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कैसे मरे मलेरिया

५ दिसम्बर २०१३

किसी भी बीमारी का इलाज दवा से किया जाता है, मलेरिया का भी. पर अगर इंसान की जगह मच्छर को ही दवा दे दी जाए तो बीमारी जड़ से ही खत्म हो जाएगी. मलेरिया से बचने के लिए मच्छरों के जीन में बदलाव किए जा रहे हैं.

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मलेरिया का खतरा तब बनता है जब अपना पेट भरने के दौरान मादा एनोफिलीज मच्छर डंक के सहारे हमारे शरीर में घातक विषाणु छोड़ देती है. ये विषाणु खून में बहते हुए नसों से गुजरते हैं और हमारे लीवर में जमा होने लगते हैं. 100 विषाणु लगातार फलने फूलने वाला चक्र बनाने के लिए काफी हैं. लीवर में घर कर लेने के बाद ये खून की कोशिकाओं के अंदर पहुंच जाते हैं और फिर पूरे शरीर में फैल जाते हैं.

विषाणुओं के शरीर में फैलने के बाद अगर कोई मच्छर फिर काट ले तो विषाणु और घातक हो जाता है. इस तरह मलेरिया जैसी घातक बीमारी की शुरुआत होती है. तेज बुखार, बदन में कंपकपी, पेट में मरोड़ उठना, ये मलेरिया के लक्षण हैं. आम तौर पर ये बीमारी गरीब इलाकों में ज्यादा फैलती है. दुनिया भर में हर साल 10 लाख से ज्यादा लोग इसकी वजह से जान गंवा रहे हैं. इनमें ज्यादातर बच्चे होते हैं.

मलेरिया नहीं तो कैंसर

मलेरिया से बचने के लिए आज तक कोई तरीका नहीं निकल सका है. बचाव ही एक विकल्प है. मच्छरों को मारने के लिए डीडीटी छिड़का जाता है. लेकिन यह जहरीली दवा सिर्फ मच्छरों को ही नहीं, इंसानों को भी नुकसान पहुंचाती है. इससे कैंसर का खतरा भी होता है. साथ ही मच्छर भी लगातार डीडीटी के खिलाफ ज्यादा प्रतिरोधक क्षमता हासिल कर रहे हैं. एक बार दवा से दबने के बाद मलेरिया के विषाणु दवा के खिलाफ ताकत हासिल कर लेते हैं. विषाणुओं के लिए ये बहुत आसान है.

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मलेरिया से बचने का सबसे अच्छा विकल्प आज भी मच्छरदानी ही है.तस्वीर: Edlena Barros

अब वैज्ञानिक प्रयोगशाला में मच्छर के जीन में बदलाव करके विषाणु के मलेरिया चक्र को तोड़ना चाह रहे हैं. विषाणु को नियंत्रित किया जा रहा है, इससे उसका प्रसार धीमा होगा. चूहे पर टेस्ट करने के लिए उसे बेहोशी का इंजेक्शन लगाया जाता है. चूहा मच्छर के सामने निढाल पड़ जता है और मच्छर उस पर टूट पड़ते है. लेकिन मच्छरों के भीतर जीन संवर्धित वायरस के कारण चूहे को मलेरिया नहीं होता. हालांकि दुनिया के अरबों मच्छरों तक ऐसा वायरस पहुंचाना मुमकिन नहीं है.

मलेरिया का टीका

मलेरिया से बचने के लिए कारगर टीके पर काम किया जा रहा है. ब्रिटेन की फॉर्मास्यूटिकल्स कंपनी ग्लैक्सो स्मिथ को उम्मीद है कि 2015 तक वह मलेरिया को मारने वाला टीका बाजार में पेश कर देगी. हालांकि इस दवा पर 1980 के दशक से ही ब्रिटेन और अमेरिका में काम चल रहा है पर चुनौती यह है कि मलेरिया के विषाणु बहुत जल्द रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेते हैं. इससे इन पर बहुत दिन तक दवा का असर नहीं रहता. इसलिए फिलहाल यह ठीक तरह नहीं पता है कि टीका लगने के कितने सालों तक इसका असर शरीर पर रहेगा और मलेरिया से बचा जा सकेगा.

फिलहाल अफ्रीका में वैक्सीन के टेस्ट के नतीजे संतोषजनक रहे हैं. पांच से 17 महीने के बच्चों को टीके से मदद मिली है. मलेरिया के मामले एक चौथाई कम हुए हैं. हालांकि दूसरी बीमारियों के लिए तैयार टीके करीब 100 फीसदी सफल रहते हैं. मलेरिया के खिलाफ ऐसी सफलता पाने के लिए बहरहाल पहला ठोस कदम उठ चुका है.

रिपोर्ट: आंद्रेयास नॉएहाउज/ओ सिंह

संपादन: ईशा भाटिया

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