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नीलाम हुआ गांधी जी का चरखा

६ नवम्बर २०१३

भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान यरवडा जेल में जिस चरखे का इस्तेमाल महात्मा गांधी ने किया था, वह नीलामी के दौरान ब्रिटेन में एक लाख दस हजार पौंड का बिका है.

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तस्वीर: AP

गांधी जी की आखिरी वसीयत ऐतिहासिक दस्तावेजों की नीलामी के दौरान 20,000 पौंड में बिकी थी. चरखे और इस वसीयत की नीलामी श्रॉपशर के मलॉक ऑक्शन हाउस ने करवाई. मलॉक के एक अधिकारी माइकल मॉरिस ने बताया, "गांधी जी का चरखा 110,000 पाउंड में नीलाम हुआ और उनकी वसीयत 20,000 पाउंड में."

चरखे की न्यूनतम बोली 60,000 लगाई गई थी. पुणे की यरवडा जेल में गांधी जी ने इसे इस्तेमाल किया था. बाद में यह चरखा उन्होंने एक अमेरिकी मिशनरी रेव्ड फ्लॉयड ए पफर को भेंट कर दिया. पफर भारत में शैक्षणिक और औद्योगिक सहकारी संघ बनाने वाले पहले व्यक्ति थे. उन्होंने बांस का एक हल बनाया था, जिसे गांधी जी ने बाद में इस्तेमाल भी किया. उपनिवेश काल के दौरान पफर के काम के लिए गांधी जी ने उन्हें यह चरखा भेंट किया था.

गुजराती में वसीयत

गांधी जी ने अपनी वसीयत 1921 में साबरमती आश्रम में गुजराती में लिखी थी. इसे एक अन्य नीलामी के दौरान बेचा गया. इसमें गांधी जी की विचारधारा और आने वाले पांच साल के बारे में उनकी सोच दिखाई देती है.

गांधी जी से जुड़ी करीब 60 वस्तुएं, फोटो, किताबें और दस्तावेज या तो नीलाम किए गए हैं या किये जाने वाले हैं. नीलामी से पहले मलॉक की वेबसाइट पर इस चरखे के बारे में लिखा, "यरवडा के पोर्टेबल चरखे के बनने और काम के बारे में अमेरिका की मासिक विज्ञान पत्रिका ने दिसंबर 1931 में लिखा गया कि महात्मा गांधी ने एक पोर्टेबल चरखा बनाया है, जो फोल्ड हो कर एक पोर्टेबल टाइपराइटर के आकार जितना हो जाता है और इसे उठाने के लिए इसमें एक हैंडल भी है. खोले जाने पर इसे एक कील से चलाया जा सकता है, जो दो चक्कों और तकले को चलाती है. कहा जाता है कि गांधी जी ने ये चरखा उस समय डिजाइन किया था जह वह यरवडा जेल में बंद थे. वो अक्सर कहते थे कि रोज चरखा चलाना उनके लिए ध्यान करने जैसा है."

मोहनदास करमचंद गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन शुरू करने के बाद 1932 से 1942 का समय यरवडा जेल में बिताया. इस नीलामघर में सिख और मैसूर की राजशाही से जुड़ी कई चीजें भी नीलाम की जाएंगी. इनमें 19वीं सदी में बनी टीपू सुल्तान की पेंटिंग भी है. इसके अलावा एक दुर्लभ मिनियेचर कुरान भी है, जो पहले विश्व युद्ध में लड़ने वाले मुसलमानों के लिए छापी गई थी.

एएम/एनआर (पीटीआई)

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