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गाय के वीडियो दिखाता 'कूट्यूब'

Bleiker, Carla Christina२ दिसम्बर २०१३

मिलावट के इस दौर में अगर आपको यह दिखाया जाए कि आपके घर आने वाला दूध का पैकेट कहां से और कैसे आ रहा है, तो?

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यूट्यूब की ही तरह एक वीडियो वेबसाइट आपको सीधे वहां ले जाती है जहां से आपके घर डेयरी उत्पाद आते हैं.

उपभोक्ता की इन्हीं जरूरतों का ख्याल रखने के लिए जर्मन राज्य लोवर सैक्सनी में किसानों ने ऑनलाइन वीडियो का तरीका ढूंढ निकाला है. जर्मन भाषा में गाय को "कू" कहते हैं. यूट्यूब से प्रेरणा लेते हुए इस वीडियो वेबसाइट का नाम "माइ कूट्यूब" रखा गया है. राज्य के करीब 20 किसान हर रोज फार्म में अपने दिन भर के काम काज से जुड़े वीडियो कूट्यूब पर अपलोड करते हैं ताकि ग्राहकों को तसल्ली मिल सके.

इंटरनेट पर फार्म

ऐसे ही एक किसान हैं ग्रासबेर्ग गांव के डिर्क बोशन जो अपने इलाके से वीडियो भेजते हैं. कुछ साल पहले तक उनका एक छोटा सा फार्म आज बड़े बिजनेस की शक्ल ले चुका है, उनके लिए 18 और लोग भी काम करते हैं.

बोशेन ने डॉयचे वेले को बताया, "आज हमारे फार्म में 1000 गायें हो गई हैं. हम उन्हें दिन में तीन बार दूहते हैं. यह पशुओं के लिए भी अच्छा है क्योंकि इससे उनके थन साफ हो जाते हैं." एक बार में इस काम में छे घंटे लगते हैं. दूहने से लेकर सफाई तक काम काफी है, इस काम में 10 लोग लगते हैं.

फार्म कैसे दिखते हैं और दूध उन तक कैसे पहुंचता है, लोगों को यह सब बताने के लिए बोशेन "माइ कूट्यूब" पर अपने फार्म में चल रहे काम का वीडियो डालते हैं. वह वीडियो में यह भी दिखाते हैं कि पशुओं के खाने के लिए घास कैसे कटती है या फिर पशुओं के नवजात शिशुओं से संबंधित जानकारी के टैग उन पर कैसे लगाए जाते हैं.

Milchkühe auf dem Böschen Bauernhof in Grasberg
वीडियो में दूध दूहने से लेकर उनकी पैकिंग तक सारी प्रक्रिया दिखाई जाती है.तस्वीर: DW/C. Bleiker

उन्होंने बताया कि उनके खेत में हर किसी को आने की अनुमति नहीं है. लेकिन अगर कोई उनके फार्म के बारे में जानकारी चाहता है तो बेशक इंटरनेट उनकी मदद करने के लिए हाजिर है.

लोगों की पसंद

कूट्यूब की शुरुआत 2012 के अंत में हुई थी जब लोवर सेक्सनी फार्म असोसिएशन इस बारे में विचार कर रहे थे कि खेती और पशुपालन से संबंधित जानकारी लोगों तक कैसे पहुंचाई जाए. डेरी फार्मिंग असोसिएशन की प्रवक्ता क्रिस्टीन लिशर ने कहा, "हमने पाया कि लोग यह जानने में खूब दिलचस्पी दिखा रहे हैं कि उनका खाना कहां से आ रहा है. खाने में मिलावट के ताजा मामलों के बाद ग्राहक बहुत असुरक्षित महसूस करने लगे हैं." ग्राहकों के बीच यह कार्यक्रम सफल साबित हुआ है. मई 2013 में इसकी शुरुआत के बाद से अब तक कूट्यूब को 92,000 से ज्यादा क्लिक मिल चुके हैं.

वीडियो ट्रेनिंग

इस कार्यक्रम को लाने से पहले असोसिएशन ने 50 किसानों को लिख कर उनसे पूछा कि क्या वे अपने काम से संबंधित इतनी बारीक जानकारी लोगों से बंटना चाहेंगे, तो 16 किसानों ने सहमति जताई. इसके बाद उन्हें कैमरा चलाने की प्राथमिक स्तर की ट्रेनिंग दी गई. कैमरे के सामने कितना जोर से और कितना साफ बोलने की जरूरत है, इस तरह की बारीकियां भी असोसिएशन ने उन्हें सिखाईं. लिशेर ने कहा, "लोगों को मंझे हुए कलाकार नहीं चाहिए, हम बस गौशाला से एक असल तस्वीर पेश करना चाहते हैं."

महंगे उत्पाद

ब्रिटेन में जो लोग अपने खाने के बारे में ज्यादा जानना चाहते हैं वे ऐसी ही एक वेबसाइट "विच" पर जाते हैं. ग्राहक संगठन इस बात की जांच करता है कि जब किसी खाने की चीज पर "ओरिजिनल" का लेबल लगा हो तो वह कहीं आसपास से ही आ रहा हो.

Milchkühe auf dem Böschen Bauernhof in Grasberg
बोशेन हर रोज दिन भर के कामकाज से जुड़ा वीडियो कूट्यूब पर डालते हैं.तस्वीर: DW/C. Bleiker

विच के लिए काम करने वाली मीरा खन्ना ने बताया कि लोग इस तरह की खरीदारी पसंद कर रहे हैं. लोग जैविक और आस पास के इलाकों से आ रहे उत्पाद खरीदना चाहते हैं. लेकिन ऐसे लोगों के सामने एक समस्या है. जैविक उत्पादों की कीमत फैक्टरी के दाम से ज्यादा है. उन्होंने कहा, "दाम एक बड़ी वजह बन गया है. कुछ लोग इन जैविक उत्पादों को इस्तेमाल करना चाहते हैं लेकिन आर्थिक तंगी के चलते वे फंसा हुआ महसूस करते हैं."

पोर्टलैंड के एक रेस्त्रां में खाना खाने पहुंचे पीटर और नैंसी चिकेन के लिए कुछ भी दाम देने को तैयार हैं लेकिन पहले वे उसके बारे में सारी जानकारी चाहते हैं. रेस्त्रां कर्मचारी से उनकी बातचीत की शुरुआत ठीकठाक हुई लेकिन क्या वह उन्हें सबकुछ बता सकेगी? बिल्कुल, उसने बताया भी. मुर्गी वुडलैंड में पाली और बड़ी की गई है, खाने में उसे भेड़ का दूध, बादाम और सोया दिया गया है. ग्राहक यह भी जानना चाहते हैं कि मुर्गी के पास रहने के लिए कितनी बड़ी जगह थी, क्या वह वहां टहल सकती थी? रेस्त्रां कर्मी ने उन्हें वह फाइल दिखाई जिसमें मुर्गी के बारे में सारी जानकारी दर्ज है. अब ग्राहक यह भी जानना चाहते हैं कि मुर्गी ने खुशहाल जीवन जिया या दुखी रह कर? उसके और दोस्त थे या नहीं?

कुल मिलाकर पूरा मामला हास्यस्पद लग सकता है, लेकिन यह इस तरफ साफ इशारा कर रहा है कि बाजार में जैविक खानपान में दिलचस्पी रखने वाले लोगों के लिए विकल्पों की कमी नहीं. लोग अब इस बारे में ज्यादा सजग हो गए हैं कि वे कब, कहां और क्या खा रहे हैं. क्या वे वहीं खा रहे हैं जो वे उसे समझ रहे हैं, या फिर उनके साथ धोखा हो रहा है.

रिपोर्टः कार्ला ब्लाइकर/एसएफ

संपादनः मानसी गोपालकृष्णन

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