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ब्राजील में खेतों में आग

३१ अक्टूबर २०१३

आदिम काल से इंसान खेती करता आया है और खेतों की उपज बढ़ाने के नए नए तरीके भी खोजता रहा है. पर कुछ तरीके इतने खतरनाक होते हैं कि इंसान जाने अनजाने अपना ही नुकसान कर बैठता है.

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तस्वीर: DW/Jürgen Schneider

दुनिया भर के कई देशों में फसल काटने के बाद पूरे खेत में आग लगा दी जाती है. अंग्रेजी में इसे 'स्लैश एंड बर्न' कहा जाता है. ब्राजील में भी यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और माना जाता है कि राख जमीन की उपज बढ़ाती है. दरअसल आग के बाद कार्बन डाइऑक्साइड राख में मिलती है और इसकी वजह से मिट्टी ज्यादा उपजाऊ बनती है, यानी बेहतर फसल की उम्मीद.

लेकिन दिक्कत तब शुरू होती है जब यह आग फैल कर जंगलों तक पहुंच जाती है. ब्राजील के सहाडू इलाके में कई बार इस तरह से जंगल में आग लग चुकी है. आग बुझाने का काम भी किसानों को खुद ही करना पड़ता है, वह भी आम औजारों से. इससे बचने के लिए अब दमकलकर्मियों की मौजूदगी में नियंत्रित आग लगाई जा रही है. इससे आग को फैलने से रोकने में आसानी होती है. पर्यावरणविद इलाके का दौरा करते हैं, ताकि इस पर नजर रखी जा सके.

ब्राजील के पर्यावरण अधिकारी लारा श्टाइल बताते हैं, "हम यहां नियंत्रित आग लगाते हैं. साथ में हम फायर ब्रेक भी बनाते हैं, ताकि आग ज्यादा न फैले. यह आग नियंत्रण का तरीका है. लेकिन हमें आग के प्रबंधन के बारे में पता होना चाहिए. प्रबंधन यानी बचाव, नियंत्रण और आग का सही इस्तेमाल."

Artikelbild – Brasilien Brandschutz
आग के कारण ब्राजील में 20 से 50 करोड़ टन ब्लैक कार्बन निकल चुका है.तस्वीर: DW/Jürgen Schneider

आग लगाने की परंपरा
अफ्रीका में जंगल जलाने की प्रथा यूरोपियनों ने शुरू की. 16वीं सदी में जब वे वहां पहुंचे तो घर बनाने और खेती के लिए उन्होंने जंगलों का सफाया किया. धीरे धीरे यह चलन बढ़ता गया. कभी यह दुनिया का सबसे हरा भरा इलाका हुआ करता था. पर्यावरणविदों को अंदाजा है कि खेतों और फिर जंगलों में आग के कारण ब्राजील में 20 से 50 करोड़ टन ब्लैक कार्बन निकल चुका है. इसे साफ होने में कम से कम 2,000 साल लगेंगे.

वैसे तो ब्राजील में 40 साल पहले ही बिना सूचना दिए जंगलों के पास बने खेतों में आग लगाने पर रोक लगा दी गयी थी, लेकिन दूर दराज के इलाकों में यह आज भी चलन में है. राख भले ही जमीन की उपज के लिए अच्छी हो, लेकिन इसका बड़ा नुकसान यह है कि राख उड़ कर आसपास की नदियों में मिल जाती है. यही नदियां पीने के पानी का स्रोत भी हैं और खेती के इस पारंपरिक तरीके के चलते पानी दूषित हो रहा है. आग की वजह से पौधों और जानवरों की कई किस्में भी खत्म हो चुकी हैं. सरकार इसे रोकने के लिए काम तो कर रही है, पर अभी भी देश में इसे संजीदगी से नहीं लिया जा रहा है.

रिपोर्टः युर्गेन श्नाइडर/ईशा भाटिया

संपादनः ओंकार सिंह जनौटी

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