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वन्यजीव संरक्षण में बच्चे

१९ जुलाई २०१३

क्या अंडे रखने वाली ट्रे, सेफ्टी पिन, जूते के डिब्बे और वाश बेसिन के पाइप से वन्यजीव संरक्षण की अहमियत समझाई जा सकती है.

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तस्वीर: Mani Tewari

यहां इन दिनों एक ऐसी प्रदर्शनी चल रही है जहां बच्चों ने कुछ इसी तरह की बेकार समझी जाने वाली चीजों से लुप्तप्राय जानवरों और दूसरे जीवों का मॉडल बनाते हुए उनके संरक्षण का महत्व समझाने का प्रयास किया है. इनमें घर में बेकार पड़ी चीजों जैसे शैंपू की खाली शीशी, टिन के डिब्बों और माचिस की तिल्लियों का इस्तेमाल किया गया है.

कला के संरक्षक

इस प्रदर्शनी का शीर्षक है कंजर्वेशन क्रुसेडर्स. आयोजकों में से एक स्कूल अक्षर की शिक्षक व संयोजक गीता लाल कहती हैं, "हमने इस प्रदर्शनी का नाम कंजर्वेश क्रुसेडर्स रखा है. रद्दी की चीजों से कलात्मक वस्तुएं बनाने वाले तमाम स्कूली बच्चों ने इस प्रदर्शनी में हिस्सा लिया है." वह कहती हैं, "इस प्रदर्शनी में शामिल वस्तुओं में मानसिक व शारीरिक तौर पर विकलांग बच्चों की बनाई वस्तुएं भी रखी हैं." वैसे, प्रदर्शनी में रखी चीजें अपने आप कई बातें कहती हैं. इसमें लोगों को पर्यावरण के अलावा दुनिया के लुप्तप्राय जीवों के बारे में जागरुकता फैलाने का प्रयास किया गया है. मिसाल के तौर पर इसमें डायनासोरों की उत्पति के अलावा उनके विनाश की कहानी तो कही ही गई है, कलाकृतियों के जरिए जीव विज्ञान और शरीर विज्ञान संबंधी सूक्ष्म बातों का भी खुलासा किया गया है.

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बच्चों की बनाई चीजेंतस्वीर: Mani Tewari

बच्चों की प्रतिभा

इस प्रदर्शनी से स्कूली बच्चों की प्रतिभा का खुलासा तो होता ही है, यह भी पता चलता है कि बच्चों में वन्यजीवों और पर्यावरण के प्रति कितनी जागरुकता है. पुराने दौर में गांव-देहात में इस्तेमाल होने वाली चीजों का मॉडल भी बना कर रखा गया है. पूत के पांव पालने में ही नजर आ जाते हैं, इस कहावत को चरितार्थ करते हुए तीसरी व चौथी कक्षा के छात्रों ने ऐसी वस्तुएं बनाई हैं जिनको देख कर दातों तले अंगुली दबानी पड़ती है. प्रदर्शनी में कैमरे से बच्चों का कमाल का भी नजर आता है. प्रकृति व पर्यावरण के बारे में उनके खींचे चित्रों को देख कर यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि इनको बच्चों ने खींचा है या किसी पेशेवर फोटोग्राफर ने.

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तस्वीरें कुछ इस तरह लगाई गईंतस्वीर: Mani Tewari

प्रदर्शनी के आयाम

प्रदर्शनी कक्ष में घुसते ही प्लास्टर आफ पैरिस पर घड़ी, टूथपेस्ट की खाली ट्यूब और ऐसी ही दूसरी वस्तुओं से बनी कलाकृति नजर आती है. कहीं सदियों पहले लुप्त हो चुके डायनासोर नजर आते हैं तो कहीं विशालकाय दांत वाले हिम युग हाथी. 20 जुलाई तक चलने वाली इस 12-दिवसीय प्रदर्शनी में लोगों की भीड़ लगातार बढ़ रही है. इसमें आए एक शिक्षक धीरेन घोष कहते हैं, "इन कलाकृतियों से बच्चों की कलात्मकता का परिचय मिलता है. इससे यह भी पता चलता है कि नई पीढ़ी पर्यावरण और वन्यजीवों के प्रति कितनी जागरुक है." प्रदर्शनी में आयुष्मान की बनाई कई वस्तुएं शामिल हैं. पांचवीं कक्षा का यह छात्र कहता है, "घर में खाली समय में बेकार पड़ी चीजों को देख कर मेरे मन में इनसे कुछ सकारात्मक प्रयोग करने का ख्याल आया. इसलिए ऐसी चीजों का इस्तेमाल करते हुए मैंने कहीं हाथी बना दिया है तो कहीं डायनासोर." आयुष्मान की खींची हुई कई तस्वीरें भी यहां लगी हैं.

गीता लाल कहती हैं, "इस प्रदर्शनी ने साबित कर दिया है कि अगर मन में कुछ नया करने का जज्बा हो तो शारीरिक या मानसिक विकलांगता उसकी राह में रुकावट नहीं बन सकती."

रिपोर्ट: प्रभाकर, कोलकाता

संपादन: ओंकार सिंह जनौटी

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