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ताकि हम अपनी जड़ को पहचानें

१२ जुलाई २०१३

विश्व धरोहरों को कैसे बचाया जाए, इस पर सिर्फ विशेषज्ञ ही अपना सर नहीं खपाते. दुनिया भर के युवा जर्मनी के पूर्वी शहर कॉटबुस पहुंच रहे हैं, जहां यूनिवर्सिटी में सिखाया जाता है कि पुरानी धरोहरों की रक्षा कैसे की जाए.

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तस्वीर: picture-alliance/ZB

ब्रांडेनबुर्ग प्रांत में कॉटबुस की तकनीकी यूनिवर्सिटी ने जब 1999 में जर्मनी की पहली फैकल्टी शुरू की तो लोगों ने उसका मजाक उड़ाया. अब वही वर्ल्ड हेरिटेज स्टडीज पोलैंड की सीमा पर स्थित छोटे से शहर कॉटबुस में दुनिया भर के छात्रों को आने पर मजबूर कर रहा है. इस बीच यह फैकल्टी जर्मनी में यूनेस्को के 11 चेयरों में से एक है.

मारी थेरेस अल्बर्ट के दफ्तर में हलचल है. दूसरे प्रोफेसर और छात्र छुट्टियां कर रहे हैं जबकि उन्हें समर एकेडमी की तैयारी करनी है, जिसमें भाग लेने दुनिया भर के टीचर आ रहे हैं. चीनी छात्र ची मेंग वोंग ने उनकी मेज पर जांच के लिए अपना डॉक्टरेट थिसिस लाकर रख दिया है. थिसिस का विषय है, सिंगापुर में भारतीय नृत्य का महत्व. इस विभाग के लिए कुछ भी अजूबा नहीं है.

Studium am UNESCO-Lehrstuhl
मेंगतस्वीर: BTU Cottbus-Senftenberg

अल्बर्ट उत्साह से कहती हैं, "ये हमारे यहां रोजमर्रे का काम है." उन्हें अपने विभाग के अंतरराष्ट्रीय चरित्र और कुछ खास होने पर नाज है. मेंग उम 13 पीएचडी और 113 मास्टर छात्रों में शामिल है जो पूर्वी जर्मन शहर में वर्ल्ड हेरिटेज विभाग में इस बात की पढ़ाई कर रहे हैं कि सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहरों की रक्षा कैसे की जाए. मेंग का भारतीय नृत्य वाला विषय इसका एक नमूना है कि यहां क्या पढ़ाई होती है. कॉटबुस आने से पहले सिंगापुर में डांसर के रूप में काम कर चुके मेंग बताते हैं, "डांसर सिर्फ अपनी संस्कृति का प्रतिनिधित्व नहीं करता." वे कहते हैं, "नृत्य से सांस्कृतिक, राष्ट्रीय और लिंग संबंधी सीमाएं टूट जाती हैं, और लोग बाकी बच जाते हैं."

यूनेस्को चेयर की कोशिश

सिंगापुर से छोटे से कॉटबुस आना पहली नजर में कुछ अजीबोगरीब लगता है. ब्रांडेनबुर्ग की यूनिवर्सिटी ने 1999 में वर्ल्ड हेरिटेज में डिग्री प्रोग्राम शुरू किया, 2003 से मारी थेरेस अल्बर्ट इस प्रोग्राम की प्रमुख हैं. अब तो यह इतना प्रसिद्ध हो गया है कि दुनिया भर के विशेषज्ञ और संस्कृति विज्ञानी कॉटबुस आने लगे हैं.

TU Cottbus Prof. Dr. Albert
प्रो. अल्बर्टतस्वीर: TU Cottbus

अल्बर्ट ने अपने विभाग को यूनेस्को की मान्यता दिलाने के लिए काफी मेहनत की है और यह इसलिए नहीं कि इसका वित्तीय फायदा था. वे बताती हैं, "यूनेस्को चेयर पाने के लिए पैसा खुद लाना होता है. आपको दिखाना होता है कि आपके पास थर्ड पार्टी फंडिंग है, बहुत सारे प्रोजेक्ट शुरू करने पड़ते हैं." अल्बर्ट को इस बात से ताकत मिली कि हम जिस विश्व में रहते हैं, उसकी विविधता इतनी ज्यादा है जिसे समझना मुश्किल है. वे कहती हैं, "इसलिए हमें रेफरेंस की जरूरत है ताकि हम चीजों को समझ सकें. और आज की दुनिया को समझने के लिए विरासत को समझने से बेहतर क्या हो सकता है."

पायनियर से मॉडल

मारी थेरेस अल्बर्ट से मिलें तो वे प्रभाव छोड़ती हैं. लाल होंठ, ठहाके की हंसी, आत्मविश्वास से भरी निगाहें और जोरदार तरीके से हाथ मिलाने वाली अल्बर्ट को इस विषय को स्थापित करने में काफी साल लगे. अक्सर उनके विचार को सनकी कहकर उनकी आलोचना भी हुई. लेकिन अब इस डिग्री प्रोग्राम को दूसरों के लिए आदर्श माना जाता है और कॉटबुस को इस क्षेत्र में पायनियर माना जाता है.

Studium am UNESCO-Lehrstuhl
आइके श्मेटतस्वीर: BTU Cottbus-Senftenberg

डिग्री प्रोग्राम में पर्यावरण, लैंडस्केप डिजाइन और सिविल इंजीनियरिंग के अलावा आर्किटेक्चर और स्मारकों की रक्षा भी शामिल है. अल्बर्ट बताती हैं, "मैं जहां कहीं भी जाती हूं, मैं हमेशा सुनती हूं, अच्छा आप कॉटबुस से हैं. हम मास्टर की डिग्री देने वाली पहली यूनिवर्सिटी थे और अब पहले हैं जो डॉक्टरेट की डिग्री के लिए काम करवा रहे हैं." कॉटबुस दुनिया भर में वर्ल्ड हेरिटेज मास्टर्स प्रोग्राम के इलाके में अगुवा है. स्वाभाविक है कि कॉटबुस से पास करने वालों को नौकरी की कोई दिक्कत नहीं होती.

अल्बर्ट बताती हैं कि उनके छात्र अलग अलग विशेषता और खासकर अपनी संस्कृति लेकर आते हैं. "जब दस देश के दस छात्र मिलजुलकर काम करते हैं तो यह इंटरकल्चरिज्म है. मुझे कुछ बताने की जरूरत नहीं होती." आइके श्मेट इस प्रोग्राम में पढ़ने वाले गिने चुने जर्मन छात्रों में से एक हैं. मध्य जर्मनी के गोसलार शहर के श्मेट पहली डिग्री कर चुके हैं. कॉटबुस में पूरा कोर्स अंग्रेजी में होता है.

रिपोर्ट: सिल्विया बेल्का लोरेंस/एमजे

संपादन: निखिल रंजन

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