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बम और बुर्के से परेशान

९ दिसम्बर २०१३

पाकिस्तान के फैशन डिजाइनर कामियार रोकनी के सामने जरा तालिबान का नाम लेकर देखिए, उनकी नाराजगी बिलकुल छलक जाएगी. फैशन को तालिबान और दूसरी चीजों से जोड़े जाने से वह अकेले परेशान नहीं.

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तस्वीर: DW/S. Raheem

पेरिस आए रोकनी ने कहा, "एक चीज जो हमारे काम को नुकसान पहुंचा रही है, वह यह कि इसे तालिबानीकरण और कट्टरवाद के खिलाफ जोड़ कर देखा जा रहा है. हम लोगों का यह मकसद नहीं है. हम तो सिर्फ फैशन के कारोबार के लिए काम कर रहे हैं."

पाकिस्तान का नाम 'बम और बुर्के' से जोड़े जाने से नाराज रोकनी कहते हैं कि बहुत से मामलों में एहतियात बरतनी पड़ती है और फैशन शो की जगहों के बारे में तो पहले से कभी भी नहीं बताया जाता, "हम लोग खुद को बचाने के लिए ऐसा करते हैं." वह अपने दो चचेरे भाइयों के साथ कामियार रोकनी नाम का ब्रांड चलाते हैं.

Islamabad Fashion Week 2013
इस्लामाबाद फैशन वीक का एक नजारातस्वीर: DW/S. Raheem

खुद पर भरोसा

उनकी सलाह है, "इसके अलावा आप को खुद पर भरोसा होना चाहिए और आगे बढ़ते रहना चाहिए." उनकी तरह ही दूसरे फैशन डिजाइनर हसन शहरयार यासीन भी खुद को राजनीति से दूर रखना चाहते हैं, "हम लोग एक बेहद काले बादल के टुकड़े के नीचे फंसे हुए हैं. लेकिन यह कोई हमारी जंग नहीं है." हालांकि उनका कहना है कि तालिबान और कट्टरपंथियों के विरोध के बाद भी पाकिस्तान का फैशन दुनिया में अपनी जगह बना रहा है.

1990 के दशक में इस उद्योग में मुट्ठी भर लोग थे. लेकिन अब लाहौर और कराची जैसे शहरों में आए दिन फैशन शो होते हैं. दूसरे देशों की तरह यहां भी पेज 3 पर उनके चर्चे होते हैं और उनके बारे में किस्सागोई भी. पिछले साल सफीनाज मुनीर नाम की एक डिजाइनर ने यह कह कर विवाद खड़ा कर दिया था कि अगर पाकिस्तानी कर्मचारी 1,500 घंटे भी कसीदाकारी करे, तो उसे "कुछ नहीं" मिलता. इसके बाद पाकिस्तानी माल को लेकर दुनिया भर में संजीदा बहस होने लगी.

रोकनी और यासीन दोनों लाहौर के पाकिस्तान स्कूल ऑफ फैशन डिजाइन के पढ़े हुए हैं. वे सोने की कसीदाकारी वाली जरदोजी के बारे में बताते हैं, "भले ही दुनिया में इस काम के लिए भारत की पहचान हो लेकिन जब आप पाकिस्तान में हाथ से बने कपड़े देखेंगे, तो आपको पता चलेगा कि ये विश्व के बेहतरीन कामों में है." रोकनी कहते हैं, "यह आम तौर पर दक्षिण एशिया की कलाकारी है और अभी वहां जिंदा है."

Islamabad Fashion Week 2013
इस साल हुआ इस्लामाबाद फैशन शोतस्वीर: DW/S. Raheem

पाकिस्तान में पढ़ाई

लाहौर के पाकिस्तान इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन एंड डिजाइन की स्थापना 1994 में हुई. इसका उद्देश्य पाकिस्तान के कपड़ों को अंतरराष्ट्रीय बाजार में जगह दिलाना था. पिछले साल पाकिस्तान से कुल निर्यात का लगभग आधा हिस्सा कपड़ा उद्योग का था.

यासीन का कहना है कि 25 से 35 साल के उम्र के पाकिस्तानी मर्द फैशन को लेकर काफी उत्साहित हैं, चाहे वह पश्चिमी पोशाक हो या परंपरागत सलवार कमीज. यासीन का कहना है, "हमारी क्लोन संस्कृति जल्द ही खत्म होने वाली है. सफेद सलवार कमीज में तो हम सब क्लोन ही लगते हैं."

हालांकि इस बात पर कम ही लोगों को भरोसा है कि पाकिस्तान का फैशन उद्योग लंबा रास्ता तय करेगा. यह एक गरीब मुल्क है और तहजीब के नाम पर इसका विरोध करने वालों की भी कमी नहीं.

अली का फैशन

हालांकि फिर भी फैशन की दुनिया में कदम रखने वालों की कमी नहीं. मिसाल के तौर पर अल्पसंख्यक हजारा समुदाय के मोहसिन अली ने फैशन की पढ़ाई करने का फैसला किया. लेकिन उसके पिता, जो मजहबी नेता हैं, वो आगबबूला हो गए कि उनका बेटा औरतों के लिबास ठीक करेगा. अली का कहना है, "परिवार में ड्रामा हो गया." लेकिन बाद में हजारा समुदाय में अली की डिजाइनों की चर्चा होने लगी और अब्बा ने विरोध बंद कर दिया.

अली का कहना है, "पाकिस्तान में हजारा समुदाय को ज्यादा अधिकार नहीं और यह मेरे लिए गौरव की बात है कि मैं उनके लिए कुछ कर रहा हूं."

एजेए/ओएसजे (एएफपी)

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