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विविधता और जिम्मेदारी का सम्मेलन

१८ जून २०१३

बॉन में छठे ग्लोबल मीडिया फोरम का विषय है, "विकास का भविष्य-आर्थिक मूल्य और मीडिया". सौ से ज्यादा देशों के लोग इसमें शामिल हो रहे हैं. भारत की पर्यावरण कार्यकर्ता वंदना शिवा मुख्य वक्ताओं में शामिल हैं.

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तस्वीर: DW/M. Magunia

जर्मन संसद बुंडेसटाग के पूर्व प्लेनरी हॉल में रंगबिरंगी विविधता है. राजनीति, मीडिया और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के 1500 से ज्यादा मेहमान उद्घाटन के मौके पर अपनी अपनी राष्ट्रीय पोशाकों में आए. एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका की पोशाकें और उस पर से ढेर सारी भाषाओं का गड्डमड्ड.

ग्लोबल मीडिया फोरम इस साल भी अलग अलग पृष्ठभूमि से आए भागीदारों के बीच विचारों के आदान प्रदान का मंच है, जो एक जैसे लक्ष्यों के लिए बॉन आए हैं. अलां शियामाला कहते हैं, "मैं ऐसे लोगों के साथ संपर्क में आना चाहता हूं जो दुनिया को बदलने, नई चीजों का विकास करने और रोजमर्रा की जिंदगी बेहतर बनाने का सपना देखते हैं." वे अफ्रीका में अपनी सोलर तकनीक वाली कंपनी ग्रीन विश के साथ ऊर्जा की टिकाऊ परियोजनाओं को आगे ले जाना चाहते हैं.

ग्लोबल मीडिया फोरम में वैज्ञानिकों और राजनीतिज्ञों की मुलाकात उद्यमियों और पत्रकारों से होती है. वे दुनिया भर के सभी महादेशों से आए हैं, अपने अपने देशों और आर्थिक इलाकों के अनुभव लेकर आए हैं और वे एक दूसरे के साथ जुड़ना चाहते हैं.

GMF Global Media Forum 2013 Noam Chomsky
नोआम चोम्स्कीतस्वीर: DW/M. Magunia

तीन दिन के फोरम के दौरान हो रहे अनगिनत वर्कशॉपों में आर्थिक, पर्यावरण और वित्तीय संकट झेल रही दुनिया में पत्रकारों की भूमिका पर बहस हो रही है. अक्सर गोष्ठियों से पहले भी लोग कमरों के बाहर छोटे छोटे गुटों में गहन बहस करते नजर आते हैं.

रिपोर्टरों की भूमिका बहुत कठिन है. एक ओर उन्हें जनमत को जानकारी देनी है, उन्हें मुद्दों के प्रति संवेदनशील बनाना है, तो दूसरी ओर उन्हें गड़बड़ियों की ओर ध्यान दिलाना है और अधिकारियों को उनकी जिम्मेदारी का अहसास कराना है. राजनीतिक रूप से अस्थिर या आर्थिक रूप से वंचित इलाकों में उनका बड़ा महत्व है. यह बात उस वर्कशॉप में साफ हो जाती है जिसमें इस पर विचार होता है कि देहाती इलाकों में अखबार, रेडियो और टेलिविजन जरूरी हैं. आर्थिक और पत्रकारी हितों के घालमेल पर भी कई वर्कशॉपों में विचार किया जा रहा है.

बॉन के मेयर युर्गेन निम्प्च ग्लोबल मीडिया फोरम के बढ़ते असर से खुश हैं. वे कहते हैं कि उनकी इस बात पर नजर जा रही है कि फोरम में उठाए जाने वाले मुद्दे अक्सर संयुक्त राष्ट्र संघ की बहस में दिख जाते हैं. वे कहते हैं, "इसका अपना अलग डायनामिक्स भी है, यदि आप सोचें कि यहां जिस बात की चर्चा हो रही है, वह भागीदारों के जरिए पूरी दुनिया में जाएगी."

Global Media Forum 2013
गलियारे में गपशपतस्वीर: DW/M.Koch

सामाजिक जिम्मेदारी

जकार्ता की त्रिशक्ति यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर मारिया राडयाती कहती हैं कि मीडिया पर दुनिया भर में सिर्फ रिपोर्ट देने से ज्यादा जिम्मेदारी आ रही है. "मीडिया को लोगों को प्रेरणा देनी होगी, उनकी भावनाओं को छूना होगा, उनकी शिक्षा की चिंता करनी होगी." वे कहती हैं कि उन्हें मीडिया विशेषज्ञों के साथ बातचीत और विचार विनिमय का इंतजार है, और वे इंडोनेशिया का अपना अनुभव साझा करना चाहती हैं. ऊबाले मूसा अबूजा में डॉयचे वेले के नाइजीरिया संवाददाता के रूप में काम करते हैं. उनकी उम्मीद है कि फोरम का असर बॉन के तीन दिनों से कहीं ज्यादा दिनों तक होगा और भागीदार दुनिया पर अर्थव्यवस्था के प्रभाव पर बदले नजरिए के साथ वापस घर लौटेंगे. "मीडिया इसमें मदद दे सकता है कि लोगों को आर्थिक संकट की कीमत पता चले और कुछ किया जाए ताकि वह फिर न दुहराया जाए."

ग्लोबल मीडिया फोरम के कार्यक्रमों में बड़ी तस्वीर उभारने की कोशिश साफ है. जर्मन सरकार का अंतरराष्ट्रीय सहयोग संगठन जीआईजेड इसमें शामिल है और उसके साथ साथ पर्यावरण संगठन, फाउंडेशन और युवा उद्यमी भी, जो अपने विचारों के लिए समर्थन जुटाने आए हैं. मसलन संजय गोयल इंटरनेट कंपनी ओक्सीमिटी के लिए न्यूज सेक्टर में नए रास्तों की तलाश में हैं, "मैं लोगों को दिखाना चाहता हूं कि इंटरनेट किस तरह न्यूज के कारोबार में आमूल परिवर्तन कर सकता है, और करेगा."

बुधवार तक चलने वाले सम्मेलन में 50 से ज्यादा गोष्ठियों और वर्कशॉप में करीब 2500 लोग भाग ले रहे हैं. छठे ग्लोबल मीडिया फोरम का हाइलाइट है वैकल्पिक नोबेल पुरस्कार विजेता वंदना शिवा और अमेरिकी भाषाविद और आलोचक नोआम चोम्स्की और जर्मन विदेश मंत्री गीडो वेस्टरवेले के भाषण.

रिपोर्ट: मार्टिन कॉख/एमजे

संपादन: निखिल रंजन

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