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पाक से जिंदा भाग ऑस्कर में

१९ सितम्बर २०१३

पहली बार कोई पाकिस्तानी फिल्म ऑस्कर के लिए पहुंची है, जिसे महिला निर्देशक मीनू गौड़ और फरजाद नबी ने बनाया है. जिंदा भाग पाकिस्तान से भाग रहे लोगों की कहानी है. डॉयचे वेले ने उनसे फिल्म के बारे में खास बात की.

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तस्वीर: Matteela Films

आतंकवाद और हिंसा के माहौल में पाकिस्तान का एक बड़ा तबका देश छोड़ कर भाग रहा है. इसके लिए वे गैरकानूनी तरीके भी अपना रहे हैं. युवा निर्देशक मीनू गौड़ और फरजाद नबी ने मिल कर 'जिंदा भाग' में इसी मुद्दे को मजाहिया लहजे में पेश किया है. फिल्म में भारत के बड़े अदाकार नसीरुद्दीन शाह ने भी भूमिका निभाई है. मीनू गौड़ ने डॉयचे वेले से कहा कि इस फिल्म में हिन्दुस्तान के लोगों की भी खासी दिलचस्पी होगी.

डॉयचे वेलेः इस फिल्म की कहानी किस तरह की है और आपने इसका फैसला कैसे किया?

मीनू गौड़ः हमारे आस पास के लोगों ने हमें इसके बारे में बताया. वे नजदीकी दोस्त और रिश्तेदार थे, जिन्होंने इस तरह पाकिस्तान छोड़ा. उन लोगों ने हमें अपनी कहानी बताई. वे शानदार कहानियां हैं और हम लोग सुन कर ही हैरान रह गए. हमने उनकी बातें नोट करनी शुरू कर दीं और बाद में कुछ रिसर्च की. बाद में हमें लगा कि हमें लोगों की कहानी में ज्यादा दिलचस्पी है और इस बात में कि उन्हें कितनी कामयाबी या नाकामी मिली.

हम अपनी फिल्म लाहौर के बारे में बनाना चाहते थे. लाहौर के लोग और उनका मजाहिया स्वभाव. यह सब लाहौर के एक मुहल्ले के बारे में है. यह रोजमर्रा की कहानी है. आपके भाई, रिश्तेदारों, मुहल्लेवालों की कहानी है.

Film Zinda Bhaag
फिल्म में नसीरुद्दीन शाहतस्वीर: Farjad Nabi

डॉयचे वेलेः फिल्म में नसीरुद्दीन शाह कैसे आए?

मीनू गौड़ः यह मेरा और फरजाद का, दोनों का फैसला था कि नसीरुद्दीन शाह को फिल्म में लिया जाए. हमने एक लाहौरी खानसामे के बारे में किरदार लिखा था. हमें पता था कि यह एक मुश्किल किरदार होगा और हमें किसी ऐसे अदाकार की जरूरत होगी, जो इसके साथ इंसाफ कर सके. और इसके बाद फौरन नसीरुद्दीन शाह का नाम सामने आया.

लेकिन इसके साथ आपको यह भी जानना होगा कि आप ऐसे दौर में हैं, जहां सिनेमा पर नसीरुद्दीन शाह ने गहरी छाप छोड़ी है. हमने जब उनके पास अपनी स्क्रिप्ट भेजी, तो उन्हें यह भी नहीं पता था कि हम कौन हैं. उन्होंने हमें जवाब भेजा कि स्क्रिप्ट पढ़ने के बाद उन्हें इतना अच्छा लगा कि वह इसमें काम करना चाहते हैं.

डॉयचे वेलेः कई भारतीय फिल्म देखना पसंद करेंगे?

मीनू गौड़ः जिंदा भाग की जिस तरह की कहानी है, उसका निश्चित तौर पर सीमा के उस पार भी गहरा असर पड़ेगा. वहां के दर्शकों को भी यह निश्चित तौर पर लुभाएगी. जिंदा भाग तीन लड़कों की कहानी है, जो कुछ बड़ा करना चाहते हैं लेकिन पाते हैं कि उनके लिए सारे दरवाजे बंद हैं.

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फरजाद नबी के साथ मीनू गौड़तस्वीर: Farjad Nabi

डॉयचे वेलेः किसी महिला के लिए घर से मुश्किल होती है. घर वाले नहीं चाहते कि वह फिल्मी लाइन में जाए, आपके लिए कितनी बड़ी मुश्किल थी?

मीनू गौड़ः मुझे बहुत पहले से पता था कि मैं फिल्में बनाना चाहती हूं. लेकिन मैं सिर्फ बनाना नहीं, बल्कि इसके बारे में पढ़ना भी चाहती हूं. मैं रिसर्च करना चाहती थी और लिखना चाहती थी. और पाकिस्तान में तो पहले से महिलाएं फिल्मों में लगी हैं. मिसाल के तौर पर महरीन जब्बार, शरमीन उबैद चिनॉय, सबीहा उरम. बहुत सी औरतें हैं, जो स्वतंत्र रूप से फिल्में बना रही हैं. मैं पढ़ाती भी हूं और मुझे लगता है कि बहुत सी युवा लड़कियां फिल्मों में आ रही हैं.

पाकिस्तान ने 50 साल में पहली बार सर्वश्रेष्ठ विदेशी फिल्म की श्रेणी में ऑस्कर के लिए कोई फिल्म भेजी है.

फिल्म के सह निर्देशक फरजाद नबी से जब पूछा गया कि क्या पाकिस्तानी फिल्म को ऑस्कर के लिए चुने जाने से पाकिस्तानी फिल्म इंडस्ट्री पर भी असर पड़ेगा, तो उन्होंने कहा, "फिल्म इंडस्ट्री दोबारा जिंदा होने का काम तो शुरू हो गया है लेकिन अगले पांच साल तक इसी रफ्तार से काम होना चाहिए."

मीनू गौड़ भारतीय मूल की पेशेवर फिल्मकार हैं, जिन्होंने पाकिस्तान के फिल्म निर्माता मजहर जैदी से शादी की है. करीब 10 साल पहले वह तब सुर्खियों में आई थीं, जब उन्होंने कश्मीर के मुद्दे पर 'पैराडाइज ऑन ए रिवर ऑफ हेल' नाम की डॉक्यूमेंट्री बनाई. इसे कई अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सवों में दिखाया गया और कई अवार्ड भी मिले.

इंटरव्यूः बीनिश जावेद

संपादनः अनवर जे अशरफ