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मिस्र की सेना या सेना का मिस्र

५ जुलाई २०१३

राष्ट्रपति मुहम्मद मुरसी को तख्त से हटाए जाने के बाद भले ही जज अदली मंसूर को अंतरिम राष्ट्रपति बनाया गया हो लेकिन देश की असली सत्ता अब भी सेना के ही हाथ में है.

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तस्वीर: Reuters

जिन देशों में सेना सबसे मजबूत है, उनमें मिस्र भी शामिल है. 1950 के दशक में सैनिक क्रांति ने मिस्र की राजनीतिक तस्वीर बदली, जिसका असर अब तक देखा जा रहा है. जमाल अब्दुल नासिर और अनवर सादात से लेकर हुस्नी मुबारक तक सेना प्रमुख थे, जबकि साल दो साल की कथित लोकतांत्रिक व्यवस्था को एक बार फिर सेना ने ही धराशाई कर दिया.

इस हफ्ते जब राष्ट्रपति मुरसी का तख्त पलटा गया, तो संवैधानिक अदालत के प्रमुख जज अदली मंसूर को आगे लाया गया. जाहिर है कि मिस्र की जनता ने सेना के खिलाफ ही दो साल पहले विद्रोह का बिगुल बजाया था और सेना एक बार फिर सत्ता अपने पास नहीं रखना चाहती होगी.

काहिरा के फ्रीडरिष नाउमन फाउंडेशन के रोनाल्ड माइनार्डुस का कहना है, "सशस्त्र सेना के बगैर मंसूर राष्ट्रपति नहीं बन सकते थे. सेना ही ड्राइविंग सीट पर बैठी है."

कौन हैं अल सिसी

58 साल के अल सिसी सेना के प्रमुख हैं. उन्होंने पिछले साल हुसैन तंतावी की जगह रक्षा मंत्री की जगह ली. माइनार्डुस का कहना है कि वह भले ही रोजा नमाज करने वाले मुस्लिम हैं लेकिन उन्हें "नासिरवाद" के तौर तरीकों में शिक्षा दी गई है, "मिस्र की सेना इसी तरह तैयार की गई है. अधिकारी आम तौर पर धर्मनिरपेक्ष हैं." मिस्र में राजशाही का तख्ता पलट करने वाले राष्ट्रपति नासिर को मुस्लिम ब्रदरहुड का कट्टर विरोधी माना जाता है.

अल सिसी मिस्र के सबसे युवा जनरलों में शामिल हैं और उन्होंने 1967 या 1973 के इस्राएल युद्ध में हिस्सा नहीं लिया है. मुबारक के हटने के बाद अल सिसी की खूब आलोचना हुई थी क्योंकि वह महिलाओं के साथ हुए दुर्व्यवहार को जायज ठहराने की कोशिश कर रहे थे. उस जमाने में सैनिक महिलाओं के कुंवारेपन की जांच के नाम पर उनके साथ बुरा सलूक कर रहे थे. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सवाल उठने के बाद अल सिसी ने इस पर रोक लगाई.

पर्दे के पीछे

मंसूर को राष्ट्रपति घोषित करके सेना ने पर्दे के पीछे से कमान संभालने का फैसला किया है. अल सिसी का कहना है कि सेना "राजनीति से जाहिर तौर पर दूर रहेगी." मुरसी ने जो इस्लामी संविधान तैयार किया है, उसे पहले ही निलंबित किया जा चुका है. अब नई समिति नए संविधान पर काम करेगी और उसके बाद इस पर जनमत संग्रह किया जाएगा.

हालांकि इतनी शक्ति के बाद भी मिस्र की सेना उस समस्या को नहीं सुलझा पाई, जो हुस्नी मुबारक के सत्ता से हटने के बाद पैदा हुई है. प्रदर्शनकारी वक्त वक्त पर तहरीर चौक पर जमा हो जाते हैं, नारे लगाते हैं, "सेना हटे, सेना हटे." जब जनरल तंतावी प्रमुख थे, तो उनके पुतले भी जलाए गए थे.

हालांकि मुरसी की नाकामी के बाद मिस्र की जनता के पास सिर्फ सेना का आसरा रह गया और उन्होंने एक बार फिर तेज तर्रार सेना प्रमुख अल सिसी पर भरोसा किया है. मुरसी के खिलाफ जब लोगों की मांग कोई काम न आई, तो अल सिसी ने ही उन्हें 48 घंटे का वक्त दिया. इस फैसले के साथ जहां उन्होंने सेना की ताकत दिखाई, वहीं लोगों का भरोसा जीतने में भी कामयाब रहे हैं.

एजेए/एनआर (डीपीए, डीडब्ल्यू)