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नया दिल, नई जान

२८ जून २०१३

दुनिया भर में आठ लाख लोग अपने लिए नए दिल के इंतजार में है. बहुत कम ही लोग ऐसे हैं, जो मौत के बाद अपना दिल दान करते हों. अंगदान कर किसी को नया जीवन देने पर कम ही लोगों का ध्यान जाता है.

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तस्वीर: Besim Mazhiqi

"पीछे मुड़कर देखें तो आप को पता नहीं चलता कि आपने यह सब कैसे किया. मैंने हमेशा कहा है कि मरूंगा तो हंसते हंसते क्योंकि और कुछ भी इसे बेहतर नहीं बना सकता", एल्मार श्प्रिंक एल्मार श्प्रिंक, जर्मनी के पूर्व एथलीट हैं. तैराकी, साइकिल सवारी, दौड़ना, खेल एल्मार का जुनून है, लेकिन अचानक दिल के दौरे ने उनकी रफ्तार रोक दी. जीवन की इकलौती उम्मीद किसी डोनर पर टिकी थी. लोगों ने उन्हें उम्मीद दी, कहा कि एक न एक दिन दिल मिल ही जाएगा. लेकिन किसी को नहीं पता था कि कब, "हो सकता है दो महीने में या फिर छह महीने.. क्योंकि 97-98 फीसदी मामलों में ऑपरेशन सफल रहता है, इसलिए मैंने सोचा कि मेरे साथ भी सब ठीक ही रहेगा. बाकी तो मेरे शरीर पर निर्भर करता है कि वह उस दिल को स्वीकार करेगा या नहीं और मुझ पर कि मैं इस स्थिति के साथ क्या करता हूं."
मौत की करें तैयारी

करीब छह महीने बिस्तर पर रहने के बाद एल्मार को एक नया दिल और नई जिंदगी मिली. 10 महीने बाद वह घर लौटे और आने के कुछ ही दिन बाद खेलों में जुट गए. महीने में तीन बार वह दिल के डॉक्टर के पास जाते हैं. डॉक्टर इस बात की जांच करते हैं कि एल्मार का शरीर कितना सहन कर सकता है. 
एल्मार किस्मत वाले हैं क्योंकि जर्मनी में बहुत कम ही लोग हैं जो मौत के बाद अपना दिल दान करते हों. अंग दान करने वालों की संख्या बड़ी तेजी से घट रही है. पिछले साल समय पर अंग न मिलने के कारण जर्मनी में एक हजार से ज्यादा मरीजों की मौत हो गई. एल्मार इसे बदलना चाहते हैं. दोस्तों के साथ मिल कर अब वह अंगदान के लिए काम कर रहे हैं.

वह दिखाना चाहते हैं कि दूसरों के अंग के सहारे आप कितने अच्छे से रह सकते हैं, "मैं चाहता हूं कि जिस किसी ने भी मुझे दिल दान में दिया है वह किसी तरह इसे देख सके और उसे इससे खुशी मिले. यह एक अनोखा एहसास है. मैं उसे जानता तो नहीं, लेकिन उसका आभारी हूं, और हर दिन जब मैं कसरत करता हूं, तो मैं उसके बारे में सोचता हूं."
अब एल्मार अगले लक्ष्य की ओर बढ़ने की तैयारी कर रहे हैं. साइकिल की रेस, ट्राइथलॉन और पर्वत की चढ़ाई कर वह लोगों तक अपना संदेश पहुंचना चाहते हैं.

रिपोर्ट: निखिल रंजन

संपादन: ईशा भाटिया

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