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बच्चों को अदालत में खींचते मां बाप

१४ अक्टूबर २०१३

94 साल की कुआंग शीयिंग दक्षिण पश्चिम चीन के पहाड़ी गांव में इसलिए जानी जाती हैं क्योंकि उन्होंने अपने बच्चों पर मुकदमा किया है. बुढ़ापे में बच्चे ख्याल ना करें तो मां बाप क्या करें?

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तस्वीर: picture alliance/Photoshot

ये कहानी सिर्फ इस गांव के एक छोटे से घर की नहीं है, यह चीन की एक बड़ी समस्या का छोटा सा हिस्सा है. लंबे जीवन और कम जन्मदर के कारण दुनिया के कई देश बूढ़े हो रहे हैं. इस डेमोग्राफिक यू टर्न ने परिवार और सरकारों को एक कभी न खत्म होने वाली दुविधा में ला दिया है. इन बूढ़े लोगों की देखभाल का जिम्मा कौन उठाए.

भारत, फ्रांस, यूक्रेन में बच्चे अपने माता पिता की आर्थिक देख रेख का जिम्मा उठाते हैं, यह वहां की सांस्कृतिक परंपरा में शामिल है. भारत में स्वास्थ्य बीमा या सरकारी मदद के नाम पर कोई सुविधा इन लोगों के लिए नहीं है. उधर दुनिया के दूसरे देशों जैसे जर्मनी, पुएर्तो रिको, कनाडा में ये कोई समस्या नहीं है क्योंकि सरकारी कोष और बीमा के कारण बूढ़े लोगों को मदद मिलती है. सिंगापुर में मां बाप अपने वयस्क बच्चों पर भत्ते के लिए मुकदमा कर सकते हैं. भत्ता नहीं देने पर छह महीने जेल की सजा हो सकती है.

वहीं चीन में ऐसी सहायता कम है. पिछले 15 साल में आर्थिक सहायता के लिए करीब एक हजार मां बाप अपने बच्चों पर मुकदमा दायर कर चुके हैं. दिसंबर में चीन की सरकार ने बूढ़ों की देखभाल वाले कानून में बदलाव किया और कहा कि बच्चों को अपने मां बाप को भावनात्मक तौर पर मदद देनी होगी. जो बच्चे अपने मां बाप से मिलने नहीं जाएंगे, उन पर मां बाप मुकदमा कर सकते हैं. हालांकि कोई कानून भला प्यार कैसे जगा सकता है.

एक उदाहरण

छोटे कद की झांग जेफांग को देखकर लगता नहीं कि वह बदला लेने वाली महिलाओं में एक होंगी. नजर खो चुकीं झांग 3,800 लोगों वाले एक ऐसे गांव में रहती हैं, जो पिछली सदी में ठहर गया सा लगता है. चारों ओर शांति पसरी रहती है लेकिन झांग के घर में युद्ध चल रहा है.

नाराजगी का माहौल घर में फैला है, और एक दुर्गंध भी. झांग के बिस्तर के पास ही मूत्र से भरा एक पॉट पड़ा है. उनके घर में न प्यार है और न ही रोशनी. वो कहती हैं, "मैंने कभी नहीं सोचा कि क्या मेरे बच्चे बुढ़ापे में मेरी देख रेख करेंगे या नहीं. मैंने सिर्फ उनकी देखभाल करने में अपना समय बिताया. " वह कभी नहीं चाहती थी कि बच्चों पर मुकदमा किया जाए. लेकिन उनके कमरे को गर्म करने के लिए कुछ नहीं, कमरे में खिड़की भी नहीं.

आदर नहीं

चीन में उम्रदराज होने का मतलब युवाओं से मिलने वाला आदर होता था. माता पिता अपने बच्चों की देखभाल करते और बड़े होने पर बच्चे उनकी. दोनों के पास ही कोई विकल्प नहीं था. चीनी कहावत के मुताबिक संतान के लिए करुणा 100 में सबसे पहला गुण है.

अमेरिका के बुढ़े होते समाज के लिए काम करने वाले संगठन एएआरपी के 2008 के बुलेटिन के मुताबिक, "हजारों साल से संतानोचित करुणा चीन के स्वास्थ सिस्टम, सोशल सिक्योरिटी और लंबी देखभाल का मुख्य आधार था."

अब चीन अमीर हो रहा है और तेजी से बुढ़ा रहा है. शहर के और गांव के हालात एक दूसरे से बिलकुल अलग हैं. नई पेंशन स्कीम में गांव का हर वृद्ध नहीं है क्योंकि मासिक तनख्वाह नहीं के बराबर है. स्वास्थ्य सुविधाएं भी कम हैं. बढ़ते दुर्व्यवहार के कारण चीन ने वृद्धों के लिए बने केयर लॉ में सुधार किया और कहा कि वयस्क बच्चे नियमित तौर पर अपने माता पिता से मिलने जाएं. नहीं तो वो मुकदमा कर सकते हैं.

रिपोर्टः आभा मोंढे (एपी)

संपादनः एन रंजन

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