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जर्मनी में घर खोजते परदेसी

१४ नवम्बर २०१३

जर्मनी के बड़े शहरों में घर मिलना मुश्किल है. विदेशियों के लिए परेशानी और बढ़ जाती है जब मकान मालिक उन्हें घर देने से इनकार कर देते हैं.

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तस्वीर: Getty Patrik Stollarz/AFP/Getty Images

"हम विदेशियों को घर किराए पर नहीं देते." आयसेगुल आसार जब बॉन में रहने के लिए घर ढूंढ रही थीं तो उनसे किसी मकान के मालिक ने यही कहा. 30 साल पहले आसार तुर्की से बॉन आईं. उन्हें यहां अच्छा लगता है, लेकिन जब किराये पर मकान लेने की बात आती है तो कहती हैं, "मैंने यहां तीन बार घर बदला है. हर बार मेरे अनुभव खराब रहे. मकान मालिकों के लिए मैं सही नहीं थी, मेरा नाम गलत था, मेरे बोलने का तरीका गलत था और उनके मुताबिक मैं देखने में भी ठीक नहीं थी."

हर किसी के साथ तो ऐसा नहीं होता लेकिन जर्मनी में आ कर रहने वाले विदेशियों को किराये का घर ढूंढते वक्त काफी दिक्कत होती है. दो साल पहले एक सर्वेक्षण में 10,000 विदेशियों से पूछताछ के बाद यह पता चला.

मुसलमानों से भेदभाव

Roma aus Rumänien in Berlin
जर्मनी में नस्लवादी पूर्वाग्रह अब भी पाए जाते हैंतस्वीर: picture-alliance/dpa

जर्मनी में किराये पर रहना आम बात है. आधे से ज्यादा लोग किराये के मकान में रहते हैं. बर्लिन और हैम्बर्ग में 80 फीसदी लोग किराये पर रहते हैं. इन शहरों में घरों का किराया भी बहुत ज्यादा होता है. मालिकों के पास कई सारे लोग आते हैं और वह इनमें से पसंदीदा किरायेदार चुन सकते हैं. अकेली मां और उसका बच्चा, कम कमाने वाले लोग, बेरोजगार और छात्रों को तो कोई घर देने के लिए तैयार नहीं होता. कभी कभी नस्लवाद भी घर खोजने में अडंगा बन जाता है.

बुर्का और हिजाब पहनने वाली मुस्लिम महिलाओं और अफ्रीकी मूल के व्यक्तियों को अक्सर परेशानी होती है. सलाह संस्था बासीस एंड वोगे की बिर्टे वाइस कहती हैं, "जब यह लोग घर देखने जाते हैं तो मालिक अकसर कहते हैं, माफ कीजिए, हमें किरायेदार पहले से मिल गए हैं."

हैम्बर्ग की संस्था बासीस एंड वोगे इस तरह के भेदभाव का शिकार लोगों की मदद करते हैं. मदद मांगने वाले हर पांचवें व्यक्ति को घर खोजने में परेशानी होती है. संस्था के कर्मचारी कानूनी सवालों में भी लोगों की मदद करते हैं. जर्मनी का कानून किरायेदारों के पक्ष में है, बताती हैं क्रिस्टीने लूडर्स जो जर्मन भेदभाव निरोधी सेल में काम करती हैं, "जर्मनी में किसी के साथ भी उसके मूल, लिंग या उसकी नस्ल के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता. यह कानून घर खोजवाने में भी काम आता है." लेकिन लूडर्स भी मानती हैं कि कई मामलों में भेदभाव को साबित नहीं किया जा सकता है क्योंकि मालिक किरायेदारों के मुंह पर नहीं कहते कि वह उनकी नस्ल की वजह से उन्हें घर नहीं दे रहे.

हेर शुल्ज के लिए घर

Schwierige Integration am Duisburger Rumänen Problemhaus
जर्मन शहरों में किराये पर मकान ढूंढना मु्श्किल काम हैतस्वीर: picture-alliance/dpa

तुर्की की आसार को लेकिन लगता रहा कि शायद घर खोजने में उनकी किस्मत खराब है. लेकिन फिर एक दिन उनके बेटे को आइडिया आया. उसने एक मकान के मालिक को फोन करके अपना नाम हेर शुल्ज, यानी जर्मन में मिस्टर शुल्ज बताया. इससे कुछ ही देर पहले आसार ने उसी नंबर पर फोन किया था. आसार की किस्मत नहीं चमकी लेकिन हेर शुल्ज यानी आसार के बेटे को मकान मालिक ने फोन किया. बासीस एंड वोगे की बिर्टे वाइस कहती हैं कि विदेशी मूल के लोगों के साथ भेदभाव टेस्ट करने का यह तरीका अच्छा है. अगर सबूत मिले, तो कार्रवाई की जा सकती है.

वास्तव में कम ही मामले अदालत के सामने आते हैं. वकील सेबास्टियन बुश कहते हैं कि अदालत आने के बाद भी मामले खिंचते चले जाते हैं. आयेगुल आसार ने भी कोई मामला दर्ज नहीं किया. घर मिलना कानूनी कार्रवाई से ज्यादा अहम है. और अब जिस घर में वह रहती हैं उसका मालिक स्पेनी मूल का है.

रिपोर्टः डानियल हाइनरिष/एमजी

संपादनः ए जमाल

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