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महसूद की मौत: सदमा या मौका

४ नवम्बर २०१३

तहरीक ए तालिबान के कमांडर हकीमुल्लाह महसूद की मौत पर नाराज होने या शोक मनाने के बजाए इस्लामाबाद को इस मौके पर चरमपंथियों की कमर तोड़ देनी चाहिए. हकीमुल्लाह की मौत के बाद कुछ विशेषज्ञ पाकिस्तान को यही सलाह दे रहे हैं.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

शुक्रवार को पाकिस्तान के उत्तरी वजीरिस्तान में हुए अमेरिकी ड्रोन हमले में हकीमुल्लाह समेत चार लोग मारे गए. अफगान सीमा से सटे इस इलाके में हकीमुल्लाह अपने दो अंगरक्षकों के साथ छुपा था. इस बार उसकी मौत की पुष्टि भी हो गई. 2010 में भी एक बार ड्रोन हमले में हकीमुल्लाह के मरने की खबर आई थी. पाकिस्तान सरकार ने हकीमुल्लाह की मौत पर कड़ी नाराजगी जताई है. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने इस्लामाबाद में अमेरिकी राजदूत को तलब किया. महसूद की मौत ऐसे समय में हुई है जब पाकिस्तान तालिबान के साथ शांति वार्ता की तैयारी में था. सोमवार को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने कहा कि ताकत के अर्थहीन इस्तेमाल से शांति हासिल नहीं की जा सकती. हकीमुल्लाह की मौत के बाद पहली बार शरीफ सार्वजनिक तौर पर बोले. पाकिस्तान के गृहमंत्री चौधरी निसार भी वॉशिंगटन पर शांति बहाली की कोशिशों को खराब करने का आरोप लगा चुके हैं.

पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने सीधे तौर पर ड्रोन हमले का जिक्र नहीं किया. उन्होंने कहा, "मेरी सरकार रक्तपात और हिंसा के चक्र को खत्म करने के प्रति वचनबद्ध है. लेकिन ये रातों रात नहीं हो सकता और न ही हमारे नागरिकों के खिलाफ ताकत के अर्थहीन इस्तेमाल से हो सकता है." शरीफ के मुताबिक आतंकवाद की राह पर गए लोग भटके हुए हैं, वो असमंजस में जी रहे समाज का हिस्सा हैं, ऐसे में पहले उन्हें मुख्यधारा में वापस लाना होगा. पाकिस्तान यह भी चेतावनी दे चुका है कि वो अमेरिका के साथ अपने रिश्तों की समीक्षा करेगा. वैसे पाकिस्तान ने इसी तरह की प्रतिक्रिया मई 2011 में अल कायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन के मारे जाने के बाद भी दी थीं. लेकिन लादेन की मौत के बाद से अमेरिका के ड्रोन हमले लगातार बढ़ते चले गए.

Obama und Sharif
अमेरिका से नाराज शरीफ

अफगानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करजई ने भी हमले के टाइमिंग की आलोचना की. एक अमेरिकी प्रतिनिधि मंडल से बातचीत में करजई ने कहा, ड्रोन हमला "एक गलत समय में हुआ है लेकिन उम्मीद है कि इससे शांति की कोशिशों पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा." करजई बीते 12 साल के इस्लामी चरमपंथियों से बातचीत करना चाह रहे हैं. तालिबान उन्हें वॉशिंगटन का प्यादा कहकर वार्ताओं में बैठने से इनकार करता है.

तालिबान की चेतावनी

अपने कमांडर की मौत के बाद तालिबान के प्रवक्ता ने कहा, "हकीमुल्लाह के खून की हर एक बूंद आत्मघाती हमलावर में तब्दील होगी. अमेरिका और उसके दोस्तों को खुश नहीं होना चाहिए क्योंकि हम उनके खून का बदला लेकर रहेंगे." हकीमुल्लाह 2009 में बैतुल्लाह महसूद की मौत के बाद तहरीक ए तालिबान का कमांडर बना. उस पर अमेरिका ने 50 लाख डॉलर का इनाम रखा था. हकीमुल्लाह की मौत के बाद असमतुल्लाह शाहीन भिटानी को तहरीक ए तालिबान का कार्यकारी प्रमुख चुना गया है.

हकीमुल्लाह के कमांडर रहते हुए इसी साल जून में तालिबान ने कतर में दफ्तर खोला. माना जा रहा था कि इस दफ्तर के जरिए तालिबान पाकिस्तान और अफगानिस्तान से बातचीत करेगा. हालांकि दफ्तर का इस्तेमाल तालिबान ने ऐसे किया जैसे वो कतर में बैठकर निर्वासित सरकार चला रहा हो. पाकिस्तान ने 1996 से 2001 के बीच काबुल में तालिबान शासन को समर्थन दिया. माना जाता है कि अंतरराष्ट्रीय दवाब बढ़ने के बावजूद इस्लामाबाद ने तालिबान के शीर्ष नेताओं को छुपने की जगह दी.

Taliban Führer Hakimullah Mehsud
हकीमुल्लाह महसूद (बाएं)तस्वीर: Reuters

खत्म करने का सही समय

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ पहले ही से यह कहते आ रहे थे कि वो पहले तालिबान के साथ शांति वार्ता की कोशिश करेंगे और उसके सफल न होने पर ही सैन्य कार्रवाई करेंगे. शरीफ के मुताबिक इन कोशिशों को धक्का लगा है. हालांकि लंदन में रिसर्च कर रहे पाकिस्तानी पत्रकार फारूक सुलेहरिया सरकार की नाराजगी से हैरान हैं. उनके मुताबिक तालिबान को लेकर सरकार में ही खुद ही बहुत विरोधाभास है. सुलेहरिया कहते हैं, "सरकार का लक्ष्य शांति हासिल करना नहीं है. वो तालिबान के जवाबी हमलों से डरती है. उसका लक्ष्य है कि नाराज तालिबान को फिर से तालिबानी सेना के आदेश मानने वाला बनाया जाए ताकि 2014 में नाटो के जाते ही काबुल पर फिर से नियंत्रण किया जा सके."

कराची में रहने वाले पत्रकार सलीम आसमी कहते हैं, "शांति वार्ता के तथाकथित मानक तो कभी तय ही नहीं किये गए थे और तालिबान की ओर से भी कभी ऐसा कोई इशारा नहीं था कि वो पहल में शामिल होना चाहते हैं. एक अजन्मी प्रक्रिया को कैसे ड्रोन हमले में मारी गई चीज कहा जा रहा है."

इस्लामाबाद के थिंक टैंक इंस्टीट्यूट ऑफ पीस स्टडीज के निदेशक आमिर राणा तो यह मान रहे हैं कि हकीमुल्लाह की मौत के बाद पाकिस्तानी सरकार शांति वार्ता के सही रास्ते पर आ गई है. राणा ने डीडब्ल्यू से कहा, "यह अच्छा संकेत है, अब शरीफ ज्यादा वजन के साथ आतंकवाद निरोधी रणनीति बना सकेंगे, इसके लिए उन्हें पूरी तरह सेना पर निर्भर रहने की जरूरत नहीं रह गई है."

रिपोर्ट: शामिल शम्स/ओएसजे (एएफपी, रॉयटर्स)

संपादन: आभा मोंढे

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