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नदी किनारे लौटती जिंदगी

१ अगस्त २०१३

यूरोप की राजधानियां अपनी नदियों के किनारों को शोरगुल और प्रदूषित रास्तों से दूर हरे भरे खाली इलाकों की तरफ ले जा रही हैं. सालों की अनदेखी के बाद नदियों को उनका गौरव लौटाने की शुरुआत हुई है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

अपनी छवि चमकाने, पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी दिखाने और अपनी अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए कई शहरों के प्रशासन ने नदियों की इज्जत करनी शुरू की है. फ्रेंच सोसाइटी ऑफ अरबन प्लानर्स के पूर्व प्रमुख ज्यां पियर गॉत्री का कहना है कि सदियों से शहर नदियों पर निर्भर रहे हैं, "हम पानी के बगैर नहीं रह सकते." 1960-70 के दशक में कारों की बढ़ती लोकप्रियता के कारण कुछ शहरों ने नदियों के किनारों को सड़कों में तब्दील करना शुरू किया जिससे कि ड्राइवरों के लिए रास्ता बनाया जा सके. अब यह प्रक्रिया धीमी गति से ही सही, लेकिन उलट रही है.

उस वक्त नदियों के किनारों पर कंक्रीट डाला गया क्योंकि यह आमतौर पर समतल थे और उन पर कब्जा कर लेना आसान था. पैरिस में सेन नदी के किनारों से धुआं उड़ाते ड्राइवरों को अब अपना रास्ता बदलना पड़ रहा है क्योंकि प्रशासन धीरे धीरे नदी के कुछ किनारों को वापस ले रही है. आइफिल टावर के करीब सेन के किनारे पिछले दिनों 2.3 किलोमीटर लंबा पैदल रास्ता सार्वजनिक उपयोग के लिए खोला गया है. पैरिस के मेयर बेर्त्रां डेलानो का कहना है, "मैं ऐसी जगह चाहता हूं जिसे दुनिया में सबसे खूबसूरत जगह का सम्मान मिले...जिंदगी को यहां वापस लाकर."

हर साल गर्मियों में नदियों के किनारे यातायात के लिए बंद किए जा रहे हैं जिससे कि "पारी प्लाज" के नाम से मशहूर हुए बीच को बनाया जा सके. ट्रकों में भर भर कर रेत राजधानी लाई जा रही और सेन से लगती सड़कों पर डाली जा रही है. धूप को पसंद करने वाले नदी किनारे आराम कुर्सियों पर बीच पर बैठने का मजा ले रहे हैं. पोती के साथ सूरज की किरणों का मजा लेती 67 साल की पैरिसवासी क्लॉदीन कहती हैं, "इस साल हम छुट्टी मनाने बाहर नहीं जा सके क्योंकि हमारे पास पैसे नहीं हैं, हर साल हम कान के अपने फ्लैट में जाते थे लेकिन मैंने इस बार उसे किराए पर दे दिया ताकि कुछ पैसे मिल सकें. लेकिन यहां भी अच्छा है, कान जैसा ही."

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तस्वीर: Reuters

मैड्रिड में कई सालों की अनदेखी के बाद 2011 में मानजनारेस के किनारों पर जिंदगी वापस लौटी. मैड्रिड रियो प्रोजेक्ट के तहत पैदल चलने और साइकिल चलाने के लिए रास्ते बनाए गए जिनके साथ 25 हजार पेड़ों की कतार सजी और शोर से भरा प्रदूषित रिंग रोड अब नजर नहीं आता. नदी के किनारे बने पार्क में वारसॉ के विस्तुला नदी जैसा बीच भी है. दोनों के बीच फर्क बस इतना है कि पोलैंड की राजधानी का किनारा प्राकृतिक है. दूसरे विश्वयुद्ध के बाद शहर को दोबारा बनाने के दौरान इसे बिल्कुल भुला दिया गया था लेकिन पिछले दशक में इसकी रौनक वापस लौटी है. (अंधी आस्था और नदियों का बचाव)

शहरी इलाकों में नदियों के किनारों के विकास पर रिसर्च करने वाली भूगोलशास्त्री मारिया ग्रावारी बार्बास का कहना है, "पानी की मौजूदगी किसी चुंबक की तरह है. शहरी इलाकों में अनगिनत जलसे और उत्सव अब नदी के किनारों पर होते हैं और एक तरह से यह उन्होंने ही इसे बचाए रखा है. ऐसा लगता है जैसे पानी की मौजूदगी पार्टी या लोगों के जमा होने का सबसे अच्छा बहाना है."

अब वियेना को ही देखिए- नदी से मिट्टी निकाल कर 1970 और 1980 के दशक में डैन्यूब आइलैंड बनाया गया. हर साल यहां तीन दिन का संगीत उत्सव होता है. बर्लिन भी इस बीच श्प्रे नदी के किनारों पर खूब जश्न मनाने लगा है, कभी इसी नदी ने शहर को दूसरी दीवार की तरह बांट रखा था. हालांकि नदी से लगते कुछ रास्तों पर विवाद है. निर्माण क्षेत्र के कारोबारी और हराभरा इलाका चाहने वालों के बीच रस्साकसी है लेकिन रास्ता निकल रहा है. अधिकारी किसी तरह से भी नदियों की सांसें लौटा रहे हैं.

एनआर/एमजी (एएफपी)

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