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लिखे शब्दों को कला से जोड़ता कोलकाता उत्सव

१३ जनवरी २०१४

जयपुर साहित्य उत्सव की तर्ज पर पांच साल पहले शुरू हुए एपीजे कोलकाता साहित्य उत्सव ने अपनी विविधता और देश-विदेश के लेखकों-साहित्यकारों की बढ़ती भागीदारी की वजह से कम समय में ही अपनी खास जगह बना ली है.

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तस्वीर: DW/Prabhakar

हर बीतते साल के साथ यह साहित्यिक लिहाज से और समृद्ध हो रहा है. आठ से 13 जनवरी तक आयोजित उत्सव के पांचवें संस्करण में भी साहित्य, कला और सिनेमा जगत की विभिन्न हस्तियों ने शिरकत की. इस दौरान देश के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद की 125वीं जयंती के मौके पर उनको श्रद्धांजलि दी गई.

उद्घाटन

कोलकाता की ऐतिहासिक इमारत विक्टोरिया मेमोरियल में इस उत्सव का उद्घाटन पश्चिम बंगाल के राज्यपाल एमके नारायणन ने किया. समारोह में हिंदी फिल्मों के सुपरस्टार आमिर खान ने भी शिरकत की. इस मौके पर योजना आयोग की सदस्य सईदा हमीद की ओर से आजाद पर लिखी गई एक पुस्तक इस्लाम एंड द इंडियन नेशनल मूवमेंट का विमोचन किया गया.

आमिर खान ने समारोह में अपने चचेरे दादा मौलाना अबुल कलाम आजाद को श्रद्धाजंलि दी. उन्होंने आजादी के बाद पहले शिक्षामंत्री रहे मौलाना के बारे में कहा, "वे सबको यही सलाह देते थे कि अपने दिल की सुनो. अगर मैंने उनकी सलाह पर अमल नहीं किया होता तो आज अभिनेता नहीं होता." मौलाना से नहीं मिल पाने पर अफसोस जताते हुए अभिनेता ने कहा, "उनको मैंने उनकी किताबों की वजह से ही जाना है. उनकी सोच शीशे की तरह साफ थी."

Literaturfestival Kalkutta
योजना आयोग की सदस्य सईदा हमीद की मौलाना आजाद पर लिखी गई एक पुस्तक का विमोचन करने पहुंचे अभिनेता आमिर खान.तस्वीर: DW/Prabhakar

सार्थक स्त्री विमर्श

उत्सव के दौरान अलग-अलग सत्रों में समाज, परिवार और उसमें स्त्री की भूमिका पर सार्थक विमर्श हुआ. इसमें शिरकत करने वाली जानी-मानी लेखिका और प्रसार भारती की अध्यक्ष मृणाल पांडे का कहना था, "एक साथ सबको खुश रखने की मानसिकता से बाहर निकल कर ही महिलाएं अपना वजूद और अपने लिए एक कोना बना सकती हैं. एक साथ सबको खुश रखना न तो जरूरी है और न ही संभव."

मृणाल पांडे ने अपनी मां शिवानी के लेखन का ब्योरा देते हुए कहा कि उनके लिखने की कोई खास जगह तय नहीं थी. जब जहां समय मिला वहीं उनकी लेखनी शुरू हो जाती थी. वह कहती हैं, "पहले के दौर में महिलाओं की स्थिति और खराब थी. लेकिन जहां चाह वहां राह की तर्ज पर उस दौर में भी महिलाओं ने अपनी लगन से अपने लिए घर और समाज में जगह बनाई." कई अखबारों का संपादन कर चुकी पांडे के मुताबिक, "अपनी स्थिति के लिए महिलाएं भी कुछ हद तक दोषी हैं. कई प्रतिभावान महिला पत्रकार घर-संसार संभालने के चक्कर में अपने पेशे से कई तरह के समझौते करने लगती हैं. इससे उनका नुकसान होता है."

कलकत्ता विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रही लेखिका नवनीता देव सेन ने मृणाल पांडे का समर्थन करते हुए कहा, "एक साथ बहू, पत्नी, मां और नौकरीपेशा की भूमिका में सबको खुश रखना मुश्किल है. इस कोशिश में महिला का अपना वजूद ही छीजने लगता है." उन्होंने बंगाल के संदर्भ में महिलाओं की स्थिति पर विस्तार से जिक्र किया. लेखिका अनिता नैयर ने भी समाज में महिलाओं की स्थिति पर अपने विचार रखे. अनिता ने कहा, "अभिनय और लेखन में काफी हद तक समानता है. जिस तरह अभिनेता किसी किरदार को जीवंत करने के लिए उसमें समा जाते हैं, उसी तरह किसी किरदार को गढ़ने के दौरान लेखक भी उसमें समा जाते हैं."

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साहित्य मेले में शामिल हुए सरोद वादक उस्ताद अमजद अली खान भी.तस्वीर: DW/Prabhakar

लोकार्पण

इस उत्सव की खासियत यह रही कि लगभग हर सत्र के दौरान किसी न किसी लेखक की पुस्तक का लोकार्पण हुआ. इनमें अनिता नैयर, सईदा हमीद, उस्ताद अमजद अली खान और फारुख धोंडी शामिल हैं. इस छह दिवसीय उत्सव के दौरान देश-विदेश के 60 से ज्यादा लेखकों और साहित्यकारों ने शिरकत की. उनमें उस्ताद अमजद अली खान, ब्रिटिश लेखक फारुख धौंडी, बीबीसी के पूर्व पत्रकार मार्क टली, बीना रमानी, लेखक विक्रम संपत जैसी हस्तियां शामिल थीं. उत्सव में कामनवेल्थ देशों के लेखकों के लिए एक अलग सत्र भी आयोजित किया गया.

उत्सव की निदेशक मैना भगत कहती हैं, "हम शिक्षा के महत्व को बढ़ावा देने के लिए इस उत्सव को एक अहम मंच बनाना चाहते हैं. यह उत्सव लिखे हुए शब्दों को कला के विभिन्न स्वरूपों मसलन, संगीत, नृत्य थिएटर, सिनेमा, फैशन और विजुअल आर्ट्स से जोड़ने की दिशा में एक ठोस पहल है."

रिपोर्ट: प्रभाकर, कोलकाता

संपादन: महेश झा

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