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दुर्गा पूजा में एक टुकड़ा पाकिस्तान भी

९ अक्टूबर २०१३

पाकिस्तान में ट्रकों पर की जाने वाली चित्रकारी इस बार पश्चिम बंगाल के पूजा पंडालों में दिख रही है. कोलकाता में दुर्गा पूजा के पंडालों की सजावट के लिए पाकिस्तान से कलाकार आए हैं.

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तस्वीर: DW/P. Mani Tewari

उत्तर कोलकाता में नवीनपल्ली के पंडाल को पाकिस्तानी ट्रक आर्ट से सजाने का विचार बसे पहले थीम सलाहकार गोपाल पोद्दार के मन में आया था. गोपाल कहते हैं, "दोनों देशों के बीच बढ़ते तनाव के इस दौर में कला ही शांति और एकता कायम कर सकती है. इस पंडाल की चित्रकारी देखने के बाद आम लोगों के मन में पाकिस्तान के प्रति नजरिया बदल जाएगा. लोगों को समझ में आ जाएगा कि पाकिस्तान के लोगों को भी कला व संस्कृति से उतना ही प्यार है, जितना हमें."

नवीनपल्ली पूजा समिति के अध्यक्ष शिवशंकर मित्र कहते हैं, "हम इस साल दर्शकों के लिए पंडाल में इस मशहूर पाकिस्तानी कला की झांकी पेश करेंगे." समिति ने इसके लिए भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद की सहायता ली है. कोलकाता स्थित परिषद की सलाहकार गौरी बसु कहती हैं, "हम उनलोगों को पाकिस्तान की एक झलक दिखाना चाहते हैं जो वहां नहीं जा सकते. इससे लोगों को एक ऐसी कला के बारे में जानने का मौका मिलेगा जो यहां आम तौर पर देखने को नहीं मिलती."

Puja Künstler
तस्वीर: DW/P. Mani Tewari

पाकिस्तानी कलाकार

पूरे पंडाल की आकृति किसी ट्रक के भीतरी हिस्से की तर्ज पर डिजाइन की गई है. गहरे चटख रंगो के इस्तेमाल से कहीं तरह-तरह की फूल-पत्तियां उकेरी गई हैं तो कहीं विभिन्न किस्म के पशु-पक्षी.

पाकिस्तानी कलाकार हैदर अली अपने दो सहयोगियों-मोहम्मद इकबाल और मुमताज अहमद के साथ पंडाल की साज-सज्जा को आखिरी स्वरूप देने के लिए दिन-रात मेहनत कर रहे हैं. हैदर कहते हैं, "मैं बंगाल की मशहूर पूजा से जुड़ कर गर्व महसूस कर रहा हूं. उम्मीद है कि लोग हमारी कला को सराहेंगे और इससे दोनों देशों के आपसी संबंधों को सुधारने में भी सहायता मिलेगी." अली बताते हैं कि पाकिस्तान में मालिक या ड्राइवर कोई ट्रक खरीदने के बाद पहले सीधे उसे सजाने के लिए वर्कशॉप में ले जाते हैं. वहां कलाकार ड्राइवरों की पसंद के मुताबिक उन ट्रकों पर चित्रकारी करता है. अली को बचपन से ही चित्रकारी का शौक है. वह सात साल की उम्र से ही स्कूल से वापसी के समय पिता के वर्कशॉप में चले जाते थे और वहां कूची के साथ हाथ आजमाते थे. अली के सहयोगी मुमताज अहमद कहते हैं, "हमने पंडाल सजाने के लिए काफी चटख रंगों का इस्तेमाल किया है. पंडाल के भीतर पहुंचने पर लोगों को महसूस होगा कि वह पाकिस्तान में किसी ट्रक की केबिन के भीतर हैं. उम्मीद है कि लोगों को हमारी कला पसंद आएगी."

Puja Künstler
तस्वीर: DW/P. Mani Tewari

दोनों देशों में समानता

अली कहते हैं, "दोनों देशों के लोगों में काफी समानता है. हम एक जैसी भाषा बोलते हैं. ऐसे में आपसी संबंधों को मजबूत करने के लिए कला से बेहतर दूसरा कोई जरिया नहीं हो सकता." वह कहते हैं कि कला एक ऐसी वैश्विक भाषा है जो हमेशा शांति व सद्भाव का संदेश देती है. तीनों पाकिस्तानी कलाकर दुर्गापूजा के दौरान महानगर में रह कर इसका लुत्फ उठाना चाहते हैं. उनके लिए यह एक नया अनुभव होगा.

आखिर पाकिस्तान में इस कला की उत्पति कैसे हुई? इस सवाल पर हैदर कहते हैं, "वहां हमारे ग्राहक ऐसे ट्रक ड्राइवर होते हैं जिनको महीनों घर से दूर रह कर दुर्गम रास्तों पर सफर करना पड़ता है. ऐसे में यह चित्रकारी ही घर और परिजनों से उनके जुड़ाव का अकेला जरिया होती है." वह बताते हैं कि कई ड्राइवर तो केबिन में अपनी मां या पत्नी की तस्वीरें भी बनवा लेते हैं.

रिपोर्टः प्रभाकर, कोलकाता

संपादनः एन रंजन

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