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बच्चों को बचाने में सफल

१ अक्टूबर २०१३

सदी के विकास लक्ष्यों में 2015 तक बच्चों की मौत दर में बड़ी कमी लाना भी है. समय सीमा पूरी होने में अभी दो साल बाकी है, लेकिन कई देश पहले ही इस लक्ष्य तक पहुंच गए हैं. भारत के लिए लक्ष्य पूरा करना मुश्किल दिख रहा है.

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तस्वीर: Fotolia/poco_bw

अफ्रीका में इथियोपिया, लाइबेरिया, मलावी और तंजानिया, एशिया में बांग्लादेश, नेपाल और ईस्ट तिमोर. इन सब देशों में एक समानता है कि वे बच्चों की मौत में एक तिहाई कमी लाने में सफल हुए हैं और वह भी तय समय से दो साल पहले.

गरीब देशों को जिन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है उसका बहुत अच्छा उदाहरण है पूर्वी अफ्रीकी देश इथियोपिया. वर्ल्ड बैंक ने 36 ऐसे देशों की सूची बनाई है. इथियोपिया में 36 हजार लोगों पर एक डॉक्टर है. अफ्रीकी मानकों के हिसाब से भी यह बहुत कम है. 8.5 करोड़ लोगों की रिहाइश वाला देश आबादी के मामले में नाइजीरिया के बाद दूसरा सबसे बड़ा अफ्रीकी देश है. यह उन 34 देशों में एक है जहां दुनिया के 90 फीसदी कुपोषित लोग रहते हैं.

शहरों से बाहर स्वास्थ्य सेवा

इथियोपिया की स्वास्थ्य नीतियों से गांव में रहने वाले लोगों को बहुत फायदा पहुंचा है. संयुक्त राष्ट्र बाल कोष यानी यूनिसेफ के मुताबिक इथियोपिया में पैदा होने वाले 1000 में 68 बच्चे पांच साल से कम उम्र में ही मर जाते हैं. 1990 में यह तादाद 204 थी. जर्मन समाचार एजेंसी डीपीए ने जब यह जानना चाहा कि अपने पड़ोसियों की तुलना में नाइजीरिया ने क्या बेहतर किया है तो यूनीसेफ के इथियोपिया प्रतिनिधि पीटर सलामा ने स्वास्थ्य कर्मचारियों के विस्तृत प्रशिक्षण का हवाला दिया. 2003 से अब तक सरकार ने 38 हजार स्वास्थ्य कर्मचारियों को प्रशिक्षण दिया है और उन्हें वेतन दे रही है. दूसरे देशों से अलग इथियोपिया ने ग्रामीण जनता को अपना प्राथमिक लक्ष्य बना रखा है और सुदूर के अलग थलग इलाकों में रहने वाले लोगों तक ज्यादा से ज्यादा मदद पहुंचाने में लगी है. सलामा इसे क्रांतिकारी सोच मानते हैं. इथियोपिया अफ्रीका के ज्यादातर देशों की तरह ही मुख्य रूप से ग्रामीणों का ही देश है और किसानों तक स्वास्थ्य सेवाओँ को पहुंचाने पर सरकार विशेष ध्यान दे रही है.

विकास में इथियोपिया के सहयोगी स्वास्थ्य सेवाओं के संचालन में मदद दे रहे हैं. दवाओं की ढुलाई उचित तापमान में हो रही है, बच्चों को जन्म देने के लिए अच्छे बिस्तर और दूसरी चीजें पहुंचायी जा रही हैं और इसके साथ ही आगे के प्रशिक्षण कार्यक्रमों को चलाने में भी मदद दी जा रही है. इस तरह के प्रशिक्षणों का लाभ उठाने वाली नर्सें केवल बच्चों के जन्म में ही नहीं बल्कि टीबी, डायरिया, मलेरिया और कुपोषण के मरीजों के इलाज में भी मदद दे रही है. प्रधानमंत्री का दफ्तर नौ दूसरे मंत्रालयों के साथ मिल कर सीधे इन स्वास्थ्य सेवाओं के कामकाज की जिम्मेदारी उठा रहा है और इसके लिए गैर सरकारी संगठन भी सरकार की तारीफ कर रहे हैं.

पीटर सलामा कहते हैं कि इथियोपिया ने शुरुआत कर बढ़त ले ली है. दक्षिण अफ्रीका की तुलना में पश्चिमी और मध्य अफ्रीका के बहुत से बच्चे मलेरिया के शिकार होते हैं. डब्लिन की ट्रिनिटी कॉलेज की एक रिसर्च के मुताबिक नाइजर में मलेरिया एक बहुत बड़ा खतरा है. 1990 के बाद देश ने बहुत प्रगति की है लेकिन बाल मृत्यु दर अब भी यहां 16.7 फीसदी है.

राजनीतिक स्थिरता का असर

1990 से 2012 के बीच सहारा रेगिस्तान के दक्षिण में मौजूद अफ्रीकी देशों ने पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मौत के आंकड़ों में करीब 40 फीसदी तक कमी लाने में कामयाबी हासिल की है. चाड, डेमोक्रैटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, सोमालिया, माली, बुरकिना फासो और कैमरून जैसे देशों में बच्चों की मौत का आंकड़ा ऊपर गया है. नए आंकड़ों का विश्लेषण करने के बाद पीटर सलामा इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि, "राजनीतिक अस्थिरता की वजह से सरकारें पीछे रह गईं जबकि स्थिर देशों ने ज्यादा प्रगति की."

माली और बुरकिना फासो में तुलनात्मक रूप से राजनीतिक स्थिरता है जबकि दूसरे देश तानाशाही से मुक्ति की उम्मीद में बदलाव की प्रक्रिया से गुजर रहे हैं. एरिट्रिया उन चार अफ्रीकी देशों में शामिल है जिन्होंने मौत की दर में 75 फीसदी तक की कमी कर ली है. एरिट्रिया दूसरे मामलों में प्रगति कर रहा है वहां साक्षरता 90 फीसदी है. हालांकि इन उपलब्धियों की कीमत भी है, एरिट्रिया दुनिया के दमनकारी शासन वाले देशों में है, पड़ोसी देश इथियोपिया में भी सत्ता दबंग ही रही है.

अफ्रीका के बच्चों के लिए यूनीसेफ के ताजा आंकड़े खुशी की खबर लाए हैं, लेकिन सरकार और सहायता दे रहे साझीदार देशों को अपनी कोशिशों में ढिलाई नहीं करनी होगी. दुनिया में हर साल 66 लाख बच्चे पांच साल से कम उम्र में ही मौत का शिकार हो रहे हैं. अफ्रीका का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश नाइजीरिया इनमें बहुतों का घर है. भारत के साथ इस आंकड़े को मिला दें तो एक तिहाई बच्चे इन्हीं दोनों देशों में मर रहे हैं. भारत में साल 2012 में जन्म से पांच साल के भीतर मरने वाले बच्चों की तादाद प्रति हजार 52.3 रही है. ऐसी हालत में भारत सदी के विकास लक्ष्यों को पूरा कर पाएगा ऐसी उम्मीद नहीं दिख रही. 2015 तक मरने वाले बच्चों की संख्या घटा कर प्रति हजार 32 पर लाने का लक्ष्य है. भारत के 597 जिलों में से महज 222 जिले ही 2015 तक अपना लक्ष्य पूरा करने की हालत में आते दिख रहे हैं. बाकी जिले 2020 तक लक्ष्य हासिल कर पाएंगे ऐसी उम्मीद की जा रही है.

रिपोर्टः लुडगर शाडोम्सकी/एनआर

संपादनः महेश झा

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