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बांग्लादेश में हिंसक प्रदर्शन

१३ दिसम्बर २०१३

युद्ध अपराधी अब्दुल कादर मोलाह को फांसी दिए जाने के बाद बांग्लादेश में जबरदस्त हिंसक प्रदर्शनों का दौर शुरू हो गया है. देश में अगले महीने चुनाव होने वाले हैं.

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तस्वीर: Reuters

1971 के युद्ध के मामले में फांसी की पहली सजा दी गई है. मोलाह को गुरुवार देर रात ढाका की एक जेल में भेजा गया, जहां उन्हें फांसी दे दी गई. 65 साल के मोलाह जमात ए इस्लामी पार्टी के वरिष्ठ नेता थे. उनकी अपील को बांग्लादेश की सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया. इसके बाद स्थानीय समय के मुताबिक गुरुवार रात 10:01 बजे उन्हें फांसी पर लटका दिया गया.

पुलिस अधिकारियों ने बताया कि शुक्रवार को सत्ताधारी अवामी लीग के दो कार्यकर्ताओं की चाकू मार कर हत्या कर दी गई. इसके अलावा जमात ए इस्लामी के कार्यकर्ताओं ने रेलवे स्टेशनों पर हमला किया और दुकानों में आग लगा दी. पुलिस के मुताबिक उन्होंने एक प्रमुख राजमार्ग को भी बाधित किया. समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने मरने वालों की संख्या चार बताई है.

जज के घर में आग

ढाका के स्थानीय पुलिस प्रमुख अनीसुर रहमान ने बताया कि कार्यकर्ताओं ने प्राधिकरण के एक जज के घर में भी आग लगाने की कोशिश की, "उन्होंने मिट्टी का तेल छिड़क कर घर में आग लगाने की कोशिश की. फिर हमने रबर की गोलियां चला कर उन्हें तितर बितर कर दिया. कोई घायल नहीं हुआ."

हालांकि राजधानी ढाका से किसी बड़ी हिंसक घटना की खबर नहीं है. लेकिन सड़कों पर काफी संख्या में पुलिसवालों को देखा जा सकता है. शुक्रवार होने की वजह से मामले की गंभीरता बढ़ गई है, जब दोपहर में सामूहिक जुमे की नमाज होती है.

इसी साल फरवरी में देश के एक प्राधिकरण ने मोलाह को दोषी करार दिया था. उन पर आरोप था कि वह पाकिस्तानी सेना के साथ मिल कर लड़ रहे थे और उनकी अगुवाई में देश के कुछ प्रोफेसरों, डॉक्टरों, लेखकों और पत्रकारों की हत्या की गई. उस वक्त वह सिर्फ 22 साल के थे.

Bangladesch Kriegsverbrecher gehängt
समर्थन और विरोध में प्रदर्शनतस्वीर: Reuters

हत्या और बलात्कार के आरोप

मोलाह को बलात्कार, हत्या और सामूहिक हत्या का भी दोषी पाया गया. इनमें 350 निहत्थे नागरिक भी शामिल थे. सरकारी वकील ने उन्हें "मीरपुर का कसाई" कहा. उनके ज्यादातर अपराध इसी मीरपुर इलाके में थे. उन्हें फांसी पर लटकाए जाने के बाद देश में हिंसा भड़कने की आशंका थी और ऐसा ही हुआ.

अमेरिकी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मेरी हार्फ ने कहा कि बांग्लादेश एक नाजुक दौर से गुजर रहा है और उन्होंने सभी पक्षों से शांति बनाए रखने की अपील की, "हमने लंबे वक्त से अधिकारियों से कहा है कि इस बात को पक्का करें कि सुनवाई निष्पक्ष हो रही हो. हमने सभी पार्टियों और उनके समर्थकों से भी कहा है कि वे अपनी बातों को शांतिपूर्वक तरीके से रखें."

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गहरी चिंता के बावजूद बांग्लादेश ने मोलाह को फांसी दी. संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने भी इस फांसी का विरोध किया था. हालांकि सरकार ने इस बार में किसी तरह का विचार नहीं किया. कानून राज्यमंत्री कमरुल इस्लाम ने कहा, "यह एक ऐतिहासिक क्षण है. आखिरकार चार दशक बाद 1971 के स्वतंत्रता संग्राम में नरसंहार के दोषी को न्याय मिला."

शांत थे मोलाह

मोलाह की पत्नी और बच्चों को फांसी से कुछ घंटे पहले मुलाकात करने की इजाजत दी गई. उनका कहना है कि आखिरी लम्हों में मोलाह शांत थे.

फांसी के कुछ ही देर बाद मोलाह के शव को उनके पुश्तैनी गांव ले जाया गया, जहां तड़के उनका आखिरी संस्कार कर दिया गया. पुलिस के मुताबिक इसमें करीब 300 लोग शामिल हुए.

राजनीतिक हत्या

जमात ए इस्लामी ने इस फांसी को "राजनीतिक हत्या" करार दिया है और चेतावनी दी है कि "मोलाह के खून के एक एक कतरे का" बदला लिया जाएगा. हालांकि बांग्लादेश में दूसरे पक्ष के लोगों ने भी प्रदर्शन किया, जिन्होंने इस फांसी को सही ठहराया.

मोलाह सहित पांच लोगों को देश की अंतरराष्ट्रीय अपराध प्राधिकरण ने फांसी की सजा सुनाई है. इस प्राधिकरण में 'अंतरराष्ट्रीय' शब्द लगा है लेकिन इसका अंतरराष्ट्रीय अदालत से कोई लेना देना नहीं. इन सजाओं के बाद इस साल बांग्लादेश में जबरदस्त दंगे हुए और लगभग 235 लोगों की जान जा चुकी है. बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना का दावा है कि 1971 के युद्ध में 30 लाख लोगों की जान गई और इसके लिए जमात ए इस्लामी जिम्मेदार है. हालांकि स्वतंत्र एजेंसियां मरने वालों की संख्या तीन से पांच लाख के बीच बताती हैं.

एजेए/ओएसजे (एएफपी, रॉयटर्स)

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