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चुप्पी तोड़ें महिलाएं: शोभा डे

५ अगस्त २०१३

जानी-मानी लेखिका शोभा डे कहती हैं कि दुनिया के कई देशों की ज्यादातर महिलाएं चुप्पी की भाषा बोलती हैं, लेकिन मेरी तरह उनको भी अब अपनी चुप्पी तोड़नी चाहिए.

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तस्वीर: Prabhakar Mani Tewari

मुंबई को महाराष्ट्र से अलग करने के बारे में ट्विटर पर अपनी टिप्पणी के विरोध के संदर्भ में उन्होंने कहा कि मैंने अपनी चुप्पी तोड़ी है. शोभा कहती हैं कि अब पुरुष बनाम स्त्री नहीं बल्कि पुरुष और स्त्री का एक साथ मिल कर आगे बढ़ना ही प्रमुख मुद्दा होना चाहिए. एक कार्यक्रम के सिलसिले में कोलकाता पहुंची लेखिका ने महिलाओं की सामाजिक स्थिति, उनकी सुरक्षा और राजनेताओं की भूमिका पर कुछ सवालों के जवाब दिए. यहां पेश हैं उसके मुख्य अंशः

मुंबई को महाराष्ट्र से अलग करने के आपके ट्वीट पर विरोध बढ़ता ही जा रहा है?

मैंने तो व्यंग्यात्मक लहजे में यह ट्वीट किया था. लेकिन कुछ लोगों ने इसे गलत ढंग से पेश किया. अपनी बात कहने का हक तो सबको हैं. लेकिन इस मामले में आम लोगों की ओर से मिलने वाले समर्थन से मैं खुश हूं. जहां तक इसका विरोध करने वाले राजनेताओं की बात है, उनको इसकी बजाय मुंबई को गड्ढों से मुक्त करने का प्रयास करना चाहिए.

तेलंगाना के बाद अचानक देश के कई हिस्सों में अलग राज्यों की मांग तेज हो गई है. एक जिम्मेदार नागरिक के तौर पर आप क्या सोचती हैं?

कुछ निहित स्वार्थ वाले तत्वों की ओर से उठाई जा रही ऐसी ज्यादातर मांगों से देश कमजोर होगा. लेकिन यह भी सही है कि अलग राज्य की हर मांग को एक ही कतार में नहीं रखा जा सकता.

बदलते दौर में क्या महिलाओं की भूमिका में भी बदलाव आया है?

मौजूदा दौर में हालात कुछ बदले जरूर है. लेकिन अब भी महिलाएं अपने बच्चों व परिवार के लिए अपने हितों की अनदेखी करती हैं. अब कई परिवारों में महिलाओं को पुरुष के बराबर का दर्जा मिलने लगा है. लेकिन यह प्रक्रिया काफी धीमी है.

Shobha Dé, indische Autorin, Journalistin, Kolumnistin und erstes Topmodel in Indien
टॉप मॉडल रही हैं शोभा डे

21वीं सदी में महिला सशक्तिकरण का सपना कहां तक पूरा हो सका है?

यह अभी अधूरा है. इसके लिए कुछ हद तक महिलाएं भी जिम्मेदार हैं. दुनिया के कई देशों की ज्यादातर महिलाएं अब भी चुप्पी की भाषा बोलती हैं. मैंने काफी पहले ही अपनी चुप्पी तोड़ दी थी. अब बाकियों के भी चुप्पी तोड़ने का समय आ गया है. परिवार की परंपरा और आधुनिकता के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए महिलाओं को भारी कीमत चुकानी पड़ी है. अब मुद्दा पुरुष बनाम स्त्री का न रह कर उनके मिल कर साथ चलने का है. दोनों के बीच टकराव की बजाय उनके साझा प्रयासों में ही महिला सशक्तिकरण की राह छिपी है.

आपकी नजर में महिलाओं और पुरुषों के चरित्र में क्या अंतर है?

महिलाओं का चरित्र पुरुषों के मुकाबले जटिल होता है. उनको एक साथ बहू, बेटी, पत्नी और मां समेत कई भूमिकाएं निभाते हुए सबके बीच संतुलन बना कर चलना होता है. किसी पुरुष को समझने में सात मिनट का समय लगता है, लेकिन महिलाओं को समझने में सात जन्म लग सकते हैं. महिलाएं एक बेहतरीन अभिनेत्री होती हैं. वह एक साथ कई भूमिकाएं निभाते हुए सबमें खरी उतर सकती हैं. चरित्र की इस जटिलता की वजह से ही उन्होंने कई युगों से अपना वजूद कायम रखा है. यही वजह है कि पुरुष हमेशा बोर होते हैं, लेकिन महिलाएं कभी बोर नहीं होतीं.

देश में महिलाओं के प्रति बढ़ रहे अपराधों की वजह क्या है?

इस समय देश के किसी भी महानगर में महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं. इसके लिए सामाजिक और आर्थिक कारण भी जिम्मेदार हैं. जटिल वजहों और व्यक्तिगत परिस्थितियों की वजह से आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर और कामयाब महिलाएं भी अत्याचारों का शिकार होने के बावजूद अक्सर चुप्पी साधे रहती हैं. कई बार जीवन के शुरूआती दौर में होने वाला कोई बुरा अनुभव भी इस चुप्पी के लिए जिम्मेदार होता है.

इन अपराधों पर अंकुश लगाने के लिए क्या किया जाना चाहिए?

ऐसे अपराधों की रोकथाम की जिम्मेदारी सरकार और स्थानीय प्रशासन की है. इसके लिए उनकी जवाबदेही तय की जानी चाहिए. कोई भी सरकार महिलाओं को अपनी सुरक्षा खुद करने की सलाह देकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ सकती. इसके अलावा इंटरनेट पर पोर्न सामग्री तक आसान पहुंच पर अंकुश लगाया जाना चाहिए. पोर्नोग्राफी तक आसान पहुंच भी महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराधों की एक ठोस वजह है. इस पर अंकुश लगाने के लिए सरकार को ठोस कानून बनाने चाहिए

इंटरव्यू: प्रभाकर, कोलकाता

संपादन: महेश झा

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