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मिस्र की हिंसा में सैकड़ों मरे

१५ अगस्त २०१३

मिस्र में सेना हालात पर काबू करने की कोशिश में जुटी है. इस्लामी राष्ट्रपति मोहम्मद मुर्सी के समर्थकों को धरने से हटाने के दौरान झड़प में सैकड़ों लोग मारे गए हैं. दशक भर से ज्यादा के दौर में इतना खूनखराबा कभी नहीं हुआ.

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तस्वीर: picture-alliance/AP Photo

प्रदर्शनकारियों को हटाने की सुरक्षा बलों की कार्रवाई के दौरान मुर्सी समर्थक पुलिस और सुरक्षा बलों के साथ भिड़ गए. सुरक्षा बल के जवान काहिरा में दो जगहों पर धरने पर बैठे प्रदर्शनकारियों को हटाने में जुटे थे. 3 जुलाई को मुर्सी को हटाए जाने के बाद से ही यह दोनों ठिकाने प्रदर्शन के लिए मुस्लिम ब्रदरहुड का अड्डा बन गए थे. प्रदर्शकारियों के साथ सुरक्षाबलों की झड़प बहुत तेजी से फैल गई. सुरक्षा बलों ने बुलडोजर का प्रयोग किया और आंसू गैस के गोले दागे. मिस्र के स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक इन झड़पों में 500 से ज्यादा लोगों की जान गई है. हालांकि मरने वालों की संख्या बढ़ने की बात कही जा रही है. काहिरा, सिकंदरिया और दूसरे शहरों में हिंसा हुई है और 2000 से ज्यादा लोग जख्मी हुए हैं इनमें कइयों की हालत नाजुक है.

सुरक्षा बलों की इस कार्रवाई पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया तेज हो गई है. संयम और शांति के साथ बातचीत के जरिए मामला सुलझाने की अपील कर रहे पश्चिमी देश खासतौर से इन सब घटनाओं से हैरान परेशान हैं. पश्चिमी देशों ने इस कार्रवाई की निंदा की है. मिस्र के सहयोगी पश्चिमी देशों ने कार्रवाई से ठीक पहले भी चेतावनी दी थी कि इस तरह की कोशिश राजनीतिक और आर्थिक नुकसान का सबब बनेगी. मुर्सी को हटाने के बाद देश की बागडोर संभाल रहे नए प्रशासन ने पिछले हफ्ते कहा था कि अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता की कोशिश नाकाम हो गई है. हालांकि अमेरिका और यूरोपीय संघ ने सैन्य कमांडर जनरल अब्देल फतह अल सिसी और अंतरिम उपराष्ट्रपति मोहम्मद अल बारादेई को लगातार सहयोग का संदेश भेजना जारी रखा. पश्चिमी राजनयिकों का कहना है कि लगातार यह अनुरोध किया गया कि बातचीत के जरिए मामले को सुलझाने की कोशिश हो.

जर्मन विदेश मंत्री गीडो वेस्टरवेले ने प्रदर्शनकारियों के खिलाफ हुई कार्रवाई की निंदा की है और बर्लिन में मिस्र के राजदूत को विरोध जताने के लिए विदेश मंत्रालय में तलब करवाया है. एक प्वक्ता ने कहा कि विदेश मंत्री के निर्देश पर राजदूत मोहम्मद अब्देलहमीद इब्राहिम हिगाजी को जर्मन सरकार के रुख से स्पष्ट तौर पर अवगत कराया गया है. बुधवार को वेस्टरवेले ने हिंसा को रोकने और व्यापक राजनीतिक संवाद शुरू करने की मांग की थी.

अमेरिकी उप विदेश मंत्री विलियम बर्न्स के साथ मिस्र में मध्यस्थता की कोशिश कर रहे यूरोपीय संघ के दूत बरर्नार्डिनो लियॉन ने कहा, "हमारे पास राजनीतिक योजना थी जिसे हमने बातचीत की मेज पर रखा और उसे दोनों पक्षों ने स्वीकार भी किया. वे इस आखिरी विकल्प को भी आजमा सकते थे. जो कुछ हुआ वह गैरजरूरी था." मिस्र के प्रशासकों को आखिरी अनुरोध कार्रवाई से कुछ ही घंटे पहले भेजा गया था. राजनयिकों के मुताबिक अमेरिका ने कुछ बेहद सख्त संदेश सिसी को निजी तौर पर भेजे. इसके अलावा रक्षा मंत्री चक हेगेल करीब करीब हर रोज जनरल सिसी से टेलिफोन पर बात कर रहे थे.

Ägypten Tag nach den Ausschreitungen 15. August 2013
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo

नाखुशी के संकेत

अमेरिका ने मध्यपूर्व के अपने सहयोगी से नाखुशी जताने के लिए चार एफ 16 लड़ाकू विमानों की आपूर्ति रोक दी है. अमेरिका ने अपने प्रमुख अरब सहयोगी और दानदाता सऊदी के जरिए सिसी को कहलवाया है कि एक शांतिपूर्ण और सबको शामिल करने वाले हल की जरूरत है, तभी "अंतरराष्ट्रीय आर्थिक और राजनीतिक सहयोग" बना रह सकेगा. अमेरिका और यूरोपीय संघ के वार्ताकार दोनों पक्षों से भरोसा कायम करने वाले कदम उठाने की मांग कर रहे हैं. कैदियों को रिहा करने और सम्मानजनक तरीके से मुर्सी की विदाई के साथ इसे शुरू करने की मांग की गई है. इसके साथ ही एक संशोधित संविधान और अगले साल नया चुनाव कराने की भी मांग की रखी गई है. समाचार एजेंसी रॉयटर्स को राजनयिक सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक अमेरिका और पश्चिमी देश सिसी को यह समझाने की कोशिश में जुटे हैं कि अगर खूनखराबा जारी रहा तो मिस्र में राजनीतिक ध्रुवीकरण और आर्थिक संकट लंबा खिंचेगा.

बुधवार की कार्रवाई के बाद अल बारादेई ने इस्तीफे का एलान कर दिया. अल बारादेई ने कहा कि उनकी समझ से शांतिपूर्ण रास्ता अब भी ढूंढा जाना चाहिए और सरकार की कार्रवाई चमरपंथियों की मदद करेगी. मिस्र की सेना के सूत्रों से जानकारी मिली है कि पिछले हफ्ते दौरे पर आए अमेरिकी सीनेटर जॉन मैक्केन और लिंडसे ग्रैहम की आलोचनात्मक प्रतिक्रियाओं से सेना के मन में शंका पैदा हुई. ब्रदरहुड के साथ इनके मेल मिलाप से आशंकित सेना ने सख्त रुख अपनाया. मध्यस्थों ने चेतावनी दी थी कि धरने पर बैठे लोगों को हटाने की कोशिश सैकड़ों लोगों की मौत का कारण बनेगी और कट्टरपंथी सलाफी मुस्लिम कार्यकर्ता ब्रदरहुड के साथ मिल कर मिस्र प्रशासन के खिलाफ उग्र कार्रवाइयों में शरीक हो सकते हैं. यह आशंका अब भी बनी हुई है.

इन सब के बीच आर्थिक हालत बिगड़ रही है. मिस्र को चेतावनी दी गई है कि वह हर महीने 1.5 अरब डॉलर के मौजूदा दर से विदेशी मुद्रा खर्च करते नहीं रह सकता. 2011 में मुबारक को हटाने के समय से शुरू हुए राजनीतिक संकट के दौर में पर्यटन और निवेश बुरी तरह प्रभावित हुआ है. देश में विदेशी मुद्रा भंडार घट कर आधा रह गया है और यह बस इतना ही है कि केवल अगले तीन महीने के आयात का बिल भरा जा सके. यह हालत तब भी थी जब 3 जुलाई को मुर्सी को हटाया गया.

मुस्लिम ब्रदरहुड के हटने के बाद नए प्रशासन को सऊदी अरब, यूएई और कुवैत ने 12 अरब डॉलर की सहायता देने का वादा किया है जिससे कि ईंधन और गेहूं की फौरी कमी से उबरा जा सके. फिलहाल मिस्र के पास जितना पैसा है उससे यह देश महज और एक साल तक अपने खर्चे चला सकता है. देश की अर्थव्यवस्था को रास्ते पर लाने के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसे संगठनों से बड़े अंतरराष्ट्रीय सहयोग की जरूरत है लेकिन जब तक सेना के हाथ में देश की कमान रहेगी इसकी उम्मीद नहीं की जा सकती.

एनआर/एमजे (रॉयटर्स)

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