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भविष्य के लिए भरोसे पर बातचीत

७ जून २०१३

अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात कर दोनो देशों के भविष्य में संबंधों पर चर्चा करने जा रहे हैं. दो दिन की बातचीत साइबर हमला, मानवाधिकार और पाइरेसी जैसे मुद्दों में भी उलझी रह सकती है.

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तस्वीर: Reuters

पिछले कुछ सालों में देशों की आर्थिक स्थिति में काफी अंतर आया है. अमेरिका जहां इस समय सबसे ज्यादा कर्जदार देशों में है तो चीन उसे कर्ज देने वालों में प्रमुख देश. अनुमान लगाए जा रहे हैं कि अगले दस सालों में चीन की अर्थव्यवस्था अमेरिका को पछाड़ कर दुनिया की सबसे सशक्त अर्थव्यवस्था बन जाएगी.

कैलिफोर्निया में बिना ज्यादा तामझाम के सात और आठ जून को होने वाली इस मुलाकात में दोनो नेता निजी माहौल में ही देशों के व्यापार और आर्थिक मामलों पर बातचीत करेंगे. इसकी तैयारी एक साल पहले तत्कालीन अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन की मौजूदगी में ही शुरू हो गई थी. इस बातचीत के संदर्भ में उन्होंने कहा था, "अमेरिका और चीन दुनिया के सामने इस सवाल का एक बेमिसाल जवाब रखना चाहते हैं कि जब कोई पहले से बड़ी ताकत तेजी से बढ़ रही ताकत के साथ मिलती है तो क्या होता है."

कूटनीतिक अविश्वास

इतिहास इसका प्रमाण है कि इस सवाल का जवाब हमेशा मतभेद, संघर्ष और युद्ध के रूप में ही मिला है. अमेरिका और चीन के बीच संबंध दोनो की भविष्य की योजनाओं से जुड़े पारस्परिक शक पर टिका है. राजनीतिक जानकार इस तरह के संबंध को 'कूटनीतिक अविश्वास' का नाम देते हैं.

एक तरफ बीजिंग यह कहता आया है कि अमेरिकी सरकार चीन की बढ़ रही ताकत का फायदा उठा कर अपनी आर्थिक और राजनीतिक स्थिति को मजबूत करना चाहती है. राष्ट्रपति ओबामा की एशियाई देशों के लिए पुनर्संतुलन की विदेश नीति चीन के इस शक को आधार भी देती है. दूसरी ओर अमेरिका को भी इस बात का अंदाजा है कि एशिया में चीन के बढ़ रहे प्रभाव से अमेरिकी प्रभाव को खतरा हो सकता है. अमेरिका की काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस संस्था में एशियन स्टडीज की निदेशक एलिजाबेथ इकोनॉमी मानती हैं कि इस वार्ता के बाद दोनो देश आपसी अविश्वास को कम कर पाएंगे. इकोनॉमी ने डॉयचे वेले से कहा कि दोनो देशों को एक दूसरे में विश्वास हासिल करने के लिए समान आधार का जरूरत है. हालांकि यह इतना आसान नहीं और इसमें काफी समय लग सकता है. इकोनॉमी यह भी मानती हैं कि अमेरिका एकलौता ऐसा देश नहीं है जिसका चीन के साथ अविश्वास का मसला है. साइबर हमलों, प्रादेशिक सीमा और अधिकारों के क्षेत्र में खराब छवि के कारण चीन के कई और देशों के साथ भी संबंध बहुत अच्छे नहीं हैं.

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चीन के समर्थकतस्वीर: picture-alliance/AP

बढ़ता राजनीतिक प्रभाव

पिछले कई सालों से चीन ने खुद को अंतरराष्ट्रीय मामलों से बाहर रखा है. चीन के सुधारवादी नेता डेंग जियाओपिंग ने भी इसी बात पर जोर दिया था कि चीन को अपनी ताकत को छुपा कर रखना चाहिए और सही समय आने पर ही उसे जाहिर करना चाहिए. दशकों से चले आ रहे आर्थिक सुधार की प्रक्रिया में संभव है कि चीन के नए नेता वर्तमान समय को सही समय की तरह देखें और अपनी असली ताकत का प्रदर्शन करें.

जर्मन राजनीतिक मामलों के जानकार एबरहार्ड सांड्श्नाइड मानते हैं कि ताकतवर अर्थव्यवस्था वाले देश धीरे धीरे अंतरराष्ट्रीय पटल पर अपनी छाप बना ही लेते हैं. उन्होंने डॉयचे वेले से कहा, "हमें इस बात के लिए तैयार रहना होगा कि जल्द ही चीन अंतरराष्ट्रीय मामलों में अहम भूमिका निभाने वाले देशों में सबसे आगे हो सकता है."

शी जिनपिंग इससे पहले ओबामा से 2012 में चीन के उपराष्ट्रपति के रूप में मिले थे. अमेरिका और चीन के बीच आपसी मतभेदों को दूर करने के लिए जरूरी है कि दोनो एक दूसरे के लक्ष्यों को बेहतर ढंग से समझें. कैलिफोर्निया में इस हफ्ते होने वाली मुलाकात में दोनो राष्ट्रपतियों को एक दूसरे के बीच पारस्परिक विश्वास बनाने के लिए अच्छा समय बिताने का मौका मिलेगा.

रिपोर्टः माथियास फॉन हाइन/एसएफ

संपादनः निखिल रंजन

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