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श्रीलंका चुनाव में सेना की दखल

२० सितम्बर २०१३

श्रीलंका में तीन दशकों तक चले संघर्ष के बाद देश के उत्तरी हिस्से में चुनाव हो रहा है. विश्लेषकों को डर है कि चुनाव और उससे पहले प्रचार की वजह से नस्ली तनाव बढ़ सकता है.

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तस्वीर: picture-alliance/ dpa

25 साल तक श्रीलंका की सेना ने तमिल विद्रोहियों के खिलाफ संघर्ष किया. लिट्टे के विद्रोही श्रीलंका में तमिल अल्पसंख्यकों के लिए एक अलग देश बनाना चाहते हैं. मई 2009 में कोलंबो की सरकार आखिरकार लिट्टे पर विजय हासिल कर पाई और 80,000 लोगों की जान लेने वाला गृहयुद्ध खत्म हुआ.

करीब चार साल बाद, श्रीलंका के उत्तरी हिस्से में प्रांतीय चुनाव हो रहे हैं. श्रीलंका में कई दशकों से प्रांतीय शासन बहाल करने की मांग की जा रही थी. 1987 में भारत और श्रीलंका के बीच समझौते के बाद श्रीलंका के संविधान में संशोधन किया गया. इस संशोधन के मुताबिक प्रांतीय परिषद बनाए गए और चुनाव कराए गए.

तब से लेकर अब तक उत्तरी प्रांत के अलावा श्रीलंका के आठ राज्यों में प्रांतीय परिषद चुनी जाती है. उत्तरी प्रांत पर सीधे राष्ट्रपति शासन लागू होता है. इस वजह से 21 सितंबर को प्रांतीय चुनावों की अहमियत और बढ़ जाती है.

Flüchtlinge in Sri Lanka
तस्वीर: AP

चुनाव में हिस्सा ले रही तमिल नेशनल अलायंस यानी टीएनए श्रीलंका की मुख्य तमिल पार्टी है. पार्टी सदस्यों ने श्रीलंकाई सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज सीवी विग्नेश्वरन को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया है. सत्ताधारी यूनाइटेड पीपुल्स फ्रीडम अलायंस (यूपीएफए), ईलम पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (ईपीडीपी) और श्रीलंकाई फ्रीडम पार्टी एसएलएफपी से उम्मीदवार ला रहा है. श्रीलंका के उत्तरी हिस्से में तमिलों की संख्या ज्यादा है. इलाके में बहुत सारी चुनौतियां हैं जिनमें सैनिकों की अधिक संख्या, तमिलों का जमीन पर अधिकार और रोजगार में परेशानियां शामिल हैं.

राजनीतिक विश्लेषक ऐलन कीनन इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप में काम करते हैं. उनके मुताबिक टीएनए को बहुमत मिल जाएगा. विश्लेषक मान रहे हैं कि यह चुनाव कोलंबो में सरकार और दशकों से चल रहे संघर्ष के बाद समझौते की निशानी है.

Flüchtlingslager in Sri Lanka PANO
तस्वीर: AP

हालांकि चुनाव प्रचार के दौरान सेना की मौजूदगी से माहौल काफी खराब हो गया है. श्रीलंका के राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे को लिखे एक चिट्ठी में टीएनए नेता आर संपंतन ने सेना पर आरोप लगाया है कि वह करीब सात लाख तमिल मतदाताओं को प्रभावित करने की कोशिश कर रही है. सैनिक टीएनए के पार्टी सदस्यों को धमकियां दे रहे हैं और खुलकर यूपीएफए गठबंधन के उम्मीदवारों का समर्थन कर रहे हैं. संपंतन का कहना है, "अगर सेना उत्तरी प्रांत में हस्तक्षेप करती रहे तो चुनाव पारदर्शी और निष्पक्ष नहीं हो सकते."

टीएनए तमिल बहुल इलाके के लिए और स्वायत्तता चाहती है. पार्टी ने अपने मैनिफेस्टो में लिखा है कि स्वायत्तता राष्ट्र के पास नहीं बल्कि लोगों के पास होनी चाहिए, "कोलंबो में सरकार को तमिल जनता पर शासन करने का अधिकार नहीं, यह अधिकार केवल तमिलों के पास है." विश्लेषक कीनन मानते हैं के टीएनए अगर सत्ता में आई तो वह उत्तर में सेना की मौजूदगी को कम करने की पहल करेगी. साथ ही संविधान में प्रांतों की प्रशासनिक ताकतों को भी उत्तर में लागू करने की कोशिश की जाएगी.

Soldaten der Armee in Sri Lanka
तस्वीर: picture-alliance/ dpa

चुनाव प्रचार के लिए एक रैली में राष्ट्रपति राजपक्षे ने कहा कि टीएनए लोगों से गलत वादे कर रहा है और कह रहा है कि लोग वहां अपनी सरकार बना सकेंगे. हिंदुस्तान टाइम्स के साथ बातचीत में श्रीलंकाई राष्ट्रपति ने कहा था कि टीएनए का रवैया राष्ट्र को बांट रहा है.

देश में इस तरह के माहौल की वजह से ऐसा नहीं लगता कि तमिल बहुल इलाके में चुनाव के बाद भी स्वायत्तता बढ़ेगी. कोलंबो में सरकार ने तमिलों के लिए और अधिकारों का वादा किया है लेकिन जून में ही सरकार ने एलान किया कि वह प्रांतीय परिषदों से जमीन और पुलिस से संबंधित अधिकार छीन रहा है.

श्रीलंका में आने वाले महीनों में कॉमनवेल्थ देशों की सरकारें मिल रही हैं. अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने दुनिया के नेताओं से पहले ही अपील कर दी है कि वह सम्मेलन को बॉयकॉट करें और वहां की सरकार पर दबाव डालें कि वह युद्ध अपराधों पर जांच शुरू करे. माना जाता है कि दशकों लंबे युद्ध में 40,000 लोग मारे गए हैं.

रिपोर्टः गाब्रिएल दोमिंगेज, श्रीनिवास मजूमदारू /एमजी

संपादनःएन रंजन

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