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पुरस्कृत अभिनेता बना शरणार्थी

२९ जनवरी २०१४

पिछले साल बर्लिन फिल्म महोत्सव में सर्वश्रेष्ठ अदाकार का अवार्ड जीतने वाले बोस्नियाई अभिनेता को शरणार्थी के तौर पर जीना पड़ रहा है. अवार्ड मिला, काम नहीं.

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तस्वीर: DW/M. Camdzic

नजीफ मुजिच बर्लिन फिल्म महोत्सव के दौरान लाल कालीन पर चल चुके हैं. सुर्खियां बटोर चुके हैं. उन्हें सिल्वर बीयर भी मिल चुका है. लेकिन आज वह जर्मनी की राजधानी बर्लिन की बाहरी सीमा पर शरणार्थियों के लिए बने घरों में अपनी पत्नी और तीन बच्चों के साथ रहते हैं. उन्हें अब डिपोर्ट किया जाना है.

पिछली फरवरी में खानाबदोश अल्पसंख्यक समुदाय के मुजिच पहली बार हॉलीवुड सितारों और टीवी कैमरा के सामने थे. बोस्निया हैर्जेगोविना से आए मुजिच ने एक फिल्म में काम किया था जिसमें खानाबदोश समुदाय के साथ होने वाला भेदभाव दिखाया गया था.

उस समय संपन्नता का अनुभव लेने वाले मुजिच आज बाकी खानाबदोश और शरणार्थियों के साथ एक पुराने नर्सिंग होम में रह रहे हैं, जिसे अब शरणार्थियों के रहने की जगह में तब्दील किया गया है. किसी समय बोस्निया के एक गांव में लोहा इकट्ठा करने वाले मुजिच का कहना है कि उन्हें 25 फरवरी को जर्मनी छोड़ना होगा क्योंकि उनका शरणार्थी आवेदन अस्वीकृत कर दिया गया है.

बोस्निया नहीं जाना

मुजिच की 33 साल की पत्नी सेनाजा अलिमानोविच कहती हैं कि यहां रहना बोस्निया में रहने से अच्छा है. वह भी 2013 में दिखाई गई फिल्म "एन एपिसोड इन द लाइफ ऑफ आयरन पिकर" में थीं.

निदेशक डेनिस तानोविच ने इस दंपति से अपनी रोजमर्रा को फिल्म में दिखाने के लिए कहा. उन्होंने नौ दिन लगातार उनकी दिनचर्या को डिजिटल कैमरे से शूट किया, इस दौरान किसी स्क्रीनप्ले का इस्तेमाल नहीं किया गया.

फिल्म में एक ओर तो पति और परिवार के बाकी लोग स्टील और तांबा के टुकड़ों की तलाश में रहते हैं वहीं सेनाडा का एक जटिल और खतरनाक गर्भपात होता है.

Berlinale 2013 - Senada Alimanovic, Danis Tanovic und Nazif Mujic
सुनहरे दिनों में अपनी पत्नी सेनाडा के साथ नजीफ मुजिचतस्वीर: picture-alliance/dpa

फिल्म उनके संघर्ष के बारे में बताती है कि कैसे वह इलाज के दौरान गरीबी और भेदभाव से जूझते हैं और कैसे अंतिम क्षणों में उनकी पत्नी बच जाती है. इस फिल्म को बर्लिनाले 2013 में ग्रैंड जूरी अवॉर्ड भी मिला. 43 साल के मुजिच कहते हैं, "मैं कभी बोस्निया नहीं लौटना चाहता था. वहां हमारे पास खाने के लिए और बच्चों को बड़ा करने के लिए कुछ नहीं था." बर्लिनाले के बाद उनका गांव में बढ़िया स्वागत हुआ. जहां उनके पास बाकी खानाबदोश समुदाय की तरह ही एक टूटा फूटा घर था. 1992-95 के बोस्निया युद्ध के पूर्व सैनिक मुजिच को उम्मीद थी कि इस फिल्म से उनके लिए एक्टिंग में नए दरवाजे खुलेंगे लेकिन भारी पीठ दर्द और डायबिटीज के कारण उन्हें कोई ऑफर नहीं मिला.

पिछले नवंबर उन्होंने तय किया कि वह उसी शहर लौटेंगे जहां उन्हें शोहरत मिली. 250 यूरो के टिकट के साथ 24 घंटे की यात्रा के बाद वह बर्लिन पहुंचे. लेकिन यहां मुश्किलें उनका इंतजार कर रही थीं. उनका शरणार्थी आवेदन अस्वीकृत कर दिया गया. अब बर्लिनाले मुजिच की मदद कर रहा है ताकि अच्छे वकील उनका मामला देखें.

अनिश्चितता के इस भंवर में फिलहाल उनका एक ही सपना है कि वह फिर एक बार लाल कालीन पर जाएं. वह कहते हैं, "मैं इस साल अपने परिवार के साथ बर्लिनाले जाऊंगा. पता है, मुझे बुलाया भी है."

एएम/एजेए (एएफपी)

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