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सुई लगाने से छुटकारा

३० नवम्बर २०१३

इस साल जर्मनी के ड्युसेलडॉर्फ मेडिकल मेला मेडिका में एक ऐसी मशीन दिखाई गई जो समय से पहले जन्मे बच्चों की जान बचाने में मदद कर सकती है. अब बच्चों को सुई लगाकर उनका खून निकालने की जरूरत नहीं.

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तस्वीर: Ilike - Fotolia.com

पैदाइश के वक्त कई बच्चों का वजन मुश्किल से 800 ग्राम या एक किलो होता है. इनमें से कुछ इतने छोटे होते हैं कि वह पूरी तरह हाथ में आ जाते हैं. समय से पहले पैदा होने वाले या प्रीमेच्योर बच्चे वे होते हैं जो 37 हफ्तों से पहले पैदा होते हैं. इनका वजन 2500 ग्राम यानी ढाई किलो से कम होता है. 2010 नवंबर में फ्रीडा पैदा हुई. उसका वजन केवल 460 ग्राम था और वह यूरोप में समय से पहले पैदा होने वाली सबसे छोटी बच्ची थी.

पीलिया का खतरा

इस तरह के बच्चों को पैदा होने के बाद शुरुआती घंटों में पीलिया होने का खतरा होता है. यह बीमारी बिलिरूबिन नाम के रंग से होता है जो मनुष्य के कलेजे में पाया जाता है. बिलिरूबिन तब बनता है जब पैदाइश के बाद बच्चे का शरीर खून की नई कोशिकाएं बनाता है और पुरानी कोशिकाओं को खत्म करता है. अगर खून में बिलिरूबिन की मात्रा अधिक हो तो त्वचा का रंग पीला होने लगता है. डॉक्टरों के मुताबिक 60 प्रतिशत शिशुओं को पीलिया होता है. पैदाइश के तुरंत बाद डॉक्टर बच्चे के पैरों की अंगुलियों से खून निकालते हैं. अगर शिशु स्वस्थ है तो उसके शरीर से पीलिया खत्म हो जाता है.

समय से पहले पैदा हुए बच्चे

सामान्य समय से पैदा होने वाले शिशु के मुकाबले वक्त से पहले पैदा होने वाले बच्चों में पीलिया का खतरा ज्यादा होता है. यह बहुत नाजुक भी होते हैं. अमेरिकी डॉक्टरों ने एक शोध में ऐसे बच्चों के दिमाग के विकास को जांचा है. उन्हें पता चला है कि त्वचा में हर छोटी चोट से दिमाग के विकास पर बुरा असर पड़ कता है.

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सुई से होगा बचावतस्वीर: picture-alliance/dpa

बिलिरूबिन दिमाग के कुछ हिस्सों में जमा होता है. वेल्स में नवजात शिशुओं पर काम कर रहे अरुण रामचंद्रन कहते हैं कि बच्चों को हिलने डुलने में परेशानी हो सकती है, उनकी देखने और सुनने की ताकत कम हो सकती है और उनका तंत्रिका तंत्र बिगड़ सकता है.

इलाज या टीका

अब इन बच्चों की मदद के लिए नई तकनीक विकसित हो रही है. सुई चुभोकर खून निकालने के बजाय एक यंत्र (जेएम 105) बाजार में आ रहा है जो बिना खून निकाले त्वचा की जांच कर सकता है. यह समय से पहले पैदा होने वाले बच्चों में बिलिरूबिन की मात्रा नापता है.

इस यंत्र को बनाने वाली कंपनी ड्रेगर की इंकेन श्रोटर कहती हैं कि आम तौर पर बच्चों का खून टेस्ट के लिए निकालना पड़ता है, जो बच्चों को तकलीफ पहुंचाता है और अस्पताल के कर्मचारियों को भी दिक्कत होती है. इस यंत्र से जल्दी पता लग सकता है कि खून में बिलिरूबिन की मात्रा कितनी है. खून में बिलिरूबिन ज्यादा होने पर ही खून निकालकर सही तरह से टेस्ट किया जाता है.

क्या है जेएम 105

यह यंत्र एक डिजिटल थर्मोमीटर की तरह है. इसे बच्चे के माथे या पसलियों पर रखा जाता है. इसके नतीजे तुरंत दिख जाते हैं. नर्स इसे अपने कंप्यूटर पर देख सकती है और बच्चे की फाइल में इसे रिकॉर्ड कर सकती है. इस तरह बिना खून निकाले और बिना ज्यादा परेशानी के शिशु के स्वास्थ्य की जानकारी मिल सकती है.

रामचंद्रन वेल्स में इस यंत्र के साथ प्रोजेक्ट चला रहे हैं. स्वैनसी, ब्रिजेंड और नीथ में उन्होंने बच्चों की पैदाइश के बाद उनकी दाइयों को यह यंत्र दिया है. लेकिन यह केवल समय से पैदा होने वाले बच्चों के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है. बच्चे की दाई शिशु की जांच करती है और यंत्र में आ रहे आंकड़ों को बच्चे के माता पिता को बताती है. अगर आंकड़े चिंताजनक हों, तो ही इन्हें अस्पताल भेजा जाता है. वहां डॉक्टर इन्हें देखकर बच्चे के इलाज के लिए जरूरी कदम उठाते हैं.

रामचंद्रन कहते हैं कि इस यंत्र की मदद से बच्चे का अस्पताल में बीमार होने का खतरा बहुत कम हो गया है.

रिपोर्टः गुद्रून हाइसे/एमजी

संपादनः ए जमाल

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