद लिखने की उनकी आदत जीवनपर्यंत बनी रही. 20 साल की उम्र में वे माग्देबुर्ग शहर के थियेटर के प्रमुख बन गए. वहां उन्हें अभिनेत्री मीन्ना प्लानर से प्यार हो गया. दोनों ने 1836 में शादी कर ली.

हमेशा कुछ करने को बेचैन और पैसे की कमी का सामना करते रहे रिषार्ड वागनर ने माग्देबुर्ग के बाद रीगा और पेरिस में काम किया. पेरिस में उनका जीवन गरीबी में कटा लेकिन वहां उन्होंने रिएंजी और द फ्लाइंग डचमैन ओपेरा पूरी की. इन्हीं दिनों उन्होंने उस समय की वामपंथी क्रांतिकारी धारा में दिलचस्पी लेनी शुरू की. 1862 में वे जर्मनी के ड्रेसडेन शहर आ गए और सेक्सोनियन शाही ऑर्केस्ट्रा के संगीत निर्देशक बन गए. ड्रेसडेन उनके संगीत करियर का महत्वपूर्ण मुकाम साबित हुआ, अक्तूबर में उनके ओपेरा रिएंजी का पहला शो हुआ. साथ ही वे कविता, संगीत और नाटक को एक रचना में जोड़ने के अपने सपने को साकार करने में लगे रहे.

उतार चढ़ाव की जिंदगी

मई 1849 में उन्होंने ड्रेसडेन विद्रोह में हिस्सा लिया. पुलिस ने उनके खिलाफ वारंट जारी किया, जिसकी वजह से उन्हें जर्मनी से भागना पड़ा. वित्तीय मुश्किलें झेल रहे वागनर 1964 में जर्मनी लौट आए. जब उन्हें आत्महत्या के अलावा कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था, उन्हें बवेरिया के 18 वर्षीय राजा लुडविष द्वितीय की चिट्ठी मिली. लुडविष उन्हें जीवन भर बढ़ावा देते रहे. पत्नी मीन्ना की मौत से पहले और बाद में कई प्रेम प्रसंगों को पीछे छोड़ वे लुसर्न के निकट कोसिमा फॉन बुइलो के साथ रहने लगे. कोसिना अपने समय के ख्यातिप्राप्त संगीतकार फ्रांस लिस्ट की बेटी और उनके संगीतकार दोस्त हंस फॉन बुइलो की पत्नी थीं. शादी से पहले उनके तीन बच्चे हुए.

बवेरिया के शहर बायरॉएथ को वागनर ने कला के अपने सपने का गढ़ बनाया. बड़े शहरों के सांस्कृतिक केंद्रों और मठाधीशों से दूर उन्होंने एक ऐसा हॉल डिजाइन किया जहां दर्शक संगीत, अभिनय और मंच सज्जा के मेल से पैदा होने वाले शो पर ध्यान केंद्रित कर सकते थे. पहला शो 1876 में हुआ जब वागनर के चार ओपेराओं का सिरीज द रिंग ऑफ नीबेलुंग का पहला प्रदर्शन हुआ. बाएरौएथ का पहला ओपेरा महोत्सव आर्थिक और कलात्मक रूप से विफल रहा, लेकिन इसके बावजूद वागनर ने 1882 में दूसरे महोत्सव का आयोजन किया. इस बार सिर्फ एक ओपेरा, उनकी अंतिम रचना पार्सिफाल का प्रदर्शन किया गया. इस बीच उनके वंशज बायरौएथ के ओपेरा भवन में हर साल महोत्सव का आयोजन करते हैं, जो पूरी दुनिया के संगीत प्रेमियों को आकर्षित करता है.

वाग्नर की विरासत

एक साल बाद 13 फरवरी 1883 को उनकी वेनिस में मौत हो गई. आज भी सवाल उठता है कि लोग वागनर से अभी भी इतने प्रभावित क्यों हैं? वे इतिहास के सबसे प्रभावशाली संगीतकारों में शामिल हैं. उनका पोस्ट रोमांटिक संगीत खाल के अंदर जाता है, दिल को अंदर से छू जाता है. लोगों को यह या तो पसंद आता है या पूरी तरह नापसंद, कम ही लोग उदासीन रहते हैं. वागनर थियेटर और ओपेरा में क्रांति लाना चाहते थे, खुद राजनीतिक विद्रोह में शामिल थे और बाद में जर्मन राष्ट्रवादी धारा का समर्थन करते थे.

क्या वे सोशलिस्ट थे? या फिर नेशनल सोशलिस्ट थे? उनके लेखों का क्या अर्थ निकलता है? उसमें संगीतकार के हर वाक्य का उल्टा वाक्य भी मिलता है. उनका संगीत क्या कहता है? क्या उनके संगीत में उनके लेखों की ही तरह यहूदी विरोध की झलक है? इस पर आज भी गहरा विवाद है. वागनर ने किस बात का समर्थन किया? दरअसल सिर्फ एक चीज का, खुद अपना. बहुमुखी प्रतिभा के धनी वागनर नेटवर्किंग में माहिर और खुद को बढ़ावा देने वाले थे. उन्होंने अपनी कला एक ऐसी दुनिया पर थोपी जो उसे नहीं चाहती थी, लेकिन आज वह इसके लिए उनका शुक्रगुजार है.

रिपोर्ट: रिक फुल्कर/एमजे

संपादन: ए जमाल

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