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दिमाग कमजोर करती है गरीबी

३० अगस्त २०१३

चाहे दिल्ली की दुकानें हों या अमेरिका के शॉपिंग मॉल. जहां खूब पैसा होगा, वहां के लोगों की समझ बेहतर होगी और जहां गरीबी होगी, वहां लोगों की सहज बुद्धि कम होगी. आईक्यू में 13 अंकों तक का फर्क हो सकता है.

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तस्वीर: Fotolia/Doc Rabe Media

अमेरिका की प्रतिष्ठित विज्ञान पत्रिका 'साइंस' में प्रकाशित सर्वे के मुताबिक इंसानी दिमाग का सीधा लेना देना उसके संसाधनों से होता है, जिसके पास संसाधनों की कमी होगी, वह फैसले लेने और समस्याओं के हल में कमजोर होगा.

रिसर्च में शामिल हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर सेंदिल मुलईनाथन का कहना है, "चूंकि आपके दिमाग में बहुत सी चीजें (गरीबी से जुड़ी) होती हैं, आपके पास दूसरे मुद्दों पर ध्यान देने का कम वक्त होता है." जानकारों का कहना है कि इसका असर वैसा ही होता है, जैसा कि रात भर नींद न आने से.

इसी रिसर्च में शामिल दूसरे प्रोफेसर यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया के जियाइंग झाओ कहते हैं, "हम इस बात पर बहस कर रहे हैं कि गरीब होने की वजह से ज्ञान संबंधी तंत्र प्रभावित होता है, जिसके कारण किसी इंसान के अच्छे फैसले लेने की क्षमता कम होती है और नतीजे में गरीबी बढ़ती है."

कार खराब हो जाए तो...

अमेरिकी राज्य न्यू जर्सी के शॉपिंग मॉल में काम करने वाले 400 ऐसे लोगों पर रिसर्च किया गया, जिनकी वार्षिक आमदनी 20,000 से 70,000 डॉलर है. इन लोगों को एक काल्पनिक सवाल दिया गया कि उनकी कार खराब हो गई है और उसे ठीक कराने में कितने पैसे लग सकते हैं. जवाब में लोगों ने 150 डॉलर से 1,500 डॉलर तक कहा.

Symbolbild Armut in Indien
गरीब होने की वजह से ज्ञान संबंधी तंत्र प्रभावित होता है.तस्वीर: picture-alliance/dpa

इसके बाद उन्हें ज्ञान संबंधी कई और प्रश्न दिए गए, जैसे कि किसी खास शक्ल की चीजों को सही क्रम में लगाना या फिर कंप्यूटर में सही जगह पर क्लिक करना.

कम आमदनी वाले लोगों को जब बताया गया कि उनकी कार ठीक कराने में (काल्पनिक तौर पर) काफी पैसा लग रहा है, तो उनके जवाब बहुत खराब हो गए. जब तक वे सस्ती 150 डॉलर तक की मरम्मत के बारे में सोच रहे थे, तब तक उनका जवाब ज्यादा आमदनी वाले लोगों की ही तरह था.

झाओ का कहना है, "ये दबाव दिमाग में चिंता पैदा कर देते हैं और मस्तिष्क का संसाधन समस्या की ओर केंद्रित हो जाता है. इसका मतलब यह हुआ कि जिंदगी में जिन दूसरी चीजों की जरूरत है, हम उन पर ध्यान देने में अक्षम हो जाते हैं."

किसानों की चिंता

इन रिसर्चरों ने भारत में 464 गन्ना किसानों पर भी दो परिस्थितियों में परीक्षण किया. एक जब सालाना फसल की कटाई के बाद उनकी आमदनी ज्यादा होती है और एक, जब कम होती है. उन्होंने पाया कि जब फसल बेचने पर ज्यादा पैसे मिलते हैं, तो किसान टेस्ट में बेहतर करते हैं.

मुलईनाथन का कहना है, "सहज बुद्धि (आईक्यू) ऊपर जाता है, गलतियों का ग्राफ नीचे जाता है और जवाब देने का समय भी तेज होता है." रिसर्च करने वालों का कहना है कि सिर्फ वित्तीय मदद से गरीबी झेल रहे लोगों का भला नहीं हो सकता है. इसकी जगह गरीबी की वजहों को साधने की कोशिश करनी चाहिए, जैसे बच्चों की बेहतर देख रेख, इससे ज्यादा फायदा होगा.

मुलईनाथन कहते हैं, "इसे सीधे सीधे सिर्फ पैसों की कमी समझने की जगह अगर हम जड़ में जाएं और बड़ी चिंताओं को दूर करने की कोशिश करें, तो हम इसके साथ दूसरी समस्याओं को भी हल कर पाएंगे."

एजेए/एनआर (एएफपी)

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