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कितने बुद्धिमान हैं बड़े

१० अक्टूबर २०१३

दुनिया भर में स्कूलों के प्रदर्शन के बारे में की गई पीजा स्टडी ने जर्मनी में काफी हलचल मचाई थी क्योंकि उस शोध ने जर्मन स्कूलों की कलई खोल दी थी. अब ओईसीडी ने वयस्कों की बुद्धिमत्ता आंकी है.

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तस्वीर: picture alliance/Bildagentur-online/McP

ओईसीडी के इस शोध में शामिल सांख्यिकी अधिकारी और शिक्षा नीति बनाने वाले आंद्रेयास श्लाइषर ने डॉयचे वेले से बातचीत में कहा, "इस कुशलता को आर्थिक पैमाने पर जांचना मुद्दा नहीं है. महत्वपूर्ण है कि वयस्क कौन सी खूबी साथ में लाते हैं. काम और जीवन में वह इनका इस्तेमाल कैसे करते हैं. और यह कि इनके जरिए वह जीवन को बेहतर और संपन्न बनाते हैं."

श्लाइषर का मानना है कि इस शोध के जरिए समाज में कुशलता और सफलता के बीच संबंध देखने की कोशिश की गई. आर्थिक और सामाजिक पहलू एकदम एक दूसरे से जुड़े हुए हैं. रोजगार के बाजार के बारे में दक्षता ही तय करती है साथ ही यह भी कि व्यक्ति राजनीति में कर्ता है या फिर वस्तु. शिक्षा से निजी स्वास्थ्य और काम के बारे में जागरूकता बढ़ती है.

प्रोग्राम फॉर इंटरनेशनल असेसमेंट ऑफ एडल्ट कॉम्पीटेंसीज (पीआईएएसी) शोध में रिसर्चरों ने पढ़ने की क्षमता, गणित का आधारभूत ज्ञान, समस्या को समझना, दैनिक जीवन के लिए जरूरी क्षमताओं को भी आंका गया. श्लाइषर कहते हैं, "आप एक जानकारी लें, जब बच्चों को किंडरगार्टन में जाना होता है. जो इसका पालन नहीं कर सकता, वह जर्मनी के सामाजिक जीवन में संतुलित तरीके से शामिल नहीं हो सकता."

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सामाजिक पृष्ठभूमि निर्णायक
आर्थिक सहयोग और विकास संगठन ओईसीडी ने पहली बार वैश्विक स्तर पर वयस्कों की दक्षता जांती है. इसमें 24 देशों और इलाकों से एक लाख छियासठ हजार लोगों से बातचीत की गई. उनके गणित, कंप्यूटर, और किताब पढ़ने की क्षमता को परखा गया. 90 मिनट की टेस्ट के जरिए अलग अलग देशों के विभिन्न उम्र, पढ़ाई, काम को देखा गया. इसमें चीन, ब्राजील और भारत शामिल नहीं किए गए.
ओईसीडी की इस टेस्ट में जर्मनी औसत पाया गया. समस्या का हल और गणित के मामले में सबसे जर्मन औसत रहे. कुल रैंकिंग में इतालवी और स्पेनिश सबसे पीछे रहे जबकि फिनलैंड और जापान के लोग सबसे आगे.

आजीवन सीखना

जर्मनी में वयस्कों की ट्रेनिंग के लिए भी कई विकल्प मौजूद हैं. लेकिन जिन्हें इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है, वे ही इससे सबसे दूर हैं. श्लाइषर मानते हैं कि जिसके माता पिता पढ़े लिखे होते हैं, उन बच्चों को हमेशा फायदा होता है.

वयस्कों के बेहतर होने की जरूरत सिर्फ जर्मनी में ही नहीं, फ्रांस, स्पेन और इटली में भी है. सिर्फ एडवांस ट्रेनिंग ही जरूरी नहीं, उसका फायदा भी होना चाहिए, उसे रोजमर्रा में मान्यता मिलनी चाहिए. अगर कोई मैकेनिक ट्रेनिंग लेकर इंजीनियर बनता है तो यूनिवर्सिटियों और कंपनियों को इसे मान्यता भी देनी होगी.

शिक्षा विशेषज्ञ मिषाएल शेम्मन इस शोध को महत्वपूर्ण कदम मानते हैं. वे कहते हैं, "मुद्दा यह है कि कम शिक्षा और बेरोजगारी का कुचक्र टूट जाए. वयस्कों की ट्रेनिंग के मामले में यही हमारा काम है." और निश्चित ही यह राजनीति और शोध का साझा काम है.

रिपोर्ट: गुंथर बिरकनश्टॉक/आभा मोंढे

संपादन: एन रंजन

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