1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

महाभोज में महाघोटाले को न्योता

१३ अगस्त २०१३

गरीबों को मुफ्त टेलीविजन सेट, एक रुपये किलो चावल और लैपटॉप बांटने जैसी घोषणाएं सुनकर पता लगता है कि भारत में चुनाव आ गए हैं. अपने तरह की अनूठी चुनावी परंपराओं वाले देश में जनता और सियासी जमात के बीच खेल शुरू हो गया है.

https://p.dw.com/p/19OSg
तस्वीर: picture-alliance/dpa

राजनीतिक दलों की ओर से लोक लुभावने वादों की सेज पर सजे चुनावी माहौल में इस बार थोड़ा फर्क साफ महसूस किया जा सकता है. यह फर्क कांग्रेस की अगुवाई वाले सत्ताधारी यूपीए की ओर से की गई अब तक की सबसे बड़ी चुनावी घोषणा के बाद दिख रहा है. हाल ही में सरकार ने सवा अरब आबादी वाले देश में दो तिहाई लोगों को भरपेट खाना मुहैया कराने की गारंटी अपने सिर पर ले ली.

अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इसके लिए सरकारी खजाने के 240 अरब रुपये के खर्च से इस योजना को अमलीजामा पहनाने के लिए खाद्य सुरक्षा कानून का खाका भी तैयार कर लिया है. दूसरी ओर सियासत की इस उठापटक में मुख्य विपक्षी दल बीजेपी के पास इतनी बड़ी लोकलुभावन घोषणा का कोई विकल्प मौजूद नहीं है. लिहाजा पार्टी में सियासत के मंझे हुए मैनेजर नरेन्द्र मोदी को बीजेपी ने सत्ताधारी जमात के दावों और वादों की हकीकत की पोल जनता के सामने खोलने के लिए तैनात कर दिया है. खैर राजनीतिक नूराकुश्ती की इस अंतहीन बहस को यहीं छोड़ "महाभोज" कहे जा रहे अब तक के इस सबसे महंगे वादे की हकीकत पर बहस चल तेज हो गई है.

Nahrungsmittel Markt in Kalkutta
तस्वीर: DW

सियासी वादों की हकीकत

आजादी की 66वीं वर्षगांठ मनाने जा रहे भारत ने दुनिया में अपनी मिश्रित छवि बना ली है. सामाजिक तानेबाने के हर अच्छे और बुरे पहलू के प्रतिमान यहां देखने को मिल जाएंगे. अमीरी ऐसी कि संपत्ति की देवी लक्ष्मी भी लोभित हो जाएं और गरीबी ऐसी कि विपन्नता को भी लज्जा आ जाए. सरकारी आंकड़ों की बानगी से एक तरफ सरकारें शाइनिंग इंडिया की बात कह कर अपनी पीठ थपथपाती हैं, तो दूसरी तरफ दो तिहाई जनता के पास दो वक्त की रोटी भी न होने की हकीकत बयां कर सैकड़ों अरब रुपये खर्च करने का लाइसेंस भी जनता से ले लेती हैं.

गरीबी और अमीरी दोनों के एक साथ तेजी से बढ़ने की इस सच्चाई ने अमर्त्य सेन जैसे अर्थशास्त्रियों को भी पसोपेश में डाल दिया है. जहां तक चुनावी वादों की हकीकत का सवाल है तो दक्षिण भारत में टेलीविजन सेट या उत्तर प्रदेश में लैपटॉप बांटने से साक्षरता दर में कोई इजाफा नहीं हुआ और न ही एक रुपये किलो की दर पर चावल बांटने से तमिलनाडु में भूख पर लगाम लग सकी. हां यह जरूर है कि जिस सियासी मकसद से ये योजनाएं शुरु की गईं वह फायदा सियासी दलों को जरूर मिल गया.

अब बारी राष्ट्रीय महाभोज की

खाद्य सुरक्षा योजना का वादा यूपीए ने 2009 के अपने चुनावी घोषणापत्र में किया था. विपक्ष का आरोप है कि इसे अमलीजामा पहनाने के लिए सरकार पांच साल तक इस पर चुप बैठी रही और अब चुनाव करीब आते ही आपात स्थिति में इस्तेमाल होने वाले अध्यादेश के मार्फत इसे लागू कर रही है. इसे कांग्रेस का तुरुप का पत्ता बताते हुए कृषि एवं खाद्य मामलों के जानकार देवेन्द्र शर्मा इस स्कीम को "महाभोज" की संज्ञा देते हैं. दरअसल इस योजना के पक्ष में सरकार की दलील है कि आज भी देश की दो तिहाई आबादी यानी 80 करोड़ से अधिक लोगों को दो वक्त की रोटी नहीं मिल पाती है. इसलिए सरकार इस स्कीम के जरिए 75 प्रतिशत ग्रामीण और 50 प्रतिशत शहरी आबादी को 90 फीसदी सब्सिडी पर 3 रुपये प्रति किलो की दर पर चावल और 2 रुपये प्रति किलो की दर पर गेहूं देगी.

Indien Religion Islam Ramadan
तस्वीर: DW/S.Waheed

थिंक टैंक गुरचरन दास का कहना है कि एक तरफ सरकार पिछले एक दशक में भ्रष्टाचार के लिए कुख्यात हो चुकी सार्वजनिक वितरण प्रणाली यानी पीडीएस को खत्म कर गरीबों को बैंक में सीधे सब्सिडी देने की बात कर रही है और दूसरी तरफ पीडीएस के लिए फिर से भ्रष्टाचार का पहले से भी कई गुना बड़ा दरवाजा खोल रही है. जानकारों का कहना है कि सरकार को इस महाभोज का तात्कालिक असर उसके पक्ष में आने वाले चुनाव परिणाम के रूप में भले ही दिख रहा हो लेकिन यह स्कीम आने वाले कुछ सालों में अपने आकार के अुनरूप ही महाघोटाले का कारण बनेगी. उनकी दलील है कि पीडीएस की विफलता किसी से छिपी नहीं है साथ ही पीडीएस में गड़बडियों को रोकने के लिए भी कोई इंतजाम नहीं किए गए हैं. सरकार का मकसद सिर्फ स्कीम को लागू कर इसका चुनावी फायदा लेना है. विपक्ष की मजबूरी है कि वह इसका विरोध भी नहीं कर सकता क्योंकि सत्ताधारी जमात जनता को बताएगा कि विपक्ष गरीबों के भूखे पेट भरते नहीं देखना चाहता है.

पीडीएस की सच्चाई

गरीबी हटाओ के नाम पर 60 के दशक में शुरू हुई पीडीएस में लीकेज की शिकायतें शुरू से ही रही हैं. राशन की पूरी मात्रा न देने से लेकर फर्जी राशन कार्ड बनाने तक का यह सफर आखिर में सरकार को बंद करने का फैसला करना पड़ा. हाल ही में जारी हुए सरकार के आंकड़े बताते हैं कि पीडीएस में 81 प्रतिशत लीकेज के साथ बिहार अव्वल है. यहां लीकेज का मतलब तमाम तरह की गड़बडियों का समूह है. इसमें सबसे बड़ी गड़बड़ी फर्जी राशन कार्ड बनाकर कोटेदारों द्वारा पूरा राशन हजम करने के तौर पर सामने आई. कुल 54 प्रतिशत फर्जी राशन कार्ड बना कर मध्य प्रदेश अव्वल है जबकि बिहार और उत्तर प्रदेश भी इस मामले में आगे हैं. सरकार को फर्जी राशन कार्ड रद्द करने के अभियान में पिछले कुछ सालों में 23 राज्यों में 2 करोड़ से अधिक फर्जी राशन कार्ड रद्द करने पड़े.

सरकार को पीडीएस की खामियों को दूर करने में भारी भरकम सरकारी तंत्र लगाना पड़ेगा जो सिर्फ तकनीकी खामियों को दूर कर सकता है. लेकिन 'भ्रष्टाचार की शपथ' लेकर बैठे कर्मचारियों का सरकार के पास कोई इलाज नहीं है.

गरीबों का हक हजम करने की इस हकीकत को सामने रख कर खाद्य सुरक्षा की गारंटी पर संदेह के सवाल उठना लाजिमी है. कृषि मूल्य लागत आयोग के अध्यक्ष अशोक गुलाटी सरकार की ओर से हर किसी को भरोसा दिला रहे हैं कि पहले साल में यह योजना बेशक वांछित परिणाम नहीं दे पाएगी लेकिन आने वाले सालों में इसका असर देखा जा सकेगा. गुलाटी का आश्वासन हकीकत है या फसाना, यह तो बाद में पता चलेगा लेकिन अतीत के अुनभव के आधार पर इसमें कोई शक नहीं है कि इस स्कीम के मार्फत 240 अरब रुपये के बंदरबांट से भ्रष्टाचारियों के चिरकालीन भूखे पेट भरने की गारंटी जरूर दी जा सकती है.

ब्लॉगः निर्मल यादव, नई दिल्ली

संपादनः अनवर जे अशरफ