1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

महज पैसों के लिए काम नहीं करते आमिर

११ जनवरी २०१४

हिन्दी फिल्मोद्योग में अपने करियर के 25 साल पूरे करने वाले मिस्टर परफेक्शनिस्ट आमिर खान कहते हैं कि पैसों की जरूरत तो सबको होती है, लेकिन वह महज पैसों के लिए किसी फिल्म में काम नहीं करते.

https://p.dw.com/p/1Aopt
Aamir Khan
तस्वीर: DW/Prabhakar Mani Tewari

आमिर खान कहते हैं, "पैसों के लिए मैं अपनी भावनाओं के साथ कोई समझौता नहीं कर सकता." आमिर का मानना है कि बीते 25 वर्षों में हिंदी सिनेमा काफी बदल गया है. एक कार्यक्रम के सिलसिले में कोलकाता पहुंचे अभिनेता ने डॉयचे वेले के कुछ सवालों के जवाब दिए. पेश हैं उसके मुख्य अंश

अपने 25 साल लंबे करियर में आपने हीरो से विलन तक विभिन्न किरदार निभाए हैं. आपके लिए किरदार के चयन का पैमाना क्या है?

मैंने कभी पैसों के लिए काम नहीं किया और यही मेरी सबसे बड़ी ताकत है. मैं हमेशा वही करता हूं जो मेरा दिल कहता है. इससे पैसे भले कम मिलें, बेहद आत्मसंतुष्टि मिलती है. काम करने के लिए फिल्म से भावनात्मक तरीके से जुड़ना जरूरी है. अगर किसी किरदार से मेरे मूल्यों को ठेस पहुंचती है तो मैं उसे नहीं निभा सकता.

क्या राजनीति में जाने का कोई इरादा है?

राजनीति में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है. आखिर लोग समाज सेवा के लिए ही तो राजनीति में जाते हैं. मैं जहां हूं वहां से समाज सेवा का काम बेहतर तरीके से कर सकता हूं. इसके लिए राजनीति में जाने की क्या जरूरत है?

कहा जाता है कि दर्शकों की पसंद को ध्यान में रख कर ही हिंदी फिल्मोद्योग में दूसरे देशों जैसी फिल्में नहीं बनाई जातीं. क्या अलग किस्म की फिल्मों के प्रति दर्शकों में दिलचस्पी पैदा करने में कलाकार कुछ भूमिका निभा सकते हैं?

देखिए, किसी भी अभिनेता या अभिनेत्री की पहली जिम्मेदारी दर्शकों का मनोरंजन करना है. अब यह मनोरजंन अलग-अलग तरीके से हो सकता है. यह सही है कि कलाकार समाज में और बड़ी भूमिका निभा सकते हैं. वह समाज के नैतिक ताने-बाने को मजबूत करने और बच्चों में बेहतर मूल्य भरने में अहम भूमिका निभा सकते हैं. इससे एक स्वस्थ समाज बनाने में सहायता मिलेगी.

Aamir Khan
एक कार्यक्रम के सिलसिले में कोलकाता पहुंचे आमिरतस्वीर: DW/Prabhakar Mani Tewari

सत्तर और अस्सी के दशक में बनने वाली फिल्मों को समाज का आईना कहा जाता था. लेकिन अब वैसी फिल्में क्यों नहीं बनती?

अब भी वैसी फिल्मों के दर्शकों का एक वर्ग है. इसके लिए पहले पूरे देश में ऐसे थिएटरों की स्थापना करनी होगी जहां सिर्फ कला फिल्में ही दिखाई जाएं. इससे ऐसी फिल्मों को भी फायदा होगा और दर्शक भी उन थिएटरों में जाकर अपनी पसंदीदा फिल्में देख सकते हैं. अगर ऐसी कोई फिल्म किसी मल्टीप्लेक्स में दिखाई जाए जहां कोई बड़ी व्यावसायिक फिल्म चल रही हो तो उसका पिटना तय है.

क्या अपने करियर की शुरूआत में आपने यहां तक पहुंचने की कल्पना की थी?

करियर की शुरूआत में मैंने कोई योजना ही नहीं बनाई थी. इतनी दूर तक आने की तो कोई कल्पना ही नहीं की थी. यह सफर काफी रोमांचक रहा है और इस दौरान बहुत कुछ सीखने को मिला है. मुझे इस बात का गर्व है कि भारतीय सिनेमा के सौ वर्षों के सफर में पिछले 25 वर्षों से मैं भी इसका हिस्सा रहा हूं.

बीती चौथाई सदी के दौरान भारतीय सिनेमा में कैसे बदलाव आए हैं?

मेरी राय में इस दौरान सिनेमा की क्वालिटी में काफी सुधार आया है. अब तकनीक से लेकर थीम और फिल्माकंन तक सब पहले के मुकाबले बेहतर हो गया है. अब नए-नए विषयों को लेकर प्रयोग हो रहे हैं. दर्शक भी लीक से हट कर बनने वाली फिल्मों को पसंद कर रहे हैं. इसके अलावा अब फिल्मों की रिलीज और उनके प्रमोशन का तरीका भी बदला है.

इस समय सौ और दो सौ करोड़ कमाने वाली फिल्मों का दौर है. आप क्या सोचते हैं?

निजी तौर पर मैं आंकड़ों पर भरोसा नहीं करता. मुझे लगता है कि दर्शक भी आंकड़ों की परवाह नहीं करते. मुझे नहीं पता कि गंगा-यमुना, प्यासा या मुगले आजम ने कितना कारोबार किया था. मेरे लिए उन फिल्मों की भावनात्मक कीमत है, बॉक्स आफिस पर उनकी कमाई से इस पर कोई फर्क नहीं पड़ता.

आगे क्या योजना है?

फिलहाल तो धूम 3 से फुर्सत मिली है. कुछ दिन आराम करने के बाद आगे की योजना बनाऊंगा.

रिपोर्ट: प्रभाकर, कोलकाता

संपादन: महेश झा

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी