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पाइरेसी में फंसा अफ्रीका

२७ जून २०१३

किस्से कहानियों के समुद्री लुटेरे अगर कहीं बचे हैं, तो वे अफ्रीका के पास के समुद्री इलाकों में हैं. अंतरराष्ट्रीय कारोबार को इससे सालाना अरबों डॉलर का नुकसान होता है. इन पर लगाम में भारत की बड़ी भूमिका हो सकती है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

समुद्री डाकुओं का सबसे ज्यादा खतरा सोमालिया से है, जहां आए दिन जहाजों का अपहरण होता रहता है. पिछले सालों में भारत के कई नाविकों का भी अपहरण किया गया है, जिन्हें छोड़ने के लिए भारी भरकम फिरौती मांगी जाती है.

भारत के सुरक्षा जानकार कमोडोर उदय भास्कर इसे मौजूदा वक्त में "समुद्र से पैदा हुई सबसे बड़ी समस्या" बताते हैं, "हालांकि पिछले कुछ साल में घटनाएं कम हुई हैं, लेकिन अब यह एक लघु उद्योग जैसा बनता जा रहा है. लोगों को बंधक बनाने का तरीका बदल रहा है. अब हाई वैल्यू पाइरेसी का हमला हो रहा है और यह आर्थिक नेटवर्क बन गया है."

भारत की भूमिका

अफ्रीका में संभावनाएं और इसमें भारत और चीन की भूमिका पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में कमोडोर भास्कर की राय है कि इस समस्या से निपटने में भारत बड़ी भूमिका निभा सकता है, "भारत को भूगोल का फायदा है. इसके अलावा नौसेना में भारत की ताकत हिन्द महासागर के देशों में सबसे ज्यादा है, जबकि अफ्रीका के देश छोटे छोटे हैं और उनकी काबिलियत भी कम है." पिछले कुछ दशकों में भारत की नौसेना ने कई बार अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया है, जिसमें मालदीव में सत्ता पलट के प्रयास को नाकाम करना और अफ्रीका में जापान के अगवा जहाज को छुड़ाना शामिल है.

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बर्लिन सम्मेलन में उदय भास्करतस्वीर: DW

हाल की अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टों और जानकारों की राय के मुताबिक अफ्रीका के समुद्री डाकुओं का "विश्व नेटवर्क बनता जा रहा है और उनकी पहुंच आसियान देशों" तक हो गई है. वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट का दावा है कि सोमालिया के समुद्री डाकुओं की वजह से हर साल 18 अरब डॉलर के अंतरराष्ट्रीय कारोबार का नुकसान होता है.

वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट कहती है कि बंधक बनाए जाने या रिहाई की कार्रवाई के दौरान पिछले कुछ सालों में 100 नाविक मारे गए हैं. समुद्री अतिक्रमण से यहां के पर्यावरण पर भी बुरा असर पड़ रहा है.

यूरोप की पहल

भारत के अलावा यूरोपीय संघ भी अफ्रीका के समुद्री लुटेरों को लेकर गंभीर है, जहां आए दिन यूरोपीय नागरिकों को भी बंधक बनाया जाता रहा है. संघ ने दो साल पहले प्रस्ताव पास किया है, जिसमें अफ्रीकी देशों के सहयोग के साथ काम करने की बात कही गई है. हालांकि यूरोपीय विदेश विभाग के आपदा प्रबंधन और योजना निदेशालय के वरिष्ठ सैनिक सलाहकार जनरल वाल्टर हून इसकी कमजोरी बताते हैं, "यूरोपीय संघ के प्रस्ताव में सुरक्षा को लेकर कुछ खास नहीं है और उनका सारा ध्यान पाइरेसी पर है." हालांकि पाइरेसी और समुद्री सुरक्षा निश्चित तौर पर एक दूसरे से जुड़ी है.

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार पिछले दिनों में 125 देशों के 3500 से भी ज्यादा नाविकों को बंधक बनाया गया है, जिनमें से कुछ को तो 1,000 से भी ज्यादा दिनों तक रिहा नहीं कराया जा सका.

समुद्री लुटेरों से निपटने के लिए दुनिया भर के देशों ने अफ्रीका के पास समुद्री जल में अपने जहाज तैनात कर रखे हैं. हालांकि कमोडोर भास्कर इसे कोई आदर्श स्थिति नहीं बताते, "हर देश की अपनी रफ्तार होती है. अब इतने सारे देशों ने वहां अपने जहाज भेज दिए हैं, जिससे रफ्तार बिगड़ गई है. इससे नकारात्मक तरीके से पाइरेसी का वैश्वीकरण हो गया है. अब इससे ड्रग्स, तस्करी, गैरकानूनी हथियार और मानव तस्करी जैसी चीजें भी जुड़ गई हैं."

रिपोर्टः अनवर जे अशरफ, बर्लिन

संपादनः महेश झा