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शरीफ पर उम्मीद लगाए कश्मीर

२२ मई २०१३

पाकिस्तान चुनाव में नवाज शरीफ की सत्ता में वापसी भारतीय राज्य जम्मू कश्मीर के लिए उत्साह लेकर आई है. मुख्यमंत्री को उम्मीद है कि अब भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध सुधरने की प्रक्रिया में गति आएगी.

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तस्वीर: TAUSEEF MUSTAFA/AFP/Getty Images

उमर अब्दुल्लाह ने इस तथ्य को भी रेखांकित किया कि पहली बार पाकिस्तान में हुए चुनावों में कश्मीर के मुद्दे को वैसी अहमियत नहीं दी गई जैसी पहले दी जाती थी. उन्होंने इस पर प्रसन्नता प्रकट करते हुए कहा कि भारत और पाकिस्तान के रिश्तों के अच्छे या खराब होने का "भारत के किसी भी अन्य राज्य की तुलना में जम्मू कश्मीर पर अधिक असर पड़ता है." उन्होंने कहा, "भारत के साथ रिश्ते सुधारने के मामले में नवाज शरीफ का रिकॉर्ड काफी अच्छा है, लेकिन सेना उन्हें ऐसा करने देगी या नहीं, यह एक कठिन सवाल है और मेरे पास इसका कोई जवाब नहीं है. हां, मुझे इतना जरूर लगता है कि पिछली सरकार के मुकाबले शरीफ की सरकार के पास अधिक ताकत होगी."

इसके साथ ही उमर अब्दुल्लाह ने यह भी स्पष्ट किया कि भारत पाकिस्तान के संबंधों में कोई बहुत बड़े सुधार की आशा करना यथार्थपरक नहीं होगा, "हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि पाकिस्तान में चुनाव खत्म हुए हैं और भारत में होने वाले हैं." उन्होंने कहा कि वर्तमान सरकार के कार्यकाल का यह आखिरी साल है. इसमें किसी नाटकीय घटना की उम्मीद करना बेकार है लेकिन इसके साथ ही यह बहुत उत्साहवर्धक है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और नवाज शरीफ के बीच हुई बातचीत में करगिल युद्ध के कारण ठप पड़ी शांति प्रक्रिया को आगे बढ़ाने पर सहमति बनी है.

"मुझे नहीं पता कि भारत सरकार इस बारे में क्या महसूस कर रही थी लेकिन जम्मू कश्मीर में इमरान खान को लेकर काफी बेचैनी थी. वे हरेक के लिए हर चीज पेश कर रहे थे. जब वे पश्चिमी दुनिया से मुखातिब होते थे तो अपनी उदारवादी छवि पेश करते थे लेकिन जब वे पाकिस्तानी जनता से बात करते थे तो बहुत सख्त नजर आते थे. कश्मीर पर वे दिल्ली में बैठकर कुछ और बोलते और पाकिस्तान में चुनाव प्रचार करते समय कुछ और. हमें चिंता थी कि यदि इमरान खान की सरकार बन गई तो क्या होगा?", उमर अब्दुल्लाह ने बहुत साफगोई के साथ कहा.

यह पूछे जाने पर कि अगले साल अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद क्या उन्हें लगता है कि पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठनों का ध्यान जम्मू कश्मीर पर केंद्रित हो जाएगा जैसा कि हाफिज सईद ने कहा भी है और जैसा कि पिछले दिनों राज्य में आतंकवादी घटनाओं में हुई वृद्धि से लगता भी है, उमर अब्दुल्लाह ने इस संभावना से इनकार किया.

यही है वह 'सवाल का निशान' जिसे आप तलाश रहे हैं. इसकी तारीख 23/05 और कोड 968 हमें भेज दीजिए ईमेल के ज़रिए hindi@dw.de पर या फिर एसएमएस करें +91 9967354007 पर.
यही है वह 'सवाल का निशान' जिसे आप तलाश रहे हैं. इसकी तारीख 23/05 और कोड 968 हमें भेज दीजिए ईमेल के ज़रिए hindi@dw.de पर या फिर एसएमएस करें +91 9967354007 पर.तस्वीर: Fotolia/ra2 studio

उन्होंने कहा कि अभी तक आतंकवाद के बढ़ने का कोई संकेत नहीं मिला है. ऊंचे पर्वतों पर बर्फ पिघलने के बाद घुसपैठ की कोशिशें हर बार बढ़ती हैं और वे इस बार भी बढ़ी हैं. नेशनल कांफ्रेंस, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी और कांग्रेस जैसे मुख्यधारा के दलों, नेताओं, कार्यकर्ताओं और जम्मू कश्मीर पुलिस पर 1990 से लगातार हमले होते रहे हैं और वे अभी भी हो रहे हैं.

भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा पर हुए कथित अतिक्रमण के बारे में पूछे गए एक सवाल के जवाब में उमर अब्दुल्ला ने कहा कि इस रेखा के बारे में भारत और चीन की अलग अलग राय है. लेकिन इस विवाद के कारण लद्दाख के इस इलाके में राज्य सरकार द्वारा किए जाने वाले विकास कार्य रुक जाते हैं और महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी कानून (मनरेगा) पर भी अमल नहीं हो पाता. उन्होंने आशा जताई कि दोनों देश इस समस्या का शीघ्र ही समाधान निकाल लेंगे.

रिपोर्टः कुलदीप कुमार, दिल्ली

संपादनः ए जमाल